शिक्षाशास्त्री (B.Ed) - द्वितीय वर्ष

  


प्रथम प्रश्न पत्र

कोर्स कोड 201

शैक्षिक प्रशासन, विद्यालय प्रबन्धन एवं स्वास्थ्य शिक्षा

क्रेडिट-4                           घण्टे : 60                                पूर्णांक-80+20-100

कोर्स लक्ष्य

छात्र शैक्षिक प्रशासन को अर्थ महत्त्व एवं कार्यक्षेत्र के बारे में जान सकेंगे।

2. भारत में शैक्षिक प्रशासन के विभिन्न अभिकरणों और उनके कार्यों को समझ सकेंगे।

3. आदर्श विद्यालय भवन, खेल के मैदान एवं पुस्तकालय के स्वरूप को जान सकेंगे।

4. विद्यालय प्रबन्धन के विभिन्न तत्वों एवं मानवीय सम्बन्धों का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

5. छात्र स्वास्थ्य शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व एवं प्रकृति को जान सकेंगे।           पूर्णांक-80

 ईकाई-प्रथम

1. शैक्षिक प्रशासन का अर्थ, परिभाषा क्षेत्र, सिद्धान्त एवं प्रकार, भारत में शैक्षिक प्रशासन अभिकरण केन्द्रीय, राज्य एवं स्थानीय निकाय ।

इकाई-द्वितीय

1. विद्यालय भवन तथा उपकरण कक्षाकक्ष, क्रीडांगण, प्रयोगशाला, पुस्तकालय ।

2. समय-सारणी निर्माण के सिद्धान्त, पाठ्यसहमागी क्रियाएं-वाद विवाद संगोष्ठी, खेल,सांस्कृतिक कार्यक्रम, युवा महोत्सव एवं नेतृत्व क्षमता।

इकाई-तृतीय

1. प्रधानाध्यापक के कर्तव्य, उत्तरदायित्व एवं नेतृत्व क्षगता, शिक्षकों एवं शिक्षणेत्तर कर्मचारियों से सम्बन्ध । अभिभावक सभा।

2. विद्यालय अभिलेख-उपयोगिता प्रकार एवं रख-रखाव।

इकाई-चतुर्थ

स्वास्थ्य शिक्षा का अर्थ, परिभाषा, उददेश्य एवं महत्व।

1. मनुष्य जीवन में स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का महत्य, स्वास्थ्य सम्बन्धी सामान्य ज्ञान और अच्छी आदतें।

2 शारीरिक मानसिक अस्वस्थता से बचने के उपाय । तनाव।

3. जन स्वास्थ्य सेवायें और विद्यालय।

 सहायक ग्रन्थ

1. अग्रवाल जे.सी., स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन, दिल्ली।

2.मलैया के सी.पर्यावरण एवं पर्यवेक्षण, मध्यप्रदेश ग्रन्थ एकेडमी।

3.मेहता डी, शैक्षिक प्रबन्ध न्यू दिल्ली।

4. सफाया आर.एन.. School Administration and Organisation धनपतराय एण्ड संस दिल्ली।

5. मेहरा टी.एस. Publication Education School Curriculam.

6. Population Education for Teacher NCERT-1974.

आंतरिक आंकलन                                              पूर्णांक-20

आंतरिक आंकलन हेतु एसाइनमेन्ट, परीक्षण, प्रोजेक्ट प्रस्तुतीकरण, प्रायोगिक कार्य इत्यादि ।

 संदर्भ ग्रन्थ सूची

1. शैवी, एस.पी., स्वास्थ्य शिक्षा, कैलाश प्रिन्टिंग प्रेस, आगरा।

2. शेग जे0पी0, स्वास्थ्य शिक्षा 2009 अग्रवाल पब्लिकेशन आगरा।

3. वापट, भा.गो. शैक्षणिक संघटन, प्रशासन व प्रश्न, हीनस प्रकाशन पुणे।

4. पारसनीस, डा0 हेमलता एवं दुनाखे अरविन्द – शैक्षणिक प्रकाशन व व्यवस्थापन, नूतन प्रकाशन पुणे।

