शास्त्री द्वितीय वर्ष- पाठ्यक्रम एवं पुस्तकें

शास्त्री द्वितीय वर्ष
पाठ्यक्रम
प्रथम प्रश्नपत्र- अनिवार्य विषय संस्कृत 100 अंक
(क) सांख्यकारिका-गौड़पादभाष्य सहित- 50 अंक ।
(ख) वेदान्तसार-संस्कृत, हिन्दी भाषा सहित -50 अंक
 द्वितीय प्रश्नपत्र- अनिवार्य विषय संस्कृत 100 अंक
(क) सन्तसुजातीयदर्शनम्-  30 अंक ।
(ख) मध्यमव्यायोग – संस्कृत हिन्दी व्याख्या सहित- 10 अंक
(ग) संस्कृत निबन्ध मंजरी- शिवप्रसाद शर्मा - 30 अंक ।
(घ) संस्कृत साहित्येतिहासः- 30 अंक ।

तृतीय प्रश्नपत्र- हिन्दी  अनिवार्य विषय ।  100 अंक
(क) निबन्ध निकष20 अंक
(ख) निबन्ध संरचना20 अंक
 (ग) प्रतिशोध-डॉ. रमेशचन्द्र पाण्डेय - 10 अंक
 (घ)  संस्कृत से हिन्दी में अनुवाद । 10 अंक
 (ङ) हिन्दी से संस्कृत में अनुवाद । 10 अंक
(च) वस्तुनिष्ठ प्रश्न -30 अंक
चतुर्थ प्रश्नपत्र- साहित्य के छात्र के लिए 100 अंक
(क) वेणीसंहारनाटकम् -60 अंक ।
(ख) चन्द्रकलानाटिका -25 अंक 
(ग) सरलगद्यपद्यरचना-शिवराजविजय तृतीय विराम-15 अंक
चतुर्थ प्रश्नपत्र- नव्यव्याकरण के छात्र के लिए 100 अंक
(क) प्रौढ़मनोरमा-शब्दरत्नसहित अजन्तपुल्लिंग से स्त्री प्रत्यय के अन्त तक - 100 अंक
पंचम प्रश्नपत्र- साहित्य के छात्र के लिए 100 अंक
नैषधचरित महाकाव्य (01 से 05 सर्ग)- 100 अंक
पंचम प्रश्नपत्र- नव्यव्याकरण के छात्र के लिए 100 अंक
(क) प्रौढ़मनोरमा- शब्दरत्न सहित- कारक प्रकरण- 50 अंक ।
(ख) न्यायसिद्धान्तमुक्तावली-अनुमान शब्दखण्ड- 50 अंक
षष्ठम् प्रश्नपत्र- साहित्य के छात्र के लिए 100 अंक ।
साहित्यदर्पण (07 से 10 परिच्छेद)  -100 अंक ।
षष्ठम् प्रश्नपत्र- नव्यव्याकरण के छात्र के लिए 100 अंक
परमलघुमंजूषा-100 अंक
सप्तम प्रश्नपत्र-एच्छिक विषय हिन्दी । 100 अंक ।               
1.आधुनिक काव्य पीयूष (कवि एवं काव्य समीक्षा) 40 अंक
2.आधुनिक हिन्दी कविता का इतिहास- 15 अंक
3.आलोचना, हिन्दी काव्य में विभिन्नवाद -15 अंक
4.वस्तुनिष्ठ  प्रश्न-30 अंक
सप्तम प्रश्नपत्र-एच्छिक विषय -इतिहास
आधुनिक भारत का इतिहास (सन् 1740 से सन् 1935 तक) -100 अंक
अष्टम् प्रश्नपत्र-एच्छिक विषय हिन्दी100 अंक ।
1. निबन्ध और अन्य गद्य विधाएँ- 20 अंक ।

2.कथा सरिता- 20 अंक ।
3. निबन्ध एवं कहानी साहित्य का इतिहास, निबन्धकार एवं उनकी शैलीगत विशेषताएँ तथा साहित्यिक योगदान- 30 अंक ।

