भाषा-विज्ञान की परिभाषा, अंग, महत्व, उपयोगिता।

   भाषा-विज्ञान की परिभाषा, अंग, महत्व, उपयोगिता। 

भाषा-विज्ञान की परिभाषा-
अध्ययन के विषयों में भाषा-विज्ञान का महत्वपूर्ण स्थान है। अपने अपने आधुनिक रूप में भाषा-विज्ञान पाश्चात्य विद्वानों की देन है। भारत में भी इसके अध्ययन की परम्परा प्राचीन काल से उपलब्ध होती है। शिक्षा, निरुक्त, प्रातिशाख्य महाभाष्य और वाक्यपदीयम् के अतिरिक्त भारतीय दर्शन-ग्रन्थों तथा साहित्यशास्त्रीय ग्रन्थों में भाषा विचार-विषयक सामग्री उपलब्ध होती है। आधुनिक भाषाविज्ञान का प्रारम्भ सन 1786 ई० में सर विलियम जोन्स (Sir William Jones) द्वारा किया गया। उन्होंने संस्कृत भाषा का अध्ययन करते समय संस्कृत की लैटिन और ग्रीक से अनेक अंशों में समानता प्राप्त की और इसके तुलनात्मक अध्ययन पर बल दिया था, सर विलियम जोन्स द्वारा डाली गयी नींव ही आज भाषा-विज्ञान के रूप में प्रसिद्ध है।
पाश्चात्य देशों में भाषा-विज्ञान का नामकरण विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है। सर्वप्रथम इसे कम्पेरेटिव ग्रामर (Comparative Grammar) नाम दिया गया। बाद में कम्पेरेटिव फिलॉलोजी (Comparative Philology) नाम दिया गया, भाषा-विज्ञान सदा तुलनात्मक (Comparative) ही होता है, अतः इसके लिए केवल फिलॉलोजी (Philology) नाम अधिक पसंद किया गया। फिलॉलोजी के लिये अंग्रेजी में साइन्स ऑफ लैंग्वेज (Science of Language) नाम प्रचलन में है। भाषा-विज्ञान के लिये डेवीज ने ग्लासोलॉजी (Glossology) तथा प्रिचर्ड ने ग्लाटोलॉजी (Glottology) नाम प्रस्तावित किये। किन्तु ये नाम प्रचलन में नहीं आ सके, फ्रांस में भाषा-विज्ञान के लिये लिंग्विस्टिक (Linguistique) शब्द का प्रचलन हुआ जिसे बाद में अंग्रेजी में लिंग्विस्टिक (Linguistics) के नाम से प्रचलन में लाया गया, यह शब्द लैटिन के लिंगुआ (Lingua-जीभ) से बना है।
फिलॉलोजी (Philology) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है- फिलोस-Philos (प्रेमी या प्रिय) तथा लोगिया-Logia (ज्ञान की शाखा या विज्ञान) आज भाषा-विज्ञान के लिये लिंग्विस्टिक्स (Linguistics) और फिलॉलॉजी (Philology) दो ही शब्दों का प्रयोग होता है। इसमें लिंग्विस्टिक्स (Linguistics) शब्द अधिक प्रचलित है।
 हिन्दी में इसके लिये तुलनात्मक भाषा-विज्ञान, भाषा-विज्ञान, भाषा-शास्त्र,तुलनात्मक भाषा-शास्त्र, शब्द-शास्त्र, भाषिकी आदि शब्द प्रचलित हैं। इनमें भाषा विज्ञान और भाषा-शास्त्र-इन दो शब्दों का अधिक व्यवहार हो रहा है। इसमें भी विज्ञान शब्द अधिक प्रचलित है। भाषा-विज्ञान में भाषा सम्बन्धी सभी प्रकार के विवेचन का समावेश हो जाता है।
परिभाषाएँ-
भाषा-विज्ञान एक समासयुक्त पद है। भाषायाः विज्ञानम्-भाषा विज्ञानम् अर्थात् भाषा का विज्ञान, भाषा-विज्ञान भाषा और विज्ञान दो शब्दों से मिलकर बना है। 'भाषा' शब्द संस्कृत की 'भास्' धातु, जिसका अर्थ व्यक्त वाक् (व्यक्तायां वाचि) है, से निष्पन्न है। विज्ञान शब्द 'वि' उपसर्गपूर्वक 'सा' धातु से अन (ल्युट्) प्रत्यय लगाने से बना है, जिसका अर्थ है विशिष्ट ज्ञान। इस प्रकार 'भाषा' के विशिष्ट ज्ञान को भाषा विज्ञान कहते हैं। भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने भाषा-विज्ञान की अनेक परिभाषायें दी हैं। कुछ परिभाषायें इस प्रकार हैं-
डॉ० श्याम सुन्दर दास- “भाषा-विज्ञान उस शास्त्र को कहते हैं जिसमें भाषा मात्र के भिन्न-भिन्न अंगों और स्वरूपों का विवेचन तथा निरूपण किया जाता है।''