5. Sukhiya, S.P.: Educational Administration and Health Education Jyoti Printing Agra.

6. Agrawal, J.C.School Organization, Administration & Management, Boaba House Delhi.

7. Mathura, S.S., Educational Administration & Management, the Indian Publications Ambala Cantt.

B. Rai, B.C.-School organization & management, Prakashan Kendra, Lucknow.

9. Bhat, K.S. & Ravishankar, S., Administration of Education, Seema Publication,Delhi.

10. Singh, Ajmer, Essentials of physical Education, Ludhiana : Kalyani Publishers.

11. Uppal, A.K.& Gautam, G.P.Physical Education & Health, Delhi, Friends Publisher.

 

द्वितीय प्रश्न पत्र

कोर्स कोड 202

ज्ञान, पाठ्क्रम एवं मूल्याधारित शिक्षा

क्रेडिट 4                       घण्टे : 60                             पूर्णांक-80+20-100

कोर्स लक्ष्य

1. छात्राध्यापक ज्ञान और ज्ञान ग्रहण की प्रक्रिया को समझ सकेंगे।

2. छात्राध्यापक परिशुद्ध ज्ञान प्राप्ति की विधियों से अवगत होगा।

3. छात्राध्यापक पाठ्यक्रम संरचना के सिद्धान्त विधियों और उपागमों से परिचित होगे।

4. पाठ्यक्रम के अनुप्रयुक्ति में शिक्षक की भूमिका से अवगत होंगे।                         पूर्णांक-80

इकाई-प्रथम

1. ज्ञान क्या है। पाश्चात्य एवं भारतीय दृष्टिकोण अर्थ ।

2. सत्य ज्ञान प्राप्त करने के परम्परागत साधन प्रत्यक्ष अनुमान और प्राप्त प्रमाण ।

3. ज्ञान को प्रकार स्थानीय, सार्वभौमिक, सूक्ष्म स्थूल सैद्धान्तिक व्यावहारिक ।

4. शान, सूचना, विश्वास और सत्य में अन्तर ।

 इकाई-द्वितीय

1. पाठ्यक्रम-अर्थ महत्व एवं संरचना।

2 पाठ्यक्रम, पाठ्यचर्या और पाठयेत्तर क्रियाओं में अन्तर

3. पाठ्यक्रम विकास के दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक आधार।

4. पाठ्यक्रम विकारा के उपागम, बालकेन्द्रित, विषय केन्द्रित, क्रिया-केन्द्रित।

5, पाठ्यक्रम के अन्तर्दिषयी उपागम, सामाजिक विषयों का पारस्परिक सम्बन्ध, संस्कृत एवं

भारतीय भाषाओं का सम्बन्ध ।

 इकाई -तृतीय

1. मूल्य अर्थ, प्रकार और महत्व ।

2. मूल्य शिक्षा के उपागम, दार्शनिक, सामाजिक मनोवैज्ञानिक विकास।

3. मूल्य आधारित शिक्षा सम्प्रत्यय और प्रविधियां।

व्यक्ति अध्ययन विधि।

अभिवृत्यात्मक विकास विधि।

आदर्शचरित्रों का नाटकीय अनुकरण, सहसम्बन्धात्मक पाठ्यक्रम विधि ।

आंतरिक आंकलन                                                                पूर्णांक-20

आतरिक आंकलन हेतु एसाइनमेन्ट, परीक्षण, प्रोजेक्ट, प्रस्तुतीकरण, प्रायोगिक कार्य इत्यादि।

 सहायक ग्रन्थ

1. पांडेय रामसकल एवं मिश्र करूणाशंकर, मूल्य शिक्षण विनोद पुस्तक मन्दिर, 2005

2. Agrawal J.C., Handbook of Curriculum and Instruction Doaba Book House, New Delhi.

3. Carson R.N. a taxonomy of knowledge type for use in curriculum.

4. Brruner's (1996) The process of Education Harsqard Uni.Press.

5. NCERT(2005) National Curriculum Fram work New Delhi.

6. Dewey, John (1966) The child and the curriculum, The University fo Chicago Press.

 

