ज्ञानाश्रयी शाखा (सन्त काव्य)
विशेषताएँ
- सभी सन्त निर्गुण ईश्वर में विश्वास रखते हैं। निर्गुण ईश्वर ही घट-घट में व्याप्त है और एकमात्र ज्ञानगम्य है। वह अविगत है उसे बाहर ढूढ़ने की आवश्यकता नहीं है
- भक्ति की जगह ज्ञान को अधिक महत्व दिया गया है।
- सन्त कवियों ने अवतारवाद एवं बहुदेववाद का निर्भीकतापूर्वक खण्डन किया। शंकर का अद्वैतवाद एवं इस्लाम पंथ का एकेश्वरवाद इनकी कविताओं के मूल में है।
- सभी सन्त कवियों ने गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया, कबीरदास जी का मानन था कि रामकृपा तभी होती है जब गुरु की कृपा होती है।
- समस्त सन्त कवियों ने जाँति-पाँति, वर्ग-भेद,ऊँच-नीच,छुआछूत, एवं हिन्दू मुसलमान का प्रबल विरोध किया। हिन्दू -मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए सामान्य भक्तिमार्ग की प्रतिष्ठा की।
- सिद्धों एवं नाथपं थियों से प्रभावित होकर प्रायः सभी सन्त कवियों ने रूढ़ियों एवं आडम्बरों का विरोध किया, मूर्तिपूजा, तीर्थ-व्रत, हज-नमाज, रोजा सहित सभी बाह्याडम्बरों का कबीरदास जी ने डटकर विरोध किया है।
- प्रेम और विरहानुभूति की अभिव्यक्ति सन्तकाव्य की प्रमुख विशेषता है। इस काव्य में अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है। प्रणयानुभूति के क्षेत्र में पहुँचकर ये खण्डन-मण्डन की प्रवृत्ति को भूल जाते हैं।
- सन्त संप्रदाय में रहस्यवाद शंकर के अद्वैतवाद से प्रभावित है,जिस पर योग का भी स्पष्ट प्रभाव है। सूफियों का भी प्रभाव इनके रहस्यवाद पर है
- सन्त काव्य में ईश्वर की प्राप्ति के लिए नाम स्मरण को परमावश्यक माना। वेद-शास्त्र का खण्डन करके सहज सुमिरन को अधिक प्रश्रय दिया
- इनकी कविताओं में लोक-संग्रह की भावना है,व्यक्तिगत अनुभूतियों की प्रधानता है, कागज-लेखी की जगह आखिन-देखी का आग्रह है, ब्रहम और जीव में कोई अन्तर नहीं है उसमें दिव्य रस की आद्रता है, वासना की अविलता नहीं। माया से सावधान रहने का उपदेश है तथा जीवन पानी तेरा बुदबुदा और प्रभातकालीन तारों जैसा निस्सार है।
- सन्त कवियों ने नारी को माया का प्रतीक माना और कठोर निन्दा की कनक-कामिनी को दुर्गम घाटिया माना।
- सन्त कवियों की भाषा सामान्य लोक जीवन की भाषा है। प्रायः सन्त कवि पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए उनकी भाषा में उत्कर्ष नहीं है। कबीर की भाषा को पंचमेल खिचड़ी कहा जाता है। प्रबन्ध काव्य की जगह मुक्तक का प्रयोग सर्वाधिक है। काव्यशास्त्र का ज्ञान न होने से छन्द,अलंकार,रस योजना का अभाव है
- सम्पूर्ण सन्तकाव्य सहजानुभूति का काव्य है, इसमें काव्यशास्त्र की कसौटी नहीं है
© ज्ञानाश्रयी शाखा (सन्त काव्य) – Paramhans Pathshala