काव्यात्मा — स्वरूप, लक्षण व व्याख्या
भारतीय काव्यशास्त्र में काव्यात्मा का प्रश्न प्रायः उठाया जाता है। काव्यात्मा का यह प्रश्न प्रमुखता से सम्बन्धित है। शरीर के साथ काव्य रूपक की अवधारणा के साथ-साथ काव्यात्मा का प्रश्न खड़ा हुआ है। यदि गुण शरीर में स्थित गुण की भाँति है, रीति अंग संस्थान की भाँति है, अलंकार, अलंकार की भाँति हैं तो काव्य का मूल चैतन्य (आत्मा) क्या है ? यह प्रश्न इसी रूपक के साथ स्वतः उठ खड़ा हुआ है । इस काव्य- रूपक का प्रारम्भ आचार्य वामन ने किया था, और रीति, के सम्बन्ध में ही उन्होंने इस प्रश्न को स्वयं उठाया कि काव्यात्मा के रूप में किसे स्वीकृति दी जाए। आचार्य वामन द्वारा उठाये गये ‘‘काव्यात्मा' के इस प्रश्न का विवाद 17वीं शती तक चलता रहा और अन्त में स्थापित किया गया कि रस ही काव्य का सर्वश्रेष्ठ तत्त्व है । विभिन्न आचार्य ने काव्यात्म के सम्बन्ध में इस प्रकार टिप्पणी दी है---
- (1) वामन -रीतिरात्मा काव्यस्य।
- (2) आनन्दवर्धन-काव्यात्मा ध्वनिः।
- (3) कुन्तक- नूतनोपाय निष्पन्नमवत्र्मोपदेशिनम् । महाकवि प्रबन्धानाम सर्वेषामस्ति वक्रता ।।
- विचित्रो यत्र वक्रोक्तिः वैचित्र्यं जीवितायते ।
- (4) भामह-न कान्तमपि निर्भूषं विभाति वनितामुखम् ।।
- (5) क्षेमेन्द्र-औचित्यं रस सिद्धस्यस्थिर काव्यस्य जीवितम् ।। इस प्रकार विभिन्न आचार्यों ने अपने-अपने ढंग से काव्यात्मा की स्थिति पर प्रकाश डाला है।
- आचार्य केशव मित्र- त्रिविधस्यापि दोषास्तु त्याज्याः श्लाघ्या द्वये गुणाः ।अलंकारस्तु शोभाये रस आत्मा परे मनः ।।
इस प्रकार क्रमश: रीति, ध्वनि, वक्रोक्ति, औचित्य, अलंकार एवं रस को अपने-अपने दृष्टिकोण से सर्वतोत्कृष्ट सिद्ध करते हुए आचार्यों ने स्वमत विवेचन किया है।
संक्षेप में, इसका निष्कर्ष इस प्रकार है- आचार्य वामन ने रीति को काव्यात्मा के रूप में विवेचित करते हुए। बताया है कि आत्मा का अर्थ काव्य का प्रधानभूत तत्त्व होना है। उनके अनुसार ‘रीति' काव्य का प्रधानभूत तत्त्व है । इसके लिए उन्होंने तीन तुकों का उपयोग किया है-
- (1) रीति को अतिशय महत्त्व देकर ।
- (2) काव्य शरीर रचना के मूल स्वरूप में रीति को विवेचित करके-
- (3) सम-सामयिक सम्पूर्ण काव्य तत्वों का रीति में समाविष्ट कराकर-
काव्यात्मा हृदयस्पर्शी रसालंकाराणि प्रादुर्भावयति ।
अर्थात — काव्यात्मा वह शक्ति है जो कविता को केवल पढ़ा जाने योग्य नहीं, बल्कि अनुभूत होने योग्य बनाती है।
काव्यात्मा के प्रमुख लक्षण
- रसपूर्णता — भावों का जीवंत और प्रभावशाली रूप।
- हृदयग्राह्यता — सरल, कोमल एवं मन में उतरने वाली अभिव्यक्ति।
- माधुर्य — शब्दों और ध्वनियों की कोमल लय।
- ओज — भाषा में ऊर्जा और तेजस्विता।
- सौष्ठव — शब्द और अर्थ की सुंदरता और स्पष्टता।
काव्यात्मा के उदाहरण
1) ओजयुक्त काव्यात्मा :
“चलो देश की रक्षा में, तन-मन अर्पित कर दें।”
2) प्रसादयुक्त काव्यात्मा :
“सादगी ही सौंदर्य का सच्चा रूप है।”
3) माधुर्ययुक्त काव्यात्मा :
“चाँदनी में बहती सरिता गुनगुनाती है।”
काव्यात्मा पर प्रमुख आचार्यों के मत
- भामह: अलंकार ही काव्य की आत्मा है।
- वामन: रीति काव्य की आत्मा है।
- विश्वनाथ: रस काव्य की आत्मा है।
- मम्मट: काव्य का शरीर शब्दार्थ-सम्प्रयोग है, और आत्मा रस है।
- आचार्य केशव मिश्र: रस ही काव्य का जीवन है।
रसप्रधान काव्य में भाव-संवेदन का ऐसा सामंजस्य होता है कि पाठक उसमें डूब जाता है। अतः रस ही वह मूल तत्त्व है जो काव्य को जीवंत करता है।
