भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका
अर्थ है बोलना या कहना अर्थात् भाषा वह है जिसे बोला जाय। संघटनात्मक दृष्टि से
भाषा-शास्त्रियों ने भाषा की परिभाषा दी है-
बी.ब्लोच एवं जी.एल.
ट्रेगर के अनुसार-‘‘भाषा यादृच्छिक वाचिक ध्वनि-संकेतों की वह पद्धति है, जिसके द्वारा मानव परम्परा विचारों का आदान-प्रदान करता है।’’
इस कथन में भाषा के लिए
चार बातों पर ध्यान दिया गया है-
अ. भाषा एक पद्धति है, यानी एक सुसम्बद्ध और सुव्यवस्थित योजना या संघटन
है, जिसमें कर्ता, कर्म, क्रिया, आदि व्यवस्थिति रूप में आ सकते हैं।
ब. भाषा संकेतात्कम है अर्थात् इसमे जो ध्वनियाँ उच्चारित होती हैं, उनका किसी वस्तु या कार्य से
सम्बन्ध होता है। ये ध्वनियाँ संकेतात्मक या प्रतीकात्मक होती हैं।
स. भाषा वाचिक ध्वनि-संकेत है, अर्थात् मनुष्य अपनी वागिन्द्रिय की सहायता से
संकेतों का उच्चारण करता है, वे ही भाषा के अंतर्गत आते हैं।
द. भाषा यादृच्छिक संकेत है। यादृच्छिक से तात्पर्य है - ऐच्छिक, अर्थात् किसी भी विशेष ध्वनि का
किसी विशेष अर्थ से मौलिक अथवा दार्शनिक सम्बन्ध नहीं होता। प्रत्येक भाषा में
किसी विशेष ध्वनि को किसी विशेष अर्थ का वाचक ‘मान लिया जाता’ है। फिर वह उसी अर्थ
के लिए रूढ़ हो जाता है। कहने का अर्थ यह है कि वह परम्परानुसार उसी अर्थ का वाचक
हो जाता है। दूसरी भाषा में उस अर्थ का वाचक कोई दूसरा शब्द होगा।
स्वीट महोदय के अनुसार-“ ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही
भाषा है।”
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