प्रतिशोध

प्रतिशोध- डॉ. रमेशचन्द्र पाण्डेय

1.राजकुमार शिखण्डी ।                            पाठ 01 से पाठ 03 तक यहाँ पढें।
2. अम्बा और होत्रवाहन ।                          पाठ 04 से पाठ 08 तक यहाँ पढें।
3.महर्षि ऋचीक और महराज गाधि ।          पाठ 09 से पाठ 12 तक यहाँ पढें।
4. यमदग्नि और रेणुका                               पाठ 13 से पाठ 16 तक यहाँ पढें।
5.सहस्त्रबाहु और यमदग्नि ।                       पाठ 17  के लिए यहाँ  क्लिक करें
6. सहस्त्रबाहु और कामधेनु ।                      पाठ 18 से पाठ 21 तक यहाँ पढें।
7. कश्यप और परशुराम ।
8. सृंजय और परशुराम ।
9. भीष्म और परशुराम का संग्राम ।
10. क्षत्रियों को शिक्षा न देने की प्रतिज्ञा ।
11. अपरिहार्य महाभारत
12.सेनापति का चयन ।
13. महाभारत का युद्ध आरम्भ ।
14. भीष्म का (इच्छा-मृत्यु का ) कवच ।
15. श्रीकृष्ण द्वारा हथियार उठाना ।
16. भीष्म का शिखंडी से सामना ।
17. प्रधान सेनापति ।
18. सेनापति- अंगराज कर्ण ।
19. सेनापति अश्वत्थामा ।
20. भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को शान्ति-उपदेश ।
21. भीष्म का महा प्रस्थान ।



प्रतिशोध में कुल 21 अध्याय हैं । यह महाभारत के कथानकों का हिन्दी अनुवाद है । महाभारत का युद्ध प्रतिशोध का ही युद्ध है । भीष्म की प्रतिज्ञा से लेकर अर्जुन पुत्र के वध तक महाभारत प्रतिशोध से भरा पड़ा है ।  गान्धारी का अपहरण, द्रुपद के अपमान का बदला, द्रौपदी के चीर हरण का बदला, लाक्षागृह में पाँण्डवों को जलाना, अभिमन्यु के मृत्यु का बदला, अश्वत्थामा, शिशुपाल का प्रतिशोध इत्यादि कथानकों को एक जगह पिरोकर यह कथानक साहित्य तैयार हुआ है ।

(संक्षेपीकरण/विवरणीकरण)
'प्रतिशोध' से एक प्रश्न दस अंक का पूछा जाएगा जिसमें एक गद्यांश दिया जाएगा और उसका (संक्षेपीकरण/विवरणीकरण) पूछा जाएगा । (संक्षेपीकरण/विवरणीकरण) इसका अर्थ है कि गद्यांश पढ़कर हमें उस कहानी को पूर्ण कर देना है अर्थात यह कहानी किसके संदर्भ में कही गयी है और इसका कथानक क्या है । हमें इसका संदर्भ भी देना है-

1.अभी ठीक से सो भी न सकी थी कि उसके कान में एक गम्भीर घोष सुनाई पड़ा-‘इस आततायी का वध कोई नहीं कर सकता ।धर्म-धुरन्धर बनने का ढ़ोंग करता है । यह दुरधर्ष बड़ा पापी है । इस गुरुद्रोही को मारकर ही मुझे चैन मिलेगा । भगवान भार्गव केवल उसके गुरु ही नहीं, मेरे भी पथ-प्रदर्शक हैं । मैं उन्हें अपना गुरु मानता हूँ । मेरे जीवन का मात्र यहीं उद्देश्य है कि पापी भीष्म की इच्छा-मृत्यु के कवच के बावजूद उसका सर्वनाश कर सकूँ ।’
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'प्रतिशोध से लिया गया है इसके लेखक 'डॉ. रमेशचन्द्र पाण्डेय' जी हैं ।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में शिखंडी के पत्नी द्वारा देखे गये स्वप्न का वर्णन है । 
विवरणीकरण-शिखंडी की पत्नी ने देखा कि शिखंडी किसी पर क्रोधित होकर उसे अनाप-शनाप कह रहा है, शिखंडी की पत्नी से शिखंडी को जगाया और उससे इसका रहस्य पूछा । शिखंडी ने कहा- पूर्व जन्म में मैं काशिराज तनया अंबा थी ।


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शास्त्री I & II सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

आचार्य प्रथम एवं द्वितीय सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

आचार्य तृतीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

पूर्वमध्यमा प्रथम (9)- पाठ्यपुस्तक

पूर्वमध्यमा द्वितीय (10) पाठ्यपुस्तक

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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
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