भाषा — परिभाषा, उत्पत्ति, प्रकार, भेद-विभेद
मानव सामाजिक प्राणी है और उसके विचार, भावनाएँ तथा अनुभूतियाँ अभिव्यक्त करने का प्रमुख माध्यम भाषा है। भाषा केवल संप्रेषण का साधन ही नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और मानवीय बौद्धिक विकास का आधार भी है। भाषा शब्द संस्कृत के भाष् धातु से बना है जिसका अर्थ है बोलना या कहना अर्थात् भाषा वह है जिसे बोला जाय। भाष्यते व्यक्तवाग् रूपेण अभिव्यज्यते इति भाषा, अर्थात व्यक्त वाणी के रूप में जिसकी अभिव्यक्ति की जाती है, उसे भाषा कहते हैं। संघटनात्मक दृष्टि से भाषा-शास्त्रियों ने भाषा की परिभाषा दी है-भाषा मनुष्य-समाज में विचारों, भावों और अनुभवों को व्यक्त करने का प्रमुख साधन है। यह ध्वनि-प्रत्ययों, शब्दों, वाक्यों तथा व्याकरणिक संरचनाओं द्वारा अभिव्यक्ति का एक सुसंगठित माध्यम है।
मानव-सभ्यता के विकास में भाषा की भूमिका मूलभूत और अनिवार्य मानी गई है— यह ज्ञान-संरक्षण, संस्कृति-संवहन और सामाजिक व्यवहार का आधार है।
भाषा की उत्पत्ति
भाषा की उत्पत्ति के विषय में अनेक मत उपलब्ध हैं:
- ध्वनि-अनुकरण सिद्धान्त (Bow-wow Theory) — प्रारम्भिक मनुष्य ने प्रकृति की ध्वनियों का अनुकरण करते हुए भाषा का विकास किया।
- सहज सिद्धान्त (Pooh-pooh Theory) — भावनात्मक उद्गार (आह, ओह, हाय) भाषा का मूल बने।
- सामाजिक संव्यवहार सिद्धान्त — समाज में आपसी व्यवहार की आवश्यकता ने भाषा को जन्म दिया।
- संरचनावादी मत — भाषा एक विकसित सांस्कृतिक संरचना है जो समय के साथ क्रमिक रूप से निर्मित हुई।
- दिव्योत्पत्ति सिद्धान्त (Divine Theory) — धर्म ग्रन्थ
- संकेत सिद्धान्त(Agreement Throry) — रूसो
- रणन सिद्धान्त(Ding-Dong Theory) —प्लेटो, हेस एवं मैक्समूलर
- इंगित सिद्धान्त (Gesture Theory) — डॉ० राये
- धातु सिद्धान्त (Root Theory) — हेज और मैक्समूलर
- श्रम ध्वनि सिद्धान्त (Yo-He-Ho Theory) — न्वारे (Noire)
- सम्पर्क सिद्धान्त (Contect Theory) — जी० रेवेज
- समन्वय सिद्धान्त — हेनरी स्वीट
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भाषा न तो किसी एक क्षण में बनी, न ही किसी एक कारण से— यह मानव-समूहों की निरंतर भाषिक क्रिया का परिणाम है।
भाषा के प्रकार
भाषा को विभिन्न आधारों पर प्रकार या वर्गों में बाँटा जाता है:
- व्युत्पत्ति के आधार पर — प्राकृतिक भाषा, कृत्रिम भाषा, मिश्रित भाषा।
- संरचना के आधार पर — विश्लेषणात्मक, संश्लेषणात्मक, बहुसंयोगी (Polysynthetic)।
- उपयोग के आधार पर — बोली, साहित्यिक भाषा, मानकीकृत भाषा।
- संचार माध्यम के आधार पर — मौखिक भाषा, सांकेतिक भाषा, लिपिबद्ध भाषा।
भाषा के भेद-विभेद, रूप
भाषा-अध्ययन में कई भेद-विभेद महत्वपूर्ण माने जाते हैं, भाषा के विविध रूप होते हैं जो निम्न है-:
- बोली और भाषा (DIALECT) — बोली क्षेत्रीय रूप है;
- लिखित और मौखिक भाषा विभाषा, उपभाषा, प्रान्तीय भाषा — लिखित भाषा नियमबद्ध, मौखिक अधिक स्वाभाविक।
- देशज और विदेशी शब्द — देशज भाषा से, विदेशी भाषा से आए शब्द।
- तत्सम-तद्भव भेद — संस्कृत मूल से सीधे (तत्सम) या परिवर्तित रूप (तद्भव)।
- मानक या परिनिष्ठित भाषा (STANDARD LANGUAGE) —भाषा का मानकीकृत रूप।
- कृत्रिम भाषा (Artificial Language) —
- विशिष्ट भाषा (Professional Language) —
- व्यक्ति बोली (Idiolect) —
- अपभाषा, अपभ्रष्ट भाषा, या अमानक भाषा (SLANG) —
- कूट भाषा (Secret Language) —
- राष्ट्रभाषा (National Language)! —
इन विभेदों से भाषा के विकास, विविधता और संरचना को बेहतर समझा जा सकता है।
विद्वानों द्वारा दी गई भाषा की परिभाषाएँ
भाषा को लेकर कई विद्वानों ने अपनी परिभाषाएँ दीं—
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- पतंजलि — "व्यक्ता वाचि वर्णा येषा त इमे व्यक्तवाचः" अर्थात् जो वाणी वर्णों में व्यक्त हो उसे भाषा कहते हैं।
- पाणिनि —“भाषा मनुष्य की स्वाभाविक अभिव्यक्ति है।”