डॉ० श्याम सुन्दर दास- “भाषाविज्ञान, भाषा की उत्पत्ति,उसकी बनावट,उसके विकास तथा उसके ह्रास की वैज्ञानिक व्याख्या करता है।”

डॉ. मंगलदेव शास्त्री- “भाषाविज्ञान,उस विज्ञान को कहते हैं, जिसमें (क)सामान्य रूप से मानवी भाषा का,(ख) किसी विशेष भाषा की रचना और इतिहास का, अन्ततः (ग) भाषाओं या प्रादेशिक भाषाओं के वर्गों की पारस्परिक समानताओं और विशेषताओं का तुलनात्मक विचार किया जाता है।”

डॉ० बाबूराम सक्सेना –“भाषा-विज्ञान का अभिप्राय भाषा का विश्लेषण करके उसका दिग्दर्शन कराना है।''
डॉ० देवेन्द्रनाथ शर्मा“भाषा-विज्ञान का सीधा अर्थ है, भाषा का विज्ञान और विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान। इस प्रकार भाषा का विशिष्ट ज्ञान भाषा-विज्ञान कहलायेगा।''
डॉ० भोलानाथ तिवारी- "जिस विज्ञान के अन्तर्गत ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सहारे भाषा (विशिष्ट नहीं अपितु सामान्य) की उत्पत्ति, गठन, प्रकृति एवं विकास आदि की सम्यक् व्याख्या करते हुये इन सभी के विषय में सिद्धान्तों का निर्धारण हो उसे 'भाषा-विज्ञान' कहते हैं।”
‘भाषा विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें भाषा अथवा भाषाओं का एककालिक, बहुकालिक, तुलनात्मक, व्यतिरेकी अथवा अनुप्रायोगिक अध्ययन-विश्लेषण तथा तद्विषयक सिद्धांतों का निर्धारण किया जाता है।

डॉ. अम्बा प्रसाद ‘सुमन’- “भाषाविज्ञान वह विज्ञान है, जिसमें भाषाओं का सामान्य रूप से या किसी एक भाषा का विशिष्ट रूप से प्रकृति,संरचना, इतिहास,तुलना प्रयोग आदि की दृष्टि से सिद्धान्त निश्चित करते हुए, वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।

डॉ. रामेश्वरदयालु-“भाषाविज्ञान भाषासम्बन्धी समस्त तथ्यों एवं व्यापारों (Phenomenon) से सम्बन्ध रखता है। उसमें संसार की भाषाओं के गठन,इतिहास,परिवर्तन,भाषाओं के पारस्परिक सम्बन्ध,उनके पार्थक्य,पार्थक्य के कारणों एवं नियमों आदि समस्त विषयों पर विचार होता है।”

डॉ. कर्ण सिंह- “भाषाविज्ञान, वह विज्ञान है, जिसमें मानवप्रयुक्त व्यक्त वाक् का पूर्णतया वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।”

