श्रीकृष्ण द्वारा हथियार उठाना ।
आज युद्ध का नवाँ दिन था। दुर्योधन प्रात: उठकर भीष्म के पास जाकर अमर्षपूर्वक बोला-पितामह आपका पाण्डवों के प्रति प्रेम जग-जाहिर है। युद्धकाल में भी उन्हें आपका परामर्श प्राप्त हो रहा है। मैं इससे अत्यन्त निराश हैं। भीष्म ने आग्नेय दृष्टि से देखते हुए दुर्योधन से कहा--मुझे क्या करना है, तुमसे निर्देश लेना पड़ेगा? मैं आज निर्णायक युद्ध करूँगा। यह कहकर भीष्म ने युद्ध-भूमि पहुँच आज की दुर्गम व्यूहरचना प्रारम्भ की। आज भूखे-बाघ की भाँति भीष्म का आभामण्डल दमक रहा था। आज कपिध्वज का सामना पड़ते ही भीष्म ने घोर गर्जना को-माधव! आज मैंने प्रण किया है कि आपसे युद्धभूमि में अस्त्र उठवाकर रहूँगा; अन्यथा आज पार्थ का वध करके अपना परमार्थ नष्ट कर लूंगा। यदि आप पार्थ को युद्ध में विजय दिलाना चाहते हैं तो आपको स्वयं मुझसे युद्ध करना होगा।
आज भीष्म का भयानक युद्ध प्रारम्भ हुआ। अर्जुन ने एकाग्रतापूर्वक उनका सामना किया। भीष्म के आगे अर्जुन का हस्तकौशल काम नहीं आ रहा था। उनके एक-एक करके सारे वाण विफल हो रहे थे। माधव ने रथ को आग बढ़ाया। भीष्म ने उस ओर से भी अर्जुन को घेर लिया। पुन: युद्ध ने जोर पकड़ लिया। आजका घनघोर युद्ध देखकर लोगों को परशुराम के साथ युद्ध का स्मरण हो रहा था। भीष्म ने वाणों की वर्षा करके अर्जुन का रथ ही ढँक दिया। श्रीकृष्ण ने अर्जुन की तरफ कई बार संकेत करके निर्णायक युद्ध करने को प्रेरित किया। भीष्म ने आज सचमुच संहारक महाकाल का रूप धारण कर लिया। गाण्डीव की प्रत्यञ्चा भीष्म ने कई बार काट डाली । पुनः पुनः उहे धनुष पर डोरी बाँधना पड़ रहा था। गाण्डीव से आज वाण ही नहीं निकल पा रहे थे। भीष्म का यह अद्भुत रण-कौशल अर्जुन ने आज तक नहीं देखा था उन्हें युद्ध में अपनी पराजय स्पष्ट दिखाई देने लगी। भीष्म के वाणों ने अर्जुन का शरीर क्षत-विक्षत कर डाला। उनका सम्पूर्ण शरीर रक्तरंजित हो उठा।
आज युधिष्ठिर को देवदत्त शंखनाद नहीं सुनाई पड़ रहा था। कभी-कभी पाञ्चजन्य अवश्य बज उठता था। अर्जुन को किसी विपत्ति में फँसा जानकर युधिष्ठिर ने सेनापति धृष्टद्युम्न के पास जाकर अपनी चिन्ता जताई। सेनापति ने महाराज को आश्वस्त किया-आप निश्चिंत रहें, श्रीकृष्ण के रहते हए अर्जुन का कोई बाल बाँका नहीं कर सकता। आप अपने मोर्चे पर डटे रहें। वहाँ आपको न देखकर लोगों का सन्तुलन बिगड़ सकता है। वापस आकर युधिष्ठिर युद्ध करने लगे। पुनः पाञ्चजन्य का घोष उनके कर्ण-कुहर में गूँजने लगा। धर्मराज बेचैन हो उठे। निश्चय ही आज मेरा प्रिय अर्जुन किसी भयानक विपत्ति में पड़ गया है। मैंने सभी भाइयों से युद्धभूमि में अपनी शंख बजाकर अपना कुशल देते रहने का निर्देश दिया था। अर्जुन ने एक बार भी अपना शंख नहीं फेंका। मुझे ऐसी आशंका हो रही है कि अर्जुन को कुछ हो गया। भगवान वासुदेव अकेले ही लड़ रहे हैं। मुझे धीरज बँधाने के लिए कभी-कभी अपना पाञ्चजन्य बजा देते हैं।