तृतीय प्रश्न पत्र

कोर्स कोड 203

माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप एवं समावेशी शिक्षा

क्रेडिट-4                              घण्टे : 60                 पूर्णाक-80-20-100

कोर्स लक्ष्य

1. छात्राध्यापक भारत में गाध्यमिक शिक्षा के स्वरूप एवं प्रकारों के विषय में जान सकेंगे।

2 छात्राध्यापक माध्यमिक शिक्षा से सम्बन्धित्त शिक्षा नीतियों एवं आयोगों के सुझायों से अवगत होंगे।

3. छात्राध्यापक माध्यमिक शिक्षा की समस्याओं से अवगत होंगे।

4.समावेशी शिक्षा की अवधारणा एवं महत्व से अवगत होंगे।

5. समावेशी विद्यालय की प्रकृति एवं स्वर०५ से अवगत होंगे।                          पूर्णांक-80

इकाई-प्रथम  -                                                                                      

1. भारत में माध्यमिक शिक्षा का स्वरूप एवं स्थिति तथा प्राथमिक शिक्षा रो. उसका सम्बन्ध ।

2. माध्यमिक शिक्षा अभिप्राय उद्देश्य एवं क्षेत्र।

3. स्वतंत्र भारत में माध्यमिक शिक्षा का मात्रात्मक एवं गुणात्मक विकास ।

इकाई-द्वितीय

1. मध्यमिक शिक्षा का सार्वभौगीकरण।

2. मायमिक शिक्षा के पुनर्मूल्यांकन के लिए गठित आयोग एवं रागितियों से सुझावमुदालियर आयोग (1952-53), कोठारी आयोग (1964-66) नई शिक्षानीति (1986),POA(1992).

3. भारत में माध्यमिक शिक्षा का स्वररुप एवं प्रकार, विशिष्ट विद्यालय, खुला विद्यालय,वैकल्पिक विद्यालय (Alternative School) विभिन्न राज्यों में माध्यमिक शिक्षा की वर्तमान स्थिति एवं बदलते परिदृश्य ।

4. माध्यमिक शिक्षा का पाठ्यक्रम NCF 2005, माध्यमिक शिक्षा की माध्यम भाषा. कौशल आधारित माध्यमिक शिक्षा।

इकाई-तृतीय

1. माध्यमिक शिक्षा के अध्यापकों की तैयारी सेवाकालीन एवं पूर्व सेवाकालीन प्रशिक्षण।

2 अध्यापकों की श्रेणिया, वेतन व सेवा शर्ते।

3. शिक्षक संघ एवं उनकी भूमिका ।

4. पाठ्यक्रम निर्माण स्कूल प्रबन्धन एवं पाठ्यसहगामी क्रियाओं में शिक्षक की भूमिका।

5. शिक्षकों में व्यावसायिक नैतिकता एवं शिक्षणीय मूल्यों के संवर्द्धन के उपाय।

इकाई-चतुर्थ

1. समावेशी शिक्षा अवधारणा, आवश्यकता एवं महत्व विशिष्ट समावेशी एवं समाकलित शिक्षा में अन्तर।

2. आदर्श समावेशी विद्यालय का सृजन, भौतिक सुविधाये समावेशी शिक्षा के गुण ।

3. दृष्टि बाधित, श्रवण बाधित, मानसिक मन्दता अधिगम अक्षमता एवं विकलांगता से पीड़ित बालकों की विशिष्ट शैक्षिक आवश्यकतायें।

4. अक्षम बालकों के सामाजिक एवं शैक्षिक अधिकार, तत्सम्बन्धी सरकारी नीतियां एवं संस्थायें।

5. समावेशी विद्यालय के शिक्षण उपागम विशिष्ट समूहों के लिये विशेष कक्षायें, समूह दत्त कार्य अन्य उपचारात्मक युक्तियां ।