डॉ. कपिलदेव द्विवेदी- “भाषाविज्ञान वह विज्ञान है,जिसमें भाषा का सर्वांगीण विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।”

प्रो० एन० पी० गुने (N.P. Gune)---“भाषा के विज्ञान को कम्पेरेटिव फिलोलॉजी अथवा फिलोलॉजी कहते हैं, साहित्यिक दृष्टि से इसका मुख्य अर्थ भाषा का अध्ययन है।''
 (“Comparative Philology or simply Philology is the Science of language Philology strictly means the study of a language from the lterary point of view". An Introduction to Comparative Philology)
 आर० एच० राबिन्स (R.H. Robins)-भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को भाषा- विज्ञान कहा जा सकता है।”
(General Linguistics may be defined as the Science of Language") -Generalinissifice)
ग्लीसन (Gleason)-भाषा-विज्ञान भाषा की आन्तरिक रचना के अध्ययन का शास्त्र है।”
इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटैनिका-“फिलोलॉजी शब्द का अर्थ है भाषा का विज्ञान। अर्थात् भाषाओं की रचना और विकास का अध्ययन, इस दृष्टि से फिलोलॉजी से वही अर्थ लेना चाहिये जो लिंग्विस्टिक्स शब्द से लिया जाता है।”
(“The word Philology is, here, taken as meaning of science of language i.e. the study of the structure and development of languages, thus, corresponding to linguisitics........") (Encyclopaedia Britannica)

भाषा विज्ञान के अंग
भाषा-विज्ञान को विविध भागों या अंगों में विभाजित करके उनका अध्ययन किया जाता है। यह विभाजन दो भागों में किया गया है-
(1) प्रमुख अंग-भाषा के चार प्रमुख अंग माने गये हैं-1. ध्वनि (sound), 2. पद या शब्द (farm), 3. वाक्य (sentence), 4. अर्थ (meaning)। इनमें से प्रत्येक के विशेष अध्ययन के कारण भाषा-विज्ञान के चार प्रमुख अंग विकसित हो गये
1. ध्वनि विज्ञान (Phonology)
2. पद-विज्ञान या रूप-विज्ञान (Morphology)
3. वाक्य-विज्ञान (Syntax)
4. अर्थ-विज्ञान (Semantics)
(2) गौण अंग-भाषा-विज्ञान में कतिपय अन्य विषयों पर भी विवेचन किया जाता है, उन्हें इसका गौण अंग कह सकते हैं, ये गौण अंग हैं-
1. भाषा की उत्पत्ति (Origin of Language)
2. भाषाओं का वर्गीकरण (Classification of Languages)
3. कोश-विज्ञान (Lexicology)
4. लिपि-विज्ञान (Graphonomy, Graphics)
5. प्रागैतिहासिक खोज (Linguistics Palaeontology)
6. शैली-विज्ञान (Stylistics)
7. भाषिक-भूगोल (Linguistic Geography)
8. भू-भाषा-विज्ञान (Geo-linguistics)
9. समाज-भाषा-विज्ञान (Socio-linguistics)

10. मनोभाषा-विज्ञान (Psycho-linguistics)
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8 टिप्‍पणियां:

Admin ने कहा…

Helo sir good Information to your post . I love this article . Thank you sir

Admin ने कहा…

Helo sir good Information to your post . I love this article . Thank you sir

चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल' ने कहा…

धन्यवाद,

प्राणेन्द्र नाथ मिश्र ने कहा…

बहुत सुन्दर तरीके से आप ने बताया है | साधुवाद !

चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल' ने कहा…

धन्यवाद मिश्र जी ।

Unknown ने कहा…

भाषा विज्ञान के मुख्य विभागों के नाम बताइये

बेनामी ने कहा…

भाषा

Rahul Kumar ने कहा…

Sir refrence and refrence list book kya hoga

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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
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