4. वस्तुनिष्ठ प्रश्न -30 अंक ।
अष्टम् प्रश्नपत्र-एच्छिक विषय इतिहास

आधुनिक यूरोप का इतिहास (1789 से सन् 1918 तक) -100 अंक



         
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विद्यापति

विद्यापति
चानन भेल विषम सर रेभुषन भेल भारी।
सपनहुँ नहि हरि आयल रेगोकुल गिरधारी।।
एकसरि ठाठि कदम-तर रेपथ हेरथि मुरारी।
हरि बिनु हृदय दगध भेल रेझामर भेल सारी।।
जाह जाह तोहें उधब हेतोहें मधुपुर जाहे।
चन्द्र बदनि नहि जीउति रेबध लागत काह।।
कवि विद्यापति गाओल रेसुनु गुनमति नारी।
आजु आओत हरि गोकुल रेपथ चलु झटकारी।। 1
व्याख्या- हे सखी, कृष्ण के विरह में चंदन का सुगंधित लेप मुझे तीक्ष्ण वाण के समान पीड़ादायक लग रहा है और आभूषण भार- स्वरूप मालूम पड़ रहा है। जब से वे गोकुल गिरधारी यहाँ से मथुरा चले गए हैं तब से उनसे मिलना स्वप्न में भी नहीं हो पाया। अर्थात स्वप्न में भी नहीं आये। मैं अकेली कदंब वृक्ष के नीचे खड़ी मुरारी का मार्ग देखा करती हूँ। हरि के बिना मेरा ह्रदय जलकर राख हो गया और मेरी साड़ी भी मलिन पड़ गई है। हे उद्धव! तुम यहाँ क्या करने आए हो? कृपा करके तुम शीघ्र ही मथुरा को लौट जाओ। कृष्णचंद्र के बिना यह चंद्रवती जीवित नहीं रहेगी। ऐसी दशा में तुम अपना उपदेश देकर इस की हत्या की क्यों भागी बनते हो? विद्यापति कहते हैं, हे गुणवती स्त्री! तू तन- मन से तल्लीन होकर सुन, आज हरि गोकुल आएंगे, तू उनका स्वागत करने के लिए समूह बना कर सब सखियों को साथ लेकर शीघ्र उनके पथ में जा खड़ी हो।
माधव हम परिणाम निरासा ।
तुंहूँ जगतारन दीन दयामय अतए तोहर विसवासा ।
आध जनम हम नींद गमायलु जरा सिसु कत दिन भेला ।
निधुवन रमनि-रभस-रंग मातनु तोंहे भजब कोन बेला  ।
कट चतुरानन मरि-मरि जाओत न तुअ आदि अवसाना  ।
तोंहे जनमि पुनि तोंहे समाओत सागर लहरि समाना  ।
भनहि विद्यापति सेष समन भय तुअ बिनु गति नहीं आरा ।
आदि अनादिक नाथ कहओसि अब तारन भार तोहारा  ।। 2
हे माधव! जिस प्रकार तप्त बालू पर पानी की बूँद पड़ते ही विलीन हो जाती है, वैसे ही संसार में पुत्र, मित्र, पत्नी आदि की स्थिति है। तुझे भुला कर मैंने अपना मन इस क्षणभंगुर वस्तुओं में समर्पित कर दिया है। ऐसी स्थिति में अब मेरा कौन कार्य सिद्ध होगा? हे प्रभु! मैं जीवन भर आप को भुला कर माया- मोह में फँसा रहा हूँ। अतः अब इसके परिणाम से बहुत निराश हो गया हूँ। आप ही इस संसार से पार उतारने वाले हो। दीनों पर दया करने वाले हो। अतएव तुम्हारा ही विश्वास है कि तुम ही मेरा उद्धार करोगे। आधा जीवन तो मैंने सोकर ही बिता दिया। वृद्धावस्था और बालपन के भी अनेक दिन बीत गए। युवावस्था युवतियों के साथ केलि-क्रीड़ाओं में बिता दी।  इस प्रेमक्रीडा में मस्त रहने के कारण मैं तेरा स्मरण करता तो किस समय करता? अर्थात विलास वासना में फंसे होने के कारण तेरे भजन पूजन का समय ही नहीं निकल पाया। कितने ही ब्रह्म अथवा चतुर वक्ता मर गए किंतु आप आदि अंत से परे हैं अर्थात ना तो मैं ब्राह्मण आदि की भाँति देव कोटि में आता हूं और ना ही मैं कोई चतुर ज्ञानी ही हूं। फिर भी आप जैसे आदि अंतहीन अपरंपार प्रभु को कैसे जान पाता? यह सारी सृष्टि तुमसे ही जन्म लेती है और फिर तुम्हें ही ऐसे विलीन हो जाती है जैसे समुद्र की लहरें समुद्र के जल से उत्पन्न होती हैं, और फिर उसी में समा जाती हैं। विद्यापति कवि कहते हैं कि- हे प्रभु! आप ही मृत्यु के भय से छुटकारा दिलाने वाले हैं। अतः आप के बिना मेरी अन्य कोई गति नहीं है। (कृष्ण विष्णु के अवतार हैं अतः शेषनाग की सैया पर शयन करने वाले प्रभु! हे माधव! आप आदि और अनादिल के नाथ कहलाते हैं। ऐसी स्थिति में इस भवसागर से पार उतारने का भार आप पर ही है।)
सखि हे हमर दुखक नहि ओर
इ भर बादर माह भादर सून मंदिर मोर ।
झम्पि घन गर्जन्ति संतत भुवन भर बरसंतिया।
कंत पाहुन काम दारुण सघन खर सर हंतिया ।
कुलिस कत सत पात मुदित मयूर नाचत मतिया।
मत्त दादुर डाक डाहुक फाटी जायत छातिया ।
तिमिर दिग भरि घोर जामिनि अथिर बिजुरिक पांतिया।
विद्यापति कह कइसे गमओब हरि बिना दिन –रातिया । 3
हे सखी! हमारे दुखों का कोई अंत नहीं है अर्थात हमारा दुख एक अंतहीन गाथा है जिस की समाप्ति के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते। भादो के महीने में चारों तरफ बादल छाए हुए हैं फिर भी हमारा मंदिर (घर) सूना है। वहाँ बरसात के कोई चिन्ह नहीं दिखाई दे रहे हैं। चारों भुवनों में अनवरत बरसात हो रही है। बादल गरज- गरज के बरस रहे हैं। ऐसे में मेरा जो प्रियतम है वह पाहुन बना हुआ है। उसकी याद  ऐसे प्रतीत हो रही है जैसे कोई मुझ पर अस्त्रों से प्रहार कर रहा हो, अर्थात् कठोर कामदेव मुझे नितांत तीक्ष्ण वानों से मार रहा है। इस बरसात में मोर मदमस्त होकर नृत्य कर रहे हैं ।उनका नृत्य करना ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो सैकड़ों बज्र एक साथ हमारे हृदय पर प्रहार कर रहे हो। मेंढक की आवाज से हमारा हृदय फटा जा रहा है। चारों तरफ घोर अंधकार छाया हुआ है। और कहीं- कहीं बिजली चमक रही है। विद्यापति कहते हैं कि इन विपरीत परिस्थितियों में तुम पति के बिना कैसे दिन व्यतीत करोगी? अर्थात पति के अभाव में हमारा जीवन दुखों का सागर बना हुआ है। जिसकी समाप्ति के कोई मार्ग नहीं सूझ रहे हैं।

