सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निरा...
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जयशंकर प्रसाद
जयशंकर प्रसाद1.आशा सर्ग- आशा सर्ग कामयनी महाकाव्य से लिया गया है ।1.आशा सर्गऊषा सुनहले तीर बरसती,जयलक्ष्मी सी उदित हुयी ।उधर पराजित कालरात्रि भी,जल में अन्तर्निहित हुयी ।। 1वह विवर्णमुख त्रस्त प्रकृति का, आज लगा हँसने फिर से ।वर्षा बीती हुयी सृष्टि में, शरद विकास नए सिर से ।। 2नवकोमल आलोक विखरता,हिम- संसृति पर भर अनुराग ।सित सरोज...
मैथिलीशरण गुप्त
मैथिलीशरण गुप्तराधाउर्मिला का विरह वर्णनयशोधरा का विरह वर्णन (सखि वे मुझसे कहकर जाते, आर्यपुत्र दे चुके परीक्षा) 1. राधाशरण एक तेरे मैं आई,धरे रहें सब धर्म हरे !बजा तनिक तू अपनी मुरली,नाचें मेरे मर्म हरे !नहीं चाहती मैं विनिमय मेंउन वचनों का वर्म हरे !तुझको—एक तुझी को—अर्पितराधा के सब कर्म हरे !यह वृन्दावन, यह...