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17- सारी रंग डारी लाल-लाल

1. गुलाबबाड़ी की गुलाबी महफ़िल में गुलाबी परिच्छेद और गुलाब के ही गहने पहनकर गुलशन, गुलबदन और गुलबहार ने अपने कोकिल-कंठ से बसन्तराग में गलेबाज़ी का वह गुल खिलाया कि श्रोताओं की मंडली बुलबुल बन बैठी। ऊपर गुलाबी चँदवे से लटकते गुलाबी शीशे के झाड़-फानूस से गुलाबी प्रकाश झलक रहा था और नीचे फ़र्श गुलाब की पंखरियों से ढंक-सा गया था। उस पर बैठे श्रोताओं...
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16- मृषा न होइ देव-रिसि बानी

नगवा घाट पर बैठे सुक्खू ने स्वच्छ जल से धोकर सिल-लोढ़ा खड़ा कर और उस पर नारियल की खोपड़ी से दूधिया भाँग गिराता हुआ वह चिल्लाया- “लेना हो बाबा भोलेनाथ!" पानी में छटक पड़ी साबुन की बट्टी खोजने के लिए उसके साथी झींगुर ने उस समय गोता लगा रखा था। वह भी पानी के भीतर से विजयामन्त्र पढ़ता हुआ बाहर निकला और मन्त्र के शेष भाग की पूर्ति करता हुआ-सा चिल्लाया-“जो...
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15-नारी, तुम केवल श्रद्धा हो

माँ-बाप पुकारते थे लल्लन। कॉलेज के रजिस्टर में नाम था रघुवीरशरण और सहपाठियों में उसकी प्रसिद्धि थी 'विमेनहेटर' (नारी विद्वेषी) के नाम से। क्या कॉलेज, क्या शहर, क्या खेल का मैदान, क्या चौक का बाज़ार-सभी जगह उसे जाननेवाले निकल आते जो उसके नाम और उस नामकरण के कारण दोनों से परिचित रहते। उसके शरीर का वर्ण असाधारण काला था। उसकी आँखों की बनावट कुछ ऐसी...
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14- दीया क्या जले जब जिया जल रहा

1. गंगो नित्य की अपेक्षा आज कुछ जल्दी ही उठ गई थी। उठने के बाद से ही वह अनमनी थी। वह समझ नहीं पा रही थी, पर उसे सब-कुछ अधूरा-अधूरा दिखाई पड़ रहा था। चारों ओर अतृप्ति उसाँस-सी भरती जान पड़ती थी और अभाव मचल-मचल कर चिकोटी काटता-सा मालूम पड़ता था। उठते ही उसने अपनी पालतू बिल्ली को एक चैला खींचकर मारा; कारण, वह नित्य उसके निकलने के बाद कोठरी से बाहर...
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हमारे बारे में

मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
संपर्क सूत्र -8009992553
फेसबुक - 'Chandra dev Tripathi 'Atul'
इमेल- atul15290@gmail.com
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