सखिकि पुछसि अनुभव मोय .
से हों पिरीति अनुराग बखानइततिल-तिले नूतन होय।
जनम-अवधि हम रूप निहारल,नयन न तिरपित भेल ।
सेहो मधु बोल स्रवनहि सूनलस्रुति-पथ परस न भेल ।
कत मधु जामिनि रभसे गमाओल,न बुझल कइसन गेल ।
लाख-लाख जुग हिये-हिये राखल,तइयो हिय जुड़न न गेल ।
कत बिदग्ध जन रस अनुमोदइअनुभव काहु न पेख ।
विद्यापति कह प्राण जुड़ाएत लाखे मिल न एक ।।4

नव बृन्दावन नव नव तरूगन, नव नव विकसित फूल।
नवल वसंत नवल मलयानिल, मातल नव अलि कूल॥
विहरइ नवल किसोर
कालिंदी-पुलिन, कुंज वन शोभन, नव नव प्रेम विभोर ।
नवल –रसाल-मुकुल-मधु-मातल नव कोकिल कुल गाय ।
नवयुवती गन चित उमताई, नव रस कानन धाय ।
नव जुवराज नवल बर नागरि मीलिए नव-नव भाँति ।
नित-नित ऐसन नव-नव खेलन, विद्यापति मति माँति ।।5

