4 टिप्‍पणियां:

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चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल' ने कहा…

आप इसे पढ़ सकते हैं ।

कादंबरी सारांश हिंदी में ने कहा…

राजा शुद्रक के समीप चांडालकन्या द्वारा लाए गए शुक ने राजा से अपने विषय में आगे की कथा इस प्रकार बताई - महर्षि जाबिल ने जब अपने शिष्यों को मुझसे संबद्ध जा कथा सुनाई उसे मुझे अपना पूर्वजन्म स्मरण हो आया और मुझे यह ज्ञात हो गया कि मैं ही महामंत्री शुकनास का पुत्र वैशंपायन हूं। जब मेरे पंख निकल आए तब मैं अपने मित्र चंद्रापीड को ढूंढने निकला, किन्तु चांडाल द्वारा पकड़ लिया गया।



चांडाल कन्या द्वारा कथा को पूरी करना -

इसके बाद चांडाल कन्या ने राजा को बताया कि राजा को बताया कि राजा शुद्रक ही चंद्रापीड है। वह स्वयं लक्ष्मी है और वैशंपायन उसका पुत्र है। राजा शुद्रक को अपना पूर्व जन्म याद हो आया। उधर महाश्वेता की कुटी में वसंत छा गया और कादंबरी ने जैसे ही चंद्रापीड के शरीर का आलिंगन किया वह ऐसे जीवित हो उठा जैसे नींद से जागा हो। उसी समय शूद्रक ने भी अपना शरीर त्याग दिया। महाश्वेता की कुटी में कुछ ही क्षण में पुंडरीक अपने मुनिकुमार वाले रूप में प्रकट हुआ और उसका महाश्वेता से मिलन हो गया। सर्वत्र आनंद छा गया।

इस प्रकार इस कथा का नायक है चंद्रापीड और नायिका है कादंबरी। सहनायक और सहनायिका हैं - पुंडरीक और महाश्वेता। यह तीन जन्मों को मिली जुली कहानी है,जिसका अधिकांश भाग शुक द्वारा महर्षि ज़ाबिल की कथा के अनुसार शुद्रक से कहा जाता है।

कादंबरी के आरंभ में बाण ने बीस पद्यों में मंगलाचरण सज्जन की प्रशंसा और दुर्जन की निन्दा, अपने वंश के पूर्वजों का आलंकारिक एवं मनोरम वर्णन, तथा कथा के गुणों का उल्लेख किया है। चंद्रापीड की तांबूल करक वाहिनी पत्रलेखा, जो चंद्रापीड के चले आने पर भी कादंबरी के पास रह गई थी, लौटकर चंद्रापीड की राजधानी आती है इस वर्णन के साथ ही कादंबरी कथा का पूर्वभाग समाप्त होता है।

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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
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