निबन्ध एक परिचय


निबन्ध शब्द की व्युत्पत्ति- निबंध शब्द ‘नि+बंध’ से बना है, जिसका अर्थ है अच्छी तरह से बँधा हुआ। नि + बन्ध+ल्युट् – ‘निबध्यते अस्मिन् इति अधिकरणे निबन्धनम्’ -अर्थात जिसमें विचार बाँधा अथवा गूँथा गया हो, ऐसी रचना ।‘नि+बन्ध+घञ्- निश्चितार्थेन विषयम् अधिकृत बन्धनम्- अर्थात निश्चित रूप से किसी विषय पर विचारों की श्रृंखला बाँधना, रोकना अथवा संग्रह करना । शब्दकल्पद्रुम के अनुसार- ‘निबध्नातीति निबन्धनम्’- जो बाँधता है वहीं निबन्ध है । आप्टे’ के शब्दकोश में निबन्ध के बारह अर्थ प्राप्त होते हैं । इनमें बाँधना, जोड़ना, रचना, लिखना, साहित्यिक टीका, संग्रह आदि मुख्य हैं ।


हिंदी निबंध की विशेषता
हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक और निबंधकार पंडित रामचंद्र शुक्ल भी निबंध ने व्यक्तित्व की विशेषता को स्वीकार करते हैं, किंतु एक विचारों की श्रृंखला बनाए रखना चाहते हैंसुसम्बद्धता, उनके अनुसार निबंध का एक बहुत बड़ा गुण है
आधुनिक पाश्चात्य लक्षणों के अनुसार निबंध उसी को कहना चाहिए जिसमें व्यक्तित्व या व्यक्तिगत विशेषता होबात तो ठीक है, यदि ठीक तरह से समझी जाय। व्यक्तिगत विशेषता का यह मतलब नहीं कि उसके प्रदर्शन के लिए विचारों की श्रृंखला रखी ही न जाए या जानबूझकर जगह-जगह से तोड़ दी जाय......। अर्थ संबंधी सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएं ही भिन्न-भिन्न लेखकों का दृष्टिपथ निर्दिष्ट करती हैंएक ही बात को लेकर किसी का मत किसी संबंध सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी परइसी का नाम है एक ही बात को भिन्न-भिन्न दृष्टियों से देखनाव्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है।” हिंदी साहित्य का इतिहास पृष्ठ 505 -508
आचार्य शुक्ल निबंध में ह्रदय और बुद्धि के समन्वय पर जोर देते हैं
निबंध लेखक जिधर चलता है उधर अपनी संपूर्ण मानसिक सत्ता के साथ अर्थात बुद्धि और भावात्मक ह्रदय दोनों लिए हुए।”
स्वयं उनके ही निबंधों में बुद्धि और विचार की प्रधानता है शुक्ल जी निबंध को गद्य की कसौटी मानते हैयदि गद्य कवियों और लेखकों की कसौटी है तो निबंध गद्य की कसौटी है।”


 शुक्ल जी के अतिरिक्त हिंदी के अन्य समीक्षक और निबंधकार भी निबंध के विषय में तथा विचार का महत्व स्वीकार करते हैंहिंदी में ऐसे निबंधों की संख्या भी अधिक है जिनमें विषय और विचार प्रधान हैंवस्तुतः प्रत्येक देश के साहित्य की एक अपनी परंपरा और प्रकृति होती हैसंस्कृत साहित्य में निबंधका जो प्रयोग हुआ है उसका अर्थ लिया गया है बांधना’, ‘गूँथना’, ‘संग्रह करनाआदि। सम्भवतः प्राचीन भारतीय ऋषि -मुनि भोजपत्र पर लिखते थे और उन्हें संग्रह करने की क्रिया को निबंधकहा जाता थाअर्थ संकोच के कारण इसका प्रयोग प्रायः किसी साहित्यिक रचना अथवा टीका आदि के लिए होने लगासाहित्य में इस शब्द का प्रयोग किसी भी प्रकार की बौद्धिक और गंभीर रचना के लिए हुआ है जिसका विषय दर्शन, आध्यात्म, साहित्य आदि होता था संस्कृत साहित्य में प्रबंधशब्द का प्रयोग भी कहीं-कहीं निबंधके लिए हुआ हैइस प्रकार हिंदी निबन्धों को विचारत्मकता विरासत में मिली हैदि पाश्चात्य लक्षणों के अनुसार हम आत्मपररचनाओं को ही निबंध की संज्ञा दे तो हिंदी निबंध साहित्य के एक बहुत बड़े अंश को निबंध क्षेत्र से निकाल देना पड़ेगा अतः हिंदी निबंधों की प्रकृति को देखते हुए मैंने वस्तुनिष्ठ और आत्म निष्ठ अथवा विषय प्रधान और विषयीप्रधान दोनों प्रकार के निबंधों को निबंध क्षेत्र के अंतर्गत स्वीकार किया है और उन पर इसी रूप में विचार किया है

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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
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