लता तरुअर मण्डप जीति, निर्मल ससधर धवलिए भीति ।
पउँअ नाल अइपन भल भेल, रात पहीरन पल्लव देल ।
देखह माइ हे मन चित लाय, बसंत-बिबाहा कानन-चलि जाय ।
मधुकर रमनी मंगल गाब, दुजबर कोकिल मंत्र पढ़ाव ।
करू मकरंद हथोदक नीर, विधु बरियाती धीर समीर ।
कनअ किंसुक मुति तोरन तूल, लावा बिथरल वेलिक फूल ।
केसर कुसुम करु सिंदुर दान, जतोदुक पाओल मानिन मान ।
खेलए कौतुक नव पंचबान, विद्यापति कवि दृढ़ कए भान ।।6

अभिनव पल्लव बइसंक देल । धवल कमल फुल पुरहर भेल ।।
करु मकरंद मन्दाकिनि पानि । अरुन असोग दीप दहु आनि।।
माह हे आजि दिवस पुनमन्त । करिअ चुमाओन राय बसन्त।।
संपुन सुधानिधि दधि भल भेल । भगि-भगि भंगर हंकराय गेल।।
केसु कुसुम सिन्दुर सम भास । केतकि धुलि बिथरहु पटबास।।
भनइ विद्यापति कवि कंठहार । रस बझ सिवसिंह सिव अवतार।। 7

सरसिज बिनु सर सर बिनु सरसिजकी सरसिज बिनु सूरे।
जौबन बिनु तनतन बिनु जौबन की जौक पिअ दूरे।।
सखि हे मोर बड दैब विरोधी ।
मदन बोदन बड पिया मोर बोलछडअबहु देहे परबोधी ।।
चौदिस भमर भम कुसुम-कुसुम रमनीरसि भाजरि पीबे ।
मंद पवन बहपिक कुहु-कुहु कहसुनि विरहिनि कइसे जीवे।।
सिनेह अछत जतहमे भेल न टुटतबड बोल जत सबथीर।
अइसन के बोल दुहु निज सिम तेजि कहुउछल पयोनिधि नीरा ।।
भनइ विद्यापति अरे रे कमलमुखिगुनगाहक पिय तोरा।
राजा सिवसिंह रुपानरायनरहजे एको नहि भोरा।। 8
अनुखन माधव-माधव सुमिरत, सुन्दर भेलि मधाई ।
जो नित भाव सभावहिं विसरल, आपन गुन लुबधाई ।
माधव अपरूप तोहारि सिनेह, अपने विरह अपन तन जरजर ।
जिवइते भेल संदेह ।
भोरइ सहचरि कातर दिठि हेरि, छल-छल लोचन पानि ।
अनुखन राधा राधा रटइत, आधा-आधा कहु बानि ।
राधा सयें जब पुनतहिं माधव, माधव सँय जब राधा ।
दारुन प्रेम तबहुँ नहिं टूटत, बाढ़त विरहक बाधा ।
दुहु सिद दारू दहन जैसे दगधई, आकुल कीट परान ।
ऐसन बल्लभ हेरि सुधामुखि, कवि विद्यापति भान ।।9

सरस बसन्त समय भल पाओलि
दखिन पवन बहु धीरे ।
सपनहुँ रूप बचन एक भाखिए
मुख सो दूर करू चीरे ।
तोहर बदन सम चान होअथि नहिं
जइओ जतन विहि देला ।
कए बार कटि बनावल नव कए
तइयो तुलित नहिं भेला ।
लोचन तुअ कमल नहि भए सक
से जग के नहिं जाने
से फेरि जाए नुकेलाई जल मय
पंकज निज अपमाने ।
भनइ विद्यापति सुन बर यौवति
इ सब लक्ष्मी समाने ।
राजा सिवसिंह रूपनरायन
लखिमा दे पति भाने । 10

सुनु रसिया अब न बजाऊ बिपिन बंसिया ।
बार-बार चरणारविन्द गहिसदा रहब बनि दसिया ।
की छलहुँ कि होएब से के जाने,वृथा होएत कुल-हँसिया ।
अनुभव ऐसन मदन भुजंगम ह्रदय मोर गेल डसिया  ।
नंद-नन्दन तुअ सरन न त्यागब ,बरु जग होए दुर्जसिया ।
विद्यापति कह सुनु बनितामनि,तोर मुख जीतल रसिआ ।
धन्य-धन्य तोर भाग गोआरिनी भरि भजु ह्रदय हुलसिआ ।। 11
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हिन्दी साहित्य

