प्रतिशोध- डॉ. रमेशचन्द्र पाण्डेय
17. प्रधान सेनापति ।
18. सेनापति- अंगराज कर्ण ।
19. सेनापति अश्वत्थामा ।
20. भीष्म द्वारा युधिष्ठिर को शान्ति-उपदेश ।
21. भीष्म का महा प्रस्थान ।
प्रतिशोध में कुल 21 अध्याय हैं । यह महाभारत के कथानकों का हिन्दी अनुवाद है । महाभारत का युद्ध प्रतिशोध का ही युद्ध है । भीष्म की प्रतिज्ञा से लेकर अर्जुन पुत्र के वध तक महाभारत प्रतिशोध से भरा पड़ा है । गान्धारी का अपहरण, द्रुपद के अपमान का बदला, द्रौपदी के चीर हरण का बदला, लाक्षागृह में पाँण्डवों को जलाना, अभिमन्यु के मृत्यु का बदला, अश्वत्थामा, शिशुपाल का प्रतिशोध इत्यादि कथानकों को एक जगह पिरोकर यह कथानक साहित्य तैयार हुआ है ।
(संक्षेपीकरण/विवरणीकरण)
'प्रतिशोध' से एक प्रश्न दस अंक का पूछा जाएगा जिसमें एक गद्यांश दिया जाएगा और उसका (संक्षेपीकरण/विवरणीकरण) पूछा जाएगा । (संक्षेपीकरण/विवरणीकरण) इसका अर्थ है कि गद्यांश पढ़कर हमें उस कहानी को पूर्ण कर देना है अर्थात यह कहानी किसके संदर्भ में कही गयी है और इसका कथानक क्या है । हमें इसका संदर्भ भी देना है-
1.अभी ठीक से सो भी न सकी थी कि उसके कान में एक गम्भीर घोष सुनाई पड़ा-‘इस आततायी का वध कोई नहीं कर सकता ।धर्म-धुरन्धर बनने का ढ़ोंग करता है । यह दुरधर्ष बड़ा पापी है । इस गुरुद्रोही को मारकर ही मुझे चैन मिलेगा । भगवान भार्गव केवल उसके गुरु ही नहीं, मेरे भी पथ-प्रदर्शक हैं । मैं उन्हें अपना गुरु मानता हूँ । मेरे जीवन का मात्र यहीं उद्देश्य है कि पापी भीष्म की इच्छा-मृत्यु के कवच के बावजूद उसका सर्वनाश कर सकूँ ।’
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'प्रतिशोध से लिया गया है इसके लेखक 'डॉ. रमेशचन्द्र पाण्डेय' जी हैं ।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में शिखंडी के पत्नी द्वारा देखे गये स्वप्न का वर्णन है ।
विवरणीकरण-शिखंडी की पत्नी ने देखा कि शिखंडी किसी पर क्रोधित होकर उसे अनाप-शनाप कह रहा है, शिखंडी की पत्नी से शिखंडी को जगाया और उससे इसका रहस्य पूछा । शिखंडी ने कहा- पूर्व जन्म में मैं काशिराज तनया अंबा थी ।
(संक्षेपीकरण/विवरणीकरण)
'प्रतिशोध' से एक प्रश्न दस अंक का पूछा जाएगा जिसमें एक गद्यांश दिया जाएगा और उसका (संक्षेपीकरण/विवरणीकरण) पूछा जाएगा । (संक्षेपीकरण/विवरणीकरण) इसका अर्थ है कि गद्यांश पढ़कर हमें उस कहानी को पूर्ण कर देना है अर्थात यह कहानी किसके संदर्भ में कही गयी है और इसका कथानक क्या है । हमें इसका संदर्भ भी देना है-
1.अभी ठीक से सो भी न सकी थी कि उसके कान में एक गम्भीर घोष सुनाई पड़ा-‘इस आततायी का वध कोई नहीं कर सकता ।धर्म-धुरन्धर बनने का ढ़ोंग करता है । यह दुरधर्ष बड़ा पापी है । इस गुरुद्रोही को मारकर ही मुझे चैन मिलेगा । भगवान भार्गव केवल उसके गुरु ही नहीं, मेरे भी पथ-प्रदर्शक हैं । मैं उन्हें अपना गुरु मानता हूँ । मेरे जीवन का मात्र यहीं उद्देश्य है कि पापी भीष्म की इच्छा-मृत्यु के कवच के बावजूद उसका सर्वनाश कर सकूँ ।’
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'प्रतिशोध से लिया गया है इसके लेखक 'डॉ. रमेशचन्द्र पाण्डेय' जी हैं ।
प्रसंग- प्रस्तुत गद्यांश में शिखंडी के पत्नी द्वारा देखे गये स्वप्न का वर्णन है ।
विवरणीकरण-शिखंडी की पत्नी ने देखा कि शिखंडी किसी पर क्रोधित होकर उसे अनाप-शनाप कह रहा है, शिखंडी की पत्नी से शिखंडी को जगाया और उससे इसका रहस्य पूछा । शिखंडी ने कहा- पूर्व जन्म में मैं काशिराज तनया अंबा थी ।
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