व्यथित मन युधिष्ठिर सात्यकि के पास पहुँचे । भरे गले से उन्होंने कहा- हे धनुर्धर श्रेष्ठ! तुम्हारे गुरु अर्जुन आज किसी भयावह स्थिति में पड़ जाने से अपना देवदत्त बजाकर मुझे आश्वस्त नहीं कर पा रहे हैं। मेरा आदेश है कि युद्ध भूमि में अपना रण-कौशल दिखलाते हुए अर्जुन के पास पहुँचकर अपनी शंख ध्वनि कर उनका कुशल मङ्गल देकर मुझे आश्वस्त करो । सात्यकि ने विनम्रतापूर्वक स्वीकार करते हुए अर्जुन जहाँ युद्ध कर रहे थे उस ओर प्रस्थान किया। अगणित सैन्य समूह का भेदन करने में उसे काफी समय लग गया। इधर घण्टों की प्रतीक्षा करके धर्मराज की चिन्ता और बढ़ने लगी । उन्होंने अतुलित बलशाली अनुज भीमसेन जो कि उन्हीं की रक्षा में नियुक्त थे, के पास जाकर कातर मन से अपनी व्यथा कह सुनाई। भीम ने भी श्रीकृष्ण की रक्षा कवच के रहते हुए अर्जुन सुरक्षित है कहकर युद्ध जारी रखा। किन्तु युधिष्ठिर का म्लान मुख देखकर अपने पुत्र घटोत्कच को बुलाकर धर्मराज की रक्षा-भार सौंप कर स्वयं अर्जुन के रण-स्थल की ओर चल पड़े। गज-सेनाओं के गजघटा को विदारित करते हुए पैदल ही गदा लेकर अर्जुन को तलाशते हुए आगे बढ़ने लगे। अथक परिश्रम के पश्चात् भीम ने दूर से ही भीष्म से जूझते हए अर्जुन को देखा। भीम ने सिंहनाद किया जिसे सुनकर धर्मराज ने राहत की साँस ली। भीम ने युद्ध करते हुए दुर्योधन के अनेक भाइयों को आज फिर यमराज का अतिथि बनाया।
इधर अर्जुन ने भी दिव्यास्त्रों का प्रयोग करके भीष्म के प्रहार को कुछ कमजोर किया। अर्जुन को लक्ष्य करके भीष्म द्वारा प्रक्षेपित वाणों से अनिच्छित-व्रण से माधव भी बच नहीं सके। भीष्म तो आज जैसे थकने का नाम नहीं ले रहे थे। नित्य-नूतन उर्जा से भरकर अर्जुन को कहीं निकलने का अवसर नहीं दे रहे थे। श्रीकृष्ण बारम्बार अर्जुन की तरफ रहस्यमय दृष्टि से देखते और कहते पार्थ कैसे लड़ रहे हो? सँभलकर क्यों नहीं लड़ते। आज पितामह से तुम्हें लड़ना ही होगा। मध्याह्नकालीन सूर्य की तरह देदीप्यमान भीष्म ने
व्यंग्यपूर्वक मुस्कुराते हुए माधव से कहा-वासुदेव! अपने प्रिय सखा की विजय यदि सचमुच में आप चाह रहे हैं तो उठा लीजिये हथियार। मेरी प्रतिज्ञा पूर्ण हो जायेगी। आपके हाथों मरकर मैं अपना लोक-परलोक दोनों ही सँवार लँगा। माधव भी अपनी कुटिल मुस्कान नहीं रोक सके। भीष्म ने अपना युद्ध और भयानक कर दिया। उनके लक्ष्य से अर्जुन का अभेद्य कवच शत-विक्षत होकर टूट गया। कवचहीन-वक्ष भीष्म के भयंकर वाणों से विंधने लगा।