               लोकभाषा साहित्य
उद्योतन सूरि-कुवलयमाला कथा
रोड(10वीं शताब्दी)-राउरबेल (चंपू काव्य)
कल्लोल कवि(11वीं शताब्दी)ढोला मारु रा दोहा
मधुकर कवि(12वीं शताब्दी)-जयमयंक जसचन्द्रिका
भट्ट केदार(12वीं शताब्दी)-जयचन्द्र प्रकाश
अमीर खुसरो(1255-1324)-खालिकबारी पहेलियाँ मुकरियां दो सुखने गज़ल
विद्यापति-पदावली कीर्तिलता कीर्तिपताका
दामोदर शर्मा(12वीं शताब्दी)-उक्ति व्यक्ति प्रकरण
ज्योतिरीश्वर ठाकुर(14वीं शताब्दी)-वर्णरत्नाकर
माणिक्य चन्द्र सूरि(14वीं शताब्दी)-पृथ्वीचन्द्र चरित्र

रामाश्रयी शाखा
तुलसीदास(1532-1623)
रामचरितमानस(1574)-2 वर्ष 7 महीनें 11 दिन. 4 युग्म
बरवै रामायण-7 काण्ड,69 छन्द
पार्वती-मंगल’-164 छन्द
जानकी-मंगल-216 छन्द
दोहावली(ब्रजभाषा)-572 दोहे
कवितावली(ब्रजभाषा)
गीतावली(ब्रजभाषा)
श्रीकृष्ण-गीतावली(ब्रजभाषा)
विनय-पत्रिका-(ब्रजभाषा) रामाज्ञाप्रश्न रामललानहछू,वैराग्य-संदीपनी,
सतसई,छंदावली रामायण, कुंडलिया रामायण, राम शलाका, संकट मोचन, करखा रामायण, रोला रामायण, झूलना, छप्पय रामायण, कवित्तरामायण,कलिधर्माधर्म निरूपण,हनुमान चालीसा,हनुमानबाहुक
अग्रदास-हितोपदेश उपखाँड़ा बावनी ध्यानमंजरी अष्टयाम रामध्यानमंजरी रामभजन मंजरी कुंडलियां उपासना बावनी हितोपदेश भाषा पदावली
विष्णुदास-महाभारत कथा रुक्मिणी मंगल स्वर्गारोहण स्नेहलीला रामायण कथा
नाभादास-भक्तमाल अष्टयाम वास्तविक नाम -नारायणदास
प्राणचन्द चौहान- रामायण महानाटक(1610)-नाटक न होकर संवादात्मक प्रबंधकाव्य है । दोहा चौपाई मे लिखित,हनुमन्नाटक का बहुत प्रभाव है ।
माधवदास चारण- रामरासो(1618)- रामकथा का पूरा विस्तार न होकर मुख्य घटनाओं का संक्षेप मे वर्णन है ।
आध्यात्मरामायण(1624)-
हृदयराम- हनुमन्नाटक(1623)-रामगीत शीर्षक से भी जाना जाता है । कवित्त सवैया में लिखित मौलिक काव्य में सीता स्वयंवर से लेकर राज्याभिषेक तक की कथा संवाद शैली में वर्णित है ।
नरहरि बारहट-पौरुषेय रामायण-दोहा चौपाई सहित अनेक छन्दों से युक्त राजस्थानी तथा ब्रजमिश्रित अवधी में लिखित यह कृति चतुर्विंशतिअवतारचरित्र नामक विशाल ग्रंथ का एक अंश है।जिसमें 21वें अवतार के अन्तरगत रामचरित्र का वर्णन है ।
लालदास-अवधविलास(1643)- 18 विश्रामों मे विभक्त रामजन्म से लेकर वनगमन तक की कथा को इसमें ग्रहण किया गया है।
कपूरचन्द्र त्रिखा-रामायण(1646)- गुरुमुखी लिपि में लिखित 145 छन्दों में रामकथा का ब्रजभाषा में वर्णन किया गया है ।
विभिन्न भाषा में रामायण
बंगला-कृतिवास रामायण
तमिल- कम्ब रामायण
तेलगू-रंग रामायण भाष्कर रामायण
मराठी-भावार्थ रामायण(संत एकनाथ),रामयण(वेणाबाई देसपाण्डे)
 कृष्णाश्रयी शाखा
अष्टछाप की स्थापना 1565 में विट्ठलनाथ ने की थी
वल्लभाचार्य(1479)  के शिष्य
कुंभनदास(1468-)-क्षत्रिय) यत्र-तत्र फुटकल पद मिलते हैं ।
सूरदास(1478-1583 सारस्वत ब्राह्मण) सूर सागर साहित्य लहरी,सूर सारावली
परमानन्ददास(1493)कान्यकुब्ज ब्राह्मण) परमानन्दसागर
कृष्णदास(1496)कुनबी (शूद्र) जुगलमान चरित्र, प्रेमतत्व निरुपण भ्रमरगीत
विट्ठलनाथ के शिष्य
गोविन्द स्वामी(1505) 
छीत स्वामी(1515)चतुर्वेदी ब्राह्मण
चतुर्भुजदास(1530) क्षत्रिय) द्वादश यश भक्ति प्रताप हित जू को मंगल
नन्ददास(1433)दूबे ब्राह्मण) रासपंचाध्यायी(रोला छंद में),सिद्धांतपंचाध्यायी, रुप मंजरी, रसमंजरी, मान मंजरी विरह मंजरी, नाम चिन्तामणि माला, अनेकार्थराममाला(कोश),दानलीला,मानलीला,अनेकार्थमंजरी, ज्ञानमंजरी,श्याम सगाई,भ्रमरगीत,सुदामाचरित्र,हितोपदेश(गद्य),नासिकेतपुराण(गद्य)
निम्बार्क संप्रदाय के कवि
श्री भट्ट-युगल शतक, आदि बानी
हरिव्यासदेव-
परशुराम देव-
राधावल्लभ संप्रदाय के कवि
हित हरिवंश-राधासुधानिधि,हित चौरासी
दामोदरदास-
हरिराम व्यास-रासपंचाध्यायी,नवरत्न,व्यासवाणी,रागमाला
चतुर्भुजदास-
ध्रुवदास-40 ग्रंथों की रचना की
नेही नागरी दास-
हरिदासी संप्रदाय के कवि
हरिदास-पद, हरिदास की वानी
जगन्नाथ गोस्वामी-
बीठन विपुल-
बिहारिनदास-
नागरी दास-
सरसदास-
चैतन्य संप्रदाय के कवि
रामराय-
सूरदास मदनमोहन-
गदादर भट्ट-बानी,ध्यानमाला
चंद्रगोपाल-
भगवानदास-
माधवदास माधुरी
भगवत मुदित-अनन्यरसिक माल


