प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 

प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) - 1.विशेषताएँ ।

1. सूफी काव्य में लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है। आचार्य शुक्ल जी ने इसीलिए इसे प्रेमाश्रयी शाखा नाम दिया।
2. सूफी काव्य में प्रेम तत्व का निरूपण किया गया है , प्रेम कथानकों के माध्यम से परमात्मा एवं जीव का तादात्म्य स्थापित किया गया है।
3. सूफी काव्य प्रबन्ध काव्य की कोटि में आता है यद्यपि समस्त काव्यों क्रम योजना एक समान ही है।मंगलाचरण से प्रारम्भ होकर कथानकों का दुखमय अन्त सूफी काव्य की पहचान है । कुछ प्रेमकथानक सुखान्त भी हैं।
4. बारहमासा वर्णन, नायक-प्रतिनायक की उपस्थिति, प्रेम के विरहपक्ष का अतिरंजित वर्णन, भोग-विलास से युक्त मिलन का अश्लील वर्णन, काव्य रूढ़ियों का प्रचुर प्रयोग सूफी काव्य की पहचान है।
5.
शीघ्र ही..


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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
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