- भर्तृहरि — “वाक्यं नाम मनोवृत्तिः।” (भाषा (वाक्) मनोभावों की अभिव्यक्ति है।)
- कामता प्रसाद 'गुरु' — "भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों पर भली भाँति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकते हैं।"
- स्वामी दयानन्द सरस्वती —“वाणी वह साधन है जिससे जीव अपने हृदय के भावों को प्रकट करता है।”
- राजा राममोहन राय — “भाषा वह साधन है जिससे समाज अपने विचारों और संस्कृति को स्थिर रखता है।”
- डॉ० पाण्डुरंग दामोदर गुणे — "ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा हृद्गत भावों तथा विचारों का प्रकटीकरण ही भाषा है।"
- डॉ० भोलानाथ तिवारी — "भाषा निश्चित प्रयत्न के फलस्वरूप मनुष्य के मुख से निःसृत वह सार्थक ध्वनि समष्टि है, जिसका विश्लेषण और अध्ययन हो सके।"
- डॉ० श्याम सुन्दरदास — "मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय में अपनी इच्छा और मति का आदान-प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है उसे भाषा कहते हैं।"
- डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी — “भाषा मनुष्य की समाजिक आवश्यकता है, जिसके बिना संस्कृति का विकास असंभव है।”
- डॉ० मंगलदेव शास्त्री — "भाषा मनुष्यों की उस चेष्टा या व्यापार को कहते है, जिससे मनुष्य अपने उच्चारणोपयोगी शरीरावयवों से उच्चारण किये गये वर्णात्मक या व्यक्त शब्दों द्वारा अपने विचारों को प्रकट करते हैं।"
- आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा — "भाषा यादृच्छिक, रूढ़ उच्चारित संकेत की वह प्रणाली है जिसके माध्यम से मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय सहयोग अथवा भावाभिव्यक्ति करते हैं।"
- सुकुमार सेन —"अर्थवान, कण्ठोद्गीर्ण ध्वनि-समष्टि ही भाषा है।"
- बाबू राम सक्सेना — "जिन ध्वनि चिह्नों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है, उनको समष्टि रूप से भाषा कहते हैं।"
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद — “भाषा वह माध्यम है जिससे मनुष्य का व्यक्तित्व, समाज और संस्कृति एक सूत्र में बंधते हैं।”
- डॉ. रामविलास शर्मा — “भाषा समाज की चेतना का दर्पण है।”
- फर्डिनांड द सॉस्यूर के अनुसार — भाषा सामाजिक संकेत-तंत्र (system of signs) है।
- नोम चॉम्स्की के अनुसार — भाषा मानवीय मस्तिष्क की अन्तर्निहित क्षमता है।(“Language is a set of sentences constructed out of a finite set of elements.”)
- स्वीट महोदय के अनुसार — “ ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।”
- मैक्समूलर के अनुसार — "भाषा और कुछ नहीं है, केवल मानव की चतुर बुद्धि द्वारा आविकृत ऐसा उपाय है जिसकी मदद से हम अपने विचार सरलता और तत्परता में दूसरों क प्रकट कर सकते हैं और जो चाहते हैं कि इसकी व्याख्या प्रकृति की उपज के रूप में नहीं, बल्कि मनुष्य कृत पदार्थ के रूप में करना उचित है।
- वांद्रेये — "भाषा एक प्रकार का चिह्न है, चिह्न से तात्पर्य उन प्रतीकों से है, जिनके द्वारा मनुष्य अपभा विचार दूसरों पर प्रकट करता है। ये प्रतीक भी कई प्रकार के होते हैं। जैसे नेत्रग्राह्य, श्रोतग्राह्य एवं स्पर्शत्राद्धा। वस्तुतः भाषा की दृष्टि से श्रोतग्राह्य प्रतीक ही सर्वश्रेष्ठ है।"
- क्रोचे — "भाषा उस स्पष्ट, सीमित तथा सुसंगठित ध्वनि को कहते हैं जो अभिव्यंजना के लिए नियुक्त की जाती है।"
- ओत्तो येस्पर्सन के अनुसार — "मनुष्य ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा अपना विचार प्रकट करता है। मानव मस्तिष्क वस्तुतः विचार प्रकट करने के लिए ऐसे शब्दों का निरन्तर उपयोग करता है। इस प्रकार के कार्य-कलाप को ही भाषा की संज्ञा दी जाती है।"
- ब्लॉख तथा ट्रेगर के अनुसार — "भाषा यादृच्छिक ध्वनि-संकेतों की वह प्रणाली है जिसके माध्यम से मानव परस्पर विचारों का आदान-प्रदान करता है।"
- फर्डिनांड डी सॉस्युर — भाषा चिन्हों की एक संगठित प्रणाली है।(“Language is a system of signs that express ideas.”)