प्रेमाश्रयी शाखा
असाइत-हंसावली(1370)-डा. नगेन्द्र ने प्रथम कवि माना ।राजस्थानी भाषा का प्रयोग ।स्रोत- विक्रम और वैताल की कथा । नायक- राजकुमार, नायिका- पाटन की राजकुमारी हंसावली
मुल्ला दाउद- चांदायन(1379)-रामकुमार वर्मा ने इन्हें प्रथम कवि माना ।माता प्रसाद गुप्त ने इसका मूल नाम ‘लोकरहा’ या ‘लोरकथा’ माना है। नायक- लोर, नायिका- चन्दा । भाषा-अवधी
दामोदर कवि-लखनसेन पद्मावती कथा(1459)भाषा-राजस्थानी वीर कथा । नायक-राजा लक्ष्मणसेन, नायिका- पद्मावती
ईश्वरदास-सत्यवती कथा (1501) डा0 हजारी प्रसाद द्विवेदी ने इन्हें प्रथम कवि माना । भाषा-अवधी । नायक-ऋतुपर्ण, नायिका-सत्यवती
कुतुबन- मृगावती (1503)रामचन्द्र शुक्ल ने इन्हे सूफी काव्य का प्रथम कवि माना है ।भाषा-अवधी । कथा की परिणति अपभ्रंश की जैनकाव्यों की परम्परा के अनुसार शांत रस मे होती है । नायक-राजकुमार, नायिका-मृगावती
गणपति-माधवानल कामकन्दला (1527)-भाषा-राजस्थानी । नायक-माधव, नायिका-कामकन्दला । केवल दोहे में लिखा गया है ।
मलिक मुहम्मद जायसी–पद्मावत (1540)भाषा-अवधी । नायक-चित्तौड़ नरेश रतनसेन, नायिका- पद्मावती
मंझन-मधुमालती(1545)इसमें नायक बहुपत्नीवादी नही है । भाषा-अवधी
कुशललाभ-माधवानल कामकंदला चौपाई(1556)
नारायणदास-छिताई वार्ता(1590)
उस्मान-चित्रावली(1613)
जानकवि-नल-दमयन्ती कथा(1613)
पुहकर कवि-रसरतन(1618)
शेखनवी-ज्ञानदीप(1619)
नरपति व्यास- नल-दमयन्ती(1625)
मुकुन्द सिंह- नलचरित्र(1641)
दुखरनदास- पुहुपावती(1669)
कासिमशाह-हंस जवाहिर(1731)
नूर मुहम्मद-इन्द्रावती(1744) अनुराग बाँसुरी(1764)रौजतुल हकायक
शेख निसार-युसुफ-जुलेखा(1720)
संप्रदाय