 आंतरिक आंकलन                                                                               पूर्णाक-20

आंतरिक आंकलन हेतु एसाइनमेन्ट परीदाणा, प्रोजेक्ट, प्रस्तुतीकरण, प्रायोगिक कार्य इत्यादि।

 सहायक ग्रन्थ

1. कुमार, संजीव, विशिष्ट बालक।

2. सिंघल, रमेश चन्द, माध्यमिक शिक्षा, राजस्थान ग्रन्थ एकेडमी, जयपुर।

3. अग्रवाल, जे.सी., राष्ट्रीय शिक्षा नीति, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली।

4. Narayan, J.-Educating children with learning Problems in Regular Schools, Sikandrabad, NIMH.

5. Mangal S.K. (2009) - Educating Exceptional Children: An Introduction to special education, Prentice Hall of India, Delhi,

6. Nurullah and Naik - History of Education in India, New Delhi.

7. Agrawal, j.C. - Naik, History of Education in Free India, Agra.

MHRD - Secondary Education commission report (1953) Govt. of India, New Delhi.

9. MHRD-Indian Education commission report (1966) Govt. of India, New Delhi.

10. NCERT - Fifth all India Educational Survey, Report.

11. Corbelt Jenny (2001) Supporting inclusive education Poutlodge Falmer.

 

 चतुर्थ प्रश्न पत्र

कोर्स कोड 204 (घ)

पर्यावरण शिक्षा

क्रेडिट-4                                   घण्टे : 60                         पूर्णाक-80+20-100

कोर्स लक्ष्य-

1.छात्राध्यापक पर्यावरण शिक्षा के अर्थ आवश्यकता एवं महत्व को समझ सकेंगे।

2 पर्यावरण शिक्षा के प्रति रूचि उत्पन्न हो सकेगी।

वे पर्यावरण प्रदूषण की वैश्विक समस्याओं के प्रति संवेदनशील हो सकेंगे।

4. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के प्रति उचिरा अभिवृत्ति का विकास हो सकेगा।

5. पर्यावरण सन्तुलन के प्रति उचित मूल्यों का विकास हो सकेगा।                    पूर्णांक-80

 इकाई-प्रथम

1 अर्थ आवश्यकता एवं महत्व।

2. विद्यालयीय पाठ्यक्रम में पर्यावरण शिक्षा की चमान स्थिति।

3. पर्यावरण शिक्षा के पाठ्यक्रम की विशेषतायें।

इकाई-द्वितीय

1. पर्यावरण शिक्षा के पाठ्यक्रन की विशेषलायें बहुविषयात्मक एवं सहसम्बन्धात्मक।

2. पर्यावरण शिक्षा की विधियों, योजना विधि प्रयोग, सर्वेक्षण समस्या समाधान, Video Projection

3. विद्यालयी पाठ्यक्रम में संचार साधनों की भूमिका, रेडियों टी0वी0।

इकाई-तृतीय

1 प्राकृतिक पर्यावरण एवं मनुष्य ।

2. प्राकृतिक पर्यावरण-संरचना प्रकार, कार्य, भोजन श्रृंखला।

3 संवहनीय विकास (Sustainable Development) में शिक्षा की भूमिका ।

इकाई-चतुर्थ

1. पर्यावरण-प्रदूषण, अर्थ, प्रकार, भूमिका।

2. जल, वायु व ध्वनि प्रदूषण के कारण एवं परिणाम।

3. प्रदूषण नियंत्रण के उपाय।

इकाई-पंचम

1. पर्यावरण संरक्षण की आवश्यकता।

2 वर्षा जल संचयन, ओजोन परत संरक्षण |

ग्रीन हाउस प्रभाव, ग्लोबल वार्मिग. अम्ल वर्षा।

आंतरिक आंकलन                                             पूर्णांक-20

आंतरिक आंकलन हेतु एसाइनमेन्ट, परीक्षण, प्रोजेक्ट, प्रस्तुतीकरण, प्रायोगिक कार्य इत्यादि ।