- गार्डिनर के अनुसार — "विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट ध्वनि संकेतों का व्यवहार किया जाता है, उन्हें भाषा कहते हैं।"
- स्त्रुतेवाँ के अनुसार — "भाषा यादृच्छिक ध्वनि-संकेतों की वह पद्धति है जिसके द्वारा मानव समुदाय परस्पर सहयोग एवं विचार-विनिमय करते हैं।"
- बी.ब्लोच एवं जी.एल. ट्रेगर के अनुसार —‘‘भाषा यादृच्छिक वाचिक ध्वनि-संकेतों की वह पद्धति है, जिसके द्वारा मानव परम्परा विचारों का आदान-प्रदान करता है।’’
- इस कथन में भाषा के लिए चार बातों पर ध्यान दिया गया है-
पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार भाषा की परिभाषाएँ
अ. भाषा एक पद्धति है, यानी एक सुसम्बद्ध और सुव्यवस्थित योजना या संघटन है, जिसमें कर्ता, कर्म, क्रिया, आदि व्यवस्थिति रूप में आ सकते हैं।
ब. भाषा संकेतात्कम है अर्थात् इसमे जो ध्वनियाँ उच्चारित होती हैं, उनका किसी वस्तु या कार्य से सम्बन्ध होता है। ये ध्वनियाँ संकेतात्मक या प्रतीकात्मक होती हैं।
स. भाषा वाचिक ध्वनि-संकेत है, अर्थात् मनुष्य अपनी वागिन्द्रिय की सहायता से संकेतों का उच्चारण करता है, वे ही भाषा के अंतर्गत आते हैं।
द. भाषा यादृच्छिक संकेत है। यादृच्छिक से तात्पर्य है - ऐच्छिक, अर्थात् किसी भी विशेष ध्वनि का किसी विशेष अर्थ से मौलिक अथवा दार्शनिक सम्बन्ध नहीं होता। प्रत्येक भाषा में किसी विशेष ध्वनि को किसी विशेष अर्थ का वाचक ‘मान लिया जाता’ है। फिर वह उसी अर्थ के लिए रूढ़ हो जाता है। कहने का अर्थ यह है कि वह परम्परानुसार उसी अर्थ का वाचक हो जाता है। दूसरी भाषा में उस अर्थ का वाचक कोई दूसरा शब्द होगा।
भाषा की प्रवृत्ति एवं विशेषताएँ
- (1)भाषा समाजजनित है। सामाजिक सम्पत्ति है।
- (2)भाषा चिन्हों का व्यवस्थित समूह है। यह सतत प्रवहमान, सहज और नैसर्गिक होता है।
- (3)भाषा गतिशील और परिवर्तनशील है। भाषा का कोई स्थायी रूप नहीं है।
- (4)भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है।
- (5) भाषा अर्जित सम्पत्ति है।
- (6) भाषा भाव-सम्प्रेषण का माध्यम है।
- (7) भाषा अनुकरण एवं व्यवहार से सीखी जाती है।
- (8) भाषा जटिलता से सरलता तथा संयोगात्मकता से वियोगात्मकता की ओर उन्मुख होती है।
- (9) भाषा परम्परागत वस्तु है।
- (10) प्रत्येक भाषा की संरचना पृथक होती है।
- (11) भाषा सर्वोत्तम ज्योति है।
- (12) भाषा समाज को एकसूत्र में बाँधती है। —
- (13) भाषा सर्वशक्तिसम्पन्न है —
- (14) भाषा सर्वव्यापक है। —
- (15) भाषा विराट् और विश्वकर्मा है। —
- (16) भाषा का प्रवाह अविच्छिन्न है। —
- (17) भाषा परम्परागत वस्तु है। —
- (18) भाषा सामाजिक वस्तु है। —
- (19) भाषा मानव की अक्षय निधि है। —
- (20) भाषा सत् असत् दोनों का ही बोधक है। —
- (21) भाषा पैतृक एवं जन्मसिद्ध नहीं है —
- (22) भाषा भाव संप्रेषण का साधन है। —
- (23) भाषा की ऐतिहासिक तथा भौगोलिक सीमा भी होती है। —
- (24) भाषा स्थिरीकरण से प्रभावित होती है। —
- (25) भाषा में सामाजिक दृष्टि से स्तरभेद होता है। —
प्रकृति
भाषा न तो पूर्ण रूप से प्राकृतिक है और न ही पूर्णतः कृत्रिम। यह मानव बुद्धि, समाज, अनुभव और संस्कृति का मिश्रण है।
संरचना
भाषा की संरचना मुख्यतः ध्वनि, शब्द, वाक्य और अर्थ के समन्वय पर आधारित होती है।
