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सेनापति

 सेनापति1. सारंग धुनि सुनावै धन रस बरसावै, मोर मन हरषावै अति अभिराम है। जीवन अधार बड़ी गरज करनहार, तपति हरनहार देत मन काम है।। सीतल सुभग जाकी छाया जग 'सेनापति' पावत अधिक तन मन बिसराम है। संपै संग लीने सनमुख तेरे बरसाऊ, आयौ घनस्याम सखि मानौं घनस्याम है।। 2. सदा नंदी जाकौं आसा कर है विराजमान,                          ...
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कृष्णाश्रयी शाखा (कृष्ण काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 कृष्णाश्रयी शाखा (कृष्ण काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ...
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रामाश्रयी शाखा (राम काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 रामाश्रयी शाखा (राम काव्य) - 1.विशेषताएँ ।1. भगवान राम विष्णु के अवतार हैं। वह परमब्रह्मस्वरूप हैं, मर्यादापुरुषोत्तम हैं, शील-सौन्दर्य,शक्ति के समन्वय हैं। वो व्यापक, अजित, अनादि्, अनन्त,गो, द्विज,धेनु,देव,मनुष्य सबके हितकारी हैं, कृपासिन्धु हैं पृथ्वी पर आदर्श की स्थापना के लिए मनुष्य के रूप में अवतार लिए हैं। तुलसी के परमाराध्य हैं,ऐसे...
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प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) - 1.विशेषताएँ ।1. सूफी काव्य में लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है। आचार्य शुक्ल जी ने इसीलिए इसे प्रेमाश्रयी शाखा नाम दिया।2. सूफी काव्य में प्रेम तत्व का निरूपण किया गया है , प्रेम कथानकों के माध्यम से परमात्मा एवं जीव का तादात्म्य स्थापित किया गया है।3. सूफी काव्य प्रबन्ध काव्य...
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ज्ञानाश्रयी शाखा (सन्त काव्य)- इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 ज्ञानाश्रयी शाखा (सन्त काव्य)-  1.विशेषताएँ ।1. सभी सन्त निर्गुण ईश्वर में विश्वास रखते हैं। निर्गुण ईश्वर ही घट-घट में व्याप्त है और एकमात्र ज्ञानगम्य है। वह अविगत है उसे बाहर ढूढ़ने की आवश्यकता  नहीं   है।  भक्ति की जगह ज्ञान  को अधिक महत्व दिया गया है।2.  सन्त कवियों ने अवतारवाद एवं बहुदेववाद का निर्भीकतापूर्वक...
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रीतिकाल- इतिहास, प्रवृत्तियाँ, विशेषताएँ, अन्य

 रीतिकाल- इतिहास, प्रवृत्तियाँ, विशेषताएँ, अन्यरीतिकालीनकाव्य की विशेषताएँ      1.    रीतिकाल का काव्य यद्यपि श्रृंगारप्रधान है पर इस श्रृंगार रस की साधना में जीवन के सन्तुलित दृष्टिकोण का नितान्त अभाव है। एन्द्रियता की प्रचुरता है,रसिकता की प्रधानता है ।      2.    प्रदर्शन...
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मंदाकिनी पाठ 3-जायसी

कीन्हेसि मानुष, दिहेसि बडाई । कीन्हेसि अन्न, भुगुति तेहिं पाई ॥ कीन्हेसि राजा भूँजहिं राजू । कीन्हेसि हस्ति घोर तेहि साजू ॥ कीन्हेसि दरब गरब जेहि होई । कीन्हेसि लोभ, अघाइ न कोई ॥ कीन्हेसि जियन , सदा सब चाहा । कीन्हेसि मीचु, न कोई रहा ॥ कीन्हेसि सुख औ कोटि अनंदू । कीन्हेसि दुख चिंता औ धंदू ॥ कीन्हेसि कोइ भिखारि, कोइ धनी।कीन्हेसि सँपति बिपति...
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शास्त्री 3 एवं 4th सेमे. पुस्तक(BOOKS)

आचार्य प्रथम एवं द्वितीय सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

आचार्य तृतीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर -पाठ्यपुस्तक

पूर्वमध्यमा प्रथम (9)- पाठ्यपुस्तक

पूर्वमध्यमा द्वितीय (10) पाठ्यपुस्तक

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हमारे बारे में

मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
संपर्क सूत्र -8009992553
फेसबुक - 'Chandra dev Tripathi 'Atul'
इमेल- atul15290@gmail.com
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