सहायक ग्रन्थ

1. व्यास हरिश्चन्द्र (2001) पर्यावरण शिक्षा नई दिल्ली विद्याविहार।

2. सक्सेना हरिमोहन (2003) पर्यावरण अध्ययन, श्री गंगानगर, अग्रवाल साहित्य सदन ।

3. श्रीवास्तव पंकज, पर्यावरण शिक्षा, भोपाल, मध्यप्रदेश ।

4. सक्सेना, ए.वी.,पर्यावरण ग्रन्थ एकादमी, नई दिल्ली, आर्य बुक डिपो।

5. UNESCO 1990 Source book in Invironment Education for.

6. Secondary School eacher Bangkok (NCERT) 1981 Environmental at School Level New Delhi. .

7. Palmen, Joy A (1998) Environmental Education in the 2th Century London.

8. Sharma R.C. 1981 Environmental Education New Delhi.

 

इन्टर्नशिप (16 सप्ताह)

लक्ष्य

विद्यालय इन्टर्नशिप का लक्ष्य व्यापक अर्थों में

व्यावसायिक क्षमताएँ

शिक्षण कौशल

इन्टर्नशिप के दौरान एक छात्राध्यापक एक पूर्णकालिक अध्यापक की भाँति कार्य करेगा और विद्यालयी गतिविधयों में भाग लेगा जैसे

1.आकलन

2.विद्यालयी अध्यापको से अन्ना क्रिया

3.छात्रों से अन्तः क्रिया

4.समुदायिक सदस्यों से अन्य क्रिया

उद्देश्य

उद्देश्य-1.(छात्राध्यापक (इन्टर्न) विद्यालय कक्षा । समुदाय के विभिन्न कार्या में भाग लेकर अपनी व्यवसायिक क्षमता का विकास करेंगे और शिक्षक की भाँति अपने व्यावसायिक दृष्टिकोण व क्षमता का विकास करेंगे साथ ही ये शिक्षक की भॉति अपनी नैतिक जिम्मेदारी को प्रदर्शित करेंगे।

(i)  छत्राध्यापक (इन्टर्न) शिक्षा के क्षेत्र से सम्बन्धित नियम परिनियम का ज्ञान प्राप्त करेंगे।

(ii) छात्राध्यापक (इन्टर्न) विद्यालय प्रशासक निरीक्षक छात्र नेता, कर्मचारी मित्र इत्यादि से शिक्षण व्यवसाय के विषय में अन्त क्रियाकरके अपने व्यवहार में व्यावसायिक परिपक्वता अभिवृत्ति इत्यादि का विकास करेंगे।

ii) छायाध्यापक (इन्टर्न) व्यावसायिक रूथियो, क्षमताओं और कमजोरियों के विषय में जानेंगे ।

(iv) छात्राध्यापक (इन्टर्न) व्यावसायिक कर्तव्यों का प्रदर्शन कक्षा-कक्ष प्रबन्धन के माध्यम से करेगें।

 इसके अतिरिक्त समय प्रबन्धन, लेखन, हस्तादार मूल्यांकन इत्यादि कार्यों को सीखेंगे।

 

उद्देश्य(2) छात्रध्यापक (इन्टर्न) आवश्यक कौशलों को सीखेगें व उनका प्रदर्शन करेगें।

 (संप्रेषण,  प्रशासनिक -प्रबन्धन)

(i) छात्राध्यापक कक्षाकक्ष, प्रयोगशाला, खेल का मैदान, कैन्टीन, पुस्तकालय,कार्यालय, मनोरंजन इत्यादि के कार्यों में एक शिक्षक प्रबन्धक और प्रशासक की भूमिका का प्रदर्शन करेंगे।

(ii) छात्राध्यापक अपनी सीमाओं को एक शिक्षक, प्रशासक व प्रबन्धक के रूप में जान सकेगे। विभिन्न परिस्थियो. सहयोगियों, विद्यार्थियों के साथ अनुभव और क्रियाकलापों के दौरान सीखेंगे।

