देवनागरी
लिपि की वैज्ञानिकता एवं उत्कृष्टता –
देवनागरी लिपि में
उत्कृष्टता संबंधी वे सभी गुण हैं जो किसी भी उत्कृष्ट लिपि में आवश्यक होते हैं
जैसे ध्वनि तथा वर्ण में सामंजस्य किसी भी भाषा की ध्वनियों तथा उन्हें प्रकट करने
वाले लिप चिन्हों या वर्णों में जितना अधिक सामंजस्य होगा वह लिपि उतनी ही अधिक
उत्कृष्ट मानी जाएगी देवनागरी में यह विशेषता पूर्ण रूप से मिलती है इसमें उच्चारण
के अनुसार ही वर्ण निश्चित किए गए हैं अतः जो बोला जाता है वही लिखा जाता है और जो
लिखा जाता है वही बोला भी जाता है एक धोनी के लिए एक ही संकेत एक ध्वनि के लिए
अनेक संगीत तथा एक ही संकेत से अनेक ध्वनियों की अभिव्यक्ति भी इस लिपि का बहुत
बड़ा दोष है रोमन तथा अरबी आदि लिपियों में यही दोष है रोमन लिपि में एक ही का
धोनी के लिए अनेक संकेत है
समग्र ध्वनियों की
अभिव्यक्ति- उत्कृष्ट लिपि में यह गुण होता है कि वह किसी भाषा की समग्र ध्वनियों
को लिपि संकेतों द्वारा अभिव्यक्त कर सकती है देवनागरी में यह गुण भी सर्वाधिक है
रोमन आदि लिपियों में तथा आदि ध्वनियों को नहीं लिखा जा सकता है ।
असंदिग्धता उत्कृष्ट लिपि में एक ध्वनि संकेत में दूसरी ध्वनि का संदेह नहीं होना चाहिए अन्य लिपियों की अपेक्षा देवनागरी इस कसौटी पर भी खरी उतरती है रोमन में यूको ऊपर है या और इस प्रकार की भ्रांतियां प्रायः होती हैं पूर्ण विराम उपायुक्त गुणों के कारण देवनागरी लिपि वस्तुतः एक उत्कृष्ट लिपि है कुछ विद्वानों के अनुसार देवनागरी लिपि में री क्ष त्र ज्ञ आज कुछ अब अनावश्यक हो गए हैं ई की मात्रा वैज्ञानिक है क्योंकि वह लगती पहले है किंतु चरित बाद में होती है कुछ ध्वनियों जैसे और लोग आदि के लिए 22 लिपि चिन्ह है अतः आवश्यकता के अनुसार सुधार कर देवनागरी लिपि को और भी अधिक वैज्ञानिक या उत्कृष्ट बनाया जाना चाहिए
लिपि-चिह्नों
की पर्याप्तता: विश्व की अधिकांश लिपियों
में चिह्न पर्याप्त नहीं हैं। अंग्रेजी में ध्वनियां 40 से ऊपर हैं,
किन्तु केवल26 लिपि-चिह्नों से काम चलाना पड़ता है। उर्दू में भी ख,
घ, छ, झ, ठ, ढ, ड, थ, ध, फ, भ आदि के लिए लिपि चिह नहीं हैं, और'हे' से मिलाकर इनका काम चलाते हैं। इस दृष्टि से
नागरी पर्याप्त सम्पन्न हैं। नागरी का प्रयोग जिन-जिन भाषाओं के लिए हो रहा है,
प्रयुक्त वर्णमाला उतने वैज्ञानिक रूप में
विभाजित या वