प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल'
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प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य)

विशेषताएँ

  1. सूफी काव्य में लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है। आचार्य शुक्ल जी ने इसीलिए इसे प्रेमाश्रयी शाखा नाम दिया।
  2. सूफी काव्य में प्रेम तत्व का निरूपण किया गया है, प्रेम कथानकों के माध्यम से परमात्मा एवं जीव का तादात्म्य स्थापित किया गया है।
  3. सूफी काव्य प्रबन्ध काव्य की कोटि में आता है। समस्त काव्यों की क्रम योजना समान है—मंगलाचरण से प्रारम्भ होकर कथानकों का दुखमय अन्त इसकी पहचान है। कुछ प्रेमकथानक सुखान्त भी हैं।
  4. बारहमासा वर्णन, नायक–प्रतिनायक की उपस्थिति, प्रेम के विरह पक्ष का अतिरंजित वर्णन, भोग-विलास से युक्त मिलन का अश्लील वर्णन, काव्य-रूढ़ियों का प्रचुर प्रयोग—ये सभी सूफी काव्य की पहचान हैं।
  5. इस काव्य में हिन्दू प्रेमगाथाओँ, रीति-रिवाजों,रूढ़ियों का सजग चित्रण हुआ है जिससे भारतीय लोक संस्कृति साकार हो उठा है। इतिहास एवं कल्पना का सुन्दर समन्वय एवं कल्पना के माध्यम से नवीन पात्रों एवं घटनाओं की उद्भावना की गयी है
  6. सूफी काव्यधारा भी मिश्रित मिथकों एवं कल्पनाओं के चलते रहस्यवादी बन पड़ा है। भावात्मक रहस्यवाद की सरसता हो या हठयोगियों का साधनात्मक रहस्यवाद, सब इस काव्य में विद्यमान हैं। उपनिषदों का प्रतिविम्बवाद तथा अद्वैतवाद का प्रभाव भी इस काव्यधारा में विद्यमान है।
© प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) – Paramhans Pathshala

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