(iii) छात्राध्यापक प्रभावशाली ढंग के छात्रों के सम्पूर्ण पक्ष का आंकलन और उनका रिकार्ड रखने के साथ ही कठिन परिस्थियों में follow भी करेगें।

(iv) छात्राध्यापक पूर्व तैयारी के साथ विद्यालय की प्रत्येक गतिविध में भाग लेगे।

(v) छात्राध्यापक आवश्यकतानुसार व्यावसायिक क्षमता का प्रदर्शन करेगें (व्यक्ति समूह विद्यालयी मुददे के विषय में रिपोर्ट देना, विचार-विमर्श करना सूचना देना इत्यादि)

उद्देश्य (3) - विभिन्नता व अनेकता में कार्य करने की क्षमता का विकास करना जैसे (वैक्तिक भिन्नता. सारकृतिक भिन्नता विशिष्ट योग्यता,लैंगिक असमानता ) अतः एक समावेशी तंत्र की स्थापना का कौशल विकसित करना।

(i) छात्राध्यापक स्वंय की अभिवृत्ति, पूर्वाग्रह व्यवहार को जाँच सकेगें।

(ii) विशिष्ट छात्रों को सिखाने की योग्यता विकसित कर सकेगें।

(iii) एक्सपर्ट से छात्राध्यापक चर्चा कर सकेगें।

उद्देश्य (04) (i) छात्राध्यापक अभिभावकों व समुदाय के लोगो को व विद्यालय प्रांगण के बाहर के लोगों को अंतरविषयी विशेषज्ञों व अन्य अध्यापक प्रशिक्षण संस्थानों के सहायोग से व्यावसायिक योग्यता का प्रदर्शन करेंगे।

(ii) -छात्राध्यापक सामुदायिक कार्थो, स्वास्थ्य केन्द्रों, विद्यालय स्टाफ और अन्य विद्यालय शिक्षकों, विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों अध्यापक प्रशिक्षण विभागों,प्रशासकीय इकाईयों संगठनों (NCC, रेलवे बोर्ड इत्यादि) के कार्यों में प्रतिभागिता करने की क्षमता का प्रदर्शन करना।

(iii) छात्राध्यापक विद्यालय की अभिभावक-शिक्षक गोष्ठियों में उपस्थित रहेंगे। साथ ही सतत और व्यापक मूल्यांकन में शामिल होंगे।

4 टिप्‍पणियां:

बृजेश श्रीमुख ने कहा…

आदरणीय भाई साहब नमस्कार निश्चित रूप से आप की पहल संस्कृत को और भी समृद्ध करने की ओर बढ़ता हुआ एक सकारात्मक कदम है जो निश्चित रूप से प्रशंसनीय है ऐसा देखा जाता है कि संस्कृत विद्यालयों में डिजिटलीकरण का अभाव है कभी शिक्षा शास्त्र के पाठ्यक्रम के संदर्भ में विद्यार्थी परेशान होता है लेकिन आपके इस कार्य में उनकी समस्या को समाप्त कर सहज में ही पाठ्यक्रम सामग्री उपलब्ध करा दें आगे भी इसी संदर्भ में कार्य करते रहे और संस्कृत भाषा संस्कृत को बल देते रहे हृदय से आभार एवं धन्यवाद जी धन्यवाद

चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल' ने कहा…

आपको सहृदय धन्यवाद, हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

Abhishek Mishra ने कहा…

बहुत बहुत आभार भैया ।

चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल' ने कहा…

धन्यवाद भाई, हौसला बढ़ाने के लिए ।

शास्त्री I & II सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

आचार्य प्रथम एवं द्वितीय सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

आचार्य तृतीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

पूर्वमध्यमा प्रथम (9)- पाठ्यपुस्तक

पूर्वमध्यमा द्वितीय (10) पाठ्यपुस्तक

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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
संपर्क सूत्र -8009992553
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