ध्वन्यालोक-आनन्दवर्धन


॥ प्रथम उद्योतः ॥

स्वेच्छाकेसरिणः  स्वच्छस्वच्छायायासितेन्दवः ।
त्रायन्तां वो मधुरिपोः प्रपन्नार्तिच्छिदो नखाः ॥

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