पार्थ का शरीर वाणों के प्रहार से आज सुमेरु पर्वत की तरह आभासित हो रहा था। उनकी दयनीय दशा देख माधव अत्यन्त ही व्यथित हुए। गाण्डीव प्रत्यञ्चा फिर कट गयी। अर्जुन के हाथों से पुनः डोरी कसकर बाँधी नहीं जा रही थी। उन्हें मूच्र्छा आने को हुई। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को रथ में सहारा देकर बैठा दिया। रथ रोककर स्वयं हाथ में टूटा हुआ रथ का पहिया लेकर अत्यन्त वेग से भीष्म पर प्रहार करने दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण की जय कहते हुए भीष्म ने जोर से अपना शंख बजा दिया। शंखनाद सुनकर चारो ओर नीरवता छा गयी। हाथ जोड़कर भीष्म बोले -बस बासुदेव ! मेरी विजय हो गयी। अपने प्रहार से मेरा मस्तक छिन्न कर दीजिये। हे भक्तों के भगवान ! सचमुच आप धन्य हैं।भक्तों के लिए आप अपनी प्रतिज्ञा भी भङ्ग करते हैं। तब तक चैतन्य होकर अर्जुन ने श्रीकृष्ण को अपने बाँहों से आबद्ध करके रथ पर वापस बैठाया। सावधान होते हुए उन्होंने अर्जुन से कहा-सखे । भीम से युद्ध करना सरल नहीं है। हाथ जोड़कर पार्थ ने कहा-माधव ! अब मैं चैतन्य होकर युद्ध करूँगा। आप चिन्ता न करें। पुन: बड़े वेग से भीष्म पर हल्ला बोल दिया। दोनों ने शंख ध्वनि की। भीष्म ने भी शंखनाद कर युद्ध प्रारम्भ कर कर दिया। भीम ने भी सिंह गर्जना करके शत्रुओं को भयभीत एवं युधिष्ठिर को भय मुक्त किया।
शेष दिन युद्ध यथावत चलता रहा। अर्जुन और भीष्म ने मौन हो रण-कौशल दिखाया। तीखे बाणों से सहज ही निवारित हुए भीष्म ने स्वयं हमला नहीं किया। धीरे-धीरे सूर्य अपने गन्तव्य तक जा पहुँचे। पश्चिम दिशा की लालिमा की ओर ध्यान करके भीष्म , ने युद्ध-विराम-विराम सूचक अपना शंखनाद किया। युद्ध रुक गया। दोनों ओर के योद्धागण अपने शिविर की ओर चल पड़े। वस्त्र बदलकर लोगों ने अपने घावों की मरहम पट्टी करके विश्राम किया। सायंकाल का विधान सम्पन्न करके सभी ने दूसरे दिन की युद्ध योजना के लिए अपने-अपने सेनानायकों से परामर्श किया। सभी विश्राम करने चले गये।
श्रीकृष्ण जी अर्जुन को लेकर युधिष्ठिर के कक्ष में चले गए । वहाँ शिखण्डी के साथ धृष्टदुम्न पहले ही विराजमान थे। भीम, विराट, द्रुपद भी कक्ष में उपस्थित हो गये। आज का युद्ध-समाचार सभी ने कह सुनाया । श्रीकृष्ण, अर्जन शान्त बैठे रहे। युधिष्ठिर के पूछने पर माधव ने कहा- कल किसी भी तरह भीष्म से निपटना होगा। इस पर योजना तैयार होने लगी। सभी योजना पर विचार किया गया। परन्तु, एक मत से स्वीकार कोई योजना नहीं बन सकी।
अभी तक चुपचाप शिखण्डी लोगों की योजना का आकलन करता रहा। उसने कहा कि मेरा जन्म भीष्म से बदला लेने को हुआ है। मैं आप लोगों को दिखाई नहीं पड़ रहा हूँ। उसकी बात सुनकर श्रीकृष्ण हँस पड़े और कहा- भीष्म से मुक्ति पाने का समाधान मिल गया। अब आप सभी लोग अपने शयन कक्ष में विश्राम करें। सुबह युद्ध की तैयारी करके नित्य की भाँति समरभूमि में पहुँचकर संग्राम करें। सभी लोगों के चले जाने पर शिखण्डी को रोककर । श्रीकृष्ण ने कल की योजना धर्मराज से कह सुनाई। कल भइया शिखण्डी मेरे रथ पर बैठकर अर्जुन के साथ युद्धभूमि पर चलेंगे। मैं रथ-संचालन करूँगा और इन दोनों धनुर्धरों को समवेत प्रहार करना होगा तभी भीष्म से निजात मिल सकेगी।
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