केशव(1555-1617)
ओरक्षा नरेश महाराजा रामसिंह के भाई इन्द्रजीत सिंह के सभा कवि थे । शुक्ल जी ने 7 ग्रंथ माना है ।
केशवदास कठिन काव्य के प्रेत थे- शुक्ल जी
केशव को कवि हृदय नही मिला था उनमें वह सहृदयता व भावुकता न थी जो एक कवि में होनी चाहिए -शुक्लजी
रसिकप्रिया(1591)
कविप्रिया(1601)
रामचंद्रिका (1601)-यह छन्दों का अजायबघर है ।
वीरसिंहदेव चरित(1607), रतनबावनी(1607), विज्ञानगीता(1610)
जहाँगीर जसचंद्रिका(1612), नखशिख, छंदमाला |
चिन्तामणि त्रिपाठी(1609-1685)’मणिमाल’
नागपुर के भोंसला राजा मकरंदशाह के राजाश्रित कवि
रस विलास
काव्य विवेक छन्द विचार काव्य प्रकाश श्रृंगार मंजरी कृष्ण चरित्र कवि कुल कल्पतरु(काव्यप्रकाश का अनुवाद )  कवित्त विचार रामायण
ये चारों भाई कवि थे- चिन्तामणि, भूषण, मतिराम, जटाशंकर                        
                        मतिराम(1617)
बूँदी के महाराज भावसिंह के दरबार मेंरहते थे ।
फूल-मंजरी-फारसी में इसे गुल-ए-आफ़्शा कहते हैं । जहाँगीर के आदेश पर इसकी रचना की
ललित-ललाम(1619)
मतिराम-सतसई 
रसराज(1633-43),

भिखारीदास(1725-1760)  
रससारांश (1742)
छंदार्णव पिंगल(1742)
काव्यनिर्णय(1746),
श्रृंगारनिर्णय(1750)
देव(1673-1767)  
भावविलास(1689)- देव का पहला ग्रंथ है।यह पंच विलासों में विभक्त है । 39 अलंकारो का विवेचन
भवानीविलास
कुशलविलास,
अष्टयाम,
सुमिल विनोद,
सुजानविनोद,
काव्यरसायन,
प्रेमदीपिका
देवमाया प्रपंच

