सेनापति1.
सारंग धुनि सुनावै धन रस बरसावै,
मोर मन
हरषावै अति अभिराम है।
जीवन
अधार बड़ी गरज करनहार,
तपति हरनहार
देत मन काम है।।
सीतल
सुभग जाकी छाया जग 'सेनापति'
पावत अधिक
तन मन बिसराम है।
संपै
संग लीने सनमुख तेरे बरसाऊ,
आयौ घनस्याम
सखि मानौं घनस्याम है।।
2. सदा
नंदी जाकौं आसा कर है विराजमान,
...
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मंदाकिनी पाठ 3-जायसी
कीन्हेसि
मानुष, दिहेसि बडाई ।
कीन्हेसि अन्न, भुगुति तेहिं पाई ॥
कीन्हेसि
राजा भूँजहिं राजू । कीन्हेसि हस्ति घोर तेहि साजू ॥
कीन्हेसि
दरब गरब जेहि होई । कीन्हेसि लोभ,
अघाइ न कोई ॥
कीन्हेसि
जियन , सदा सब चाहा ।
कीन्हेसि मीचु, न कोई रहा ॥
कीन्हेसि
सुख औ कोटि अनंदू । कीन्हेसि दुख चिंता औ धंदू ॥
कीन्हेसि
कोइ भिखारि, कोइ धनी।कीन्हेसि
सँपति बिपति...