भूषण
शिवराज भूषण(1673)   
शिवा बावनी और
छत्रसाल दशक

पद्माकर(1753-1833) 
हिम्मतबहादुर विरुदावली, पद्माभरण, जगद्विनोद(1803-1821), रामरसायन, गंगा लहरी
रूपसाहि-रूपविलास'(1756)
महाराज रामसिंह- अलंकार दर्पण, रसनिवास(1782),रसविनोद (1803)
महाराज जसवंत सिंह- भाषाभूषण, अपरोक्ष सिद्धान्त, अनुभवप्रकाश,आनन्दविलास, सिद्धान्तबोध,सिद्धांतसार,                    प्रबोधचंद्रोदय नाटक, स्फुट छंद ।
ग्वाल कवि-रसिकानंद (अलंकार), रसरंग(1847), कृष्णजू को नखशिख(1827) दूषणदर्पण(1734), हम्मीर हठ (1824) गोपीपच्चीसी।
प्रतापसाहि-व्यंग्यार्थकौमुदी(1825), काव्यविलास(1829) , जयसिंहप्रकाश (1825),श्रृंगारमंजरी (संवत् (1832) श्रृंगारशिरोमणि (1837), अलंकारचिंतामणि (1837),  काव्यविनोद(1839), रसराज की टीका (1839), रत्नचंद्रिका की टीका, ( 1839), जुगल नखशिख (सीता राम का नखशिख वर्णन), बलभद्र नखशिख की टीका।
रसिक गोविंद-रसिकगोविंदानंदघन
मंडनरसरत्नावली, रसविलास, जनकपचीसी, जानकी जू को ब्याह, नैन पचासा।
कुलपति मिश्र-द्रोणपर्व (1680)युक्तितरंगिणी (1686)नखशिख, संग्रहसार, गुण रसरहस्य(1670)
सुखदेव मिश्र-वृत्तविचार (1671)छंदविचार, फाजिलअलीप्रकाश, रसार्णव, श्रृंगारलता, अध्यात्मप्रकाश (1698)दशरथ राय।
कालिदास त्रिवेदी-वर-वधू-विनोद,जँजीराबन्द, कालिदास हजारा राधामाधव बुधमिलन विनोद
सुरति मिश्र-अलंकारमाला, रसरत्नमाला,  रससरस,  रसग्राहकचंद्रिका, नखशिख, काव्यसिध्दांत,  रसरत्नाकर।
कवीन्द्र उदयनाथ- 'विनोदचंद्रिका(1720) ,रसचंद्रोदय (1747)
श्रीपति- कविकल्पद्रुम,  रससागर,  अनुप्रासविनोद,  विक्रमविलास, सरोज कलिका,  अलंकारगंगा।
रसिक सुमति-'अलंकारचंद्रोदय
तोषनिधि- 'सुधानिधि(1734)
सोमनाथ- कृष्ण लीलावती पंचाध्यायी (1743),सुजानविलास (सिंहासन बत्तीसी, (1750),माधवविनोद नाटक (1752)
रसलीन-रसप्रबोध(1742), (1737),
दूलह-कविकुलकंठाभरण'
बेनी बंदीजन- टिकैतरायप्रकाश रसविलासअवध के वजीर के यहाँ रहते थे बेनी प्रवीन-श्रृंगारभूषण,  नवरसतरंग(1817) नानारावप्रकाश
रीतिकालीन प्रबंध काव्य
चिंतामणि-रामायण रामाश्वमेध कृष्ण चरित्र
गोविंद सिंह-चंडी चरित्र
मंडन-जानकी जू का ब्याह
कुलपति-द्रोणपर्व संग्रामसार
लाल कवि-छत्रप्रकाश
सूरति मिश्र-रामचरित श्रीकृष्णचरित
श्री धर-जंगनामा
सोमनाथ-पंचाध्यायी सुजान विलास
रघुनाथ-जगतमोहन
गुमान मिश्र-नैषधचरित
सूदन-सुजान चरित
राम सिंह-जुगल विलास
चंदन-सीता वसंत
रसिक गोविंद- रामायण सूचनिका
ग्वाल-हम्मीर हठ विजयविनोद, गोपपच्चीसी
चन्द्रशेखर वाजपेयी-हम्मीरहठ
रीतिकालीन नीतिकाव्य
वृंद(1704 मेड़ता)-वृंद सतसई
गिरिधर कविराय(1743)-
बैताल(1782)
सम्मन(1777 मल्लांवा हरदोई)-
रामसहायदास(1703-1823 वाराणसी)- ककहरा
दीन दयाल गिरि(1802 गयाघाट वाराणसी)-अन्योक्ति कल्पद्रुम
रीतिकालीन नाटक
जसवन्त सिंह- प्रबोध चन्द्रोदय नाटक
राम- हनुमान नाटक
नेवाज- शकुन्तला नाटक
सोमनाथ-माधवविनोद नाटक
देव- देवमायाप्रपंच
ब्रजवासीदास- प्रबोधचन्द्रोदय नाटक
रस से संबंधित रीतिकाव्य
वीरकाव्य
लाल कवि पद्माकर सूदन गुमान खुमान जोधराज बांकीदासरामचन्द्र सबलसिंह चौहान ब्रजनिधि



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हमारे बारे में

मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
संपर्क सूत्र -8009992553
फेसबुक - 'Chandra dev Tripathi 'Atul'
इमेल- atul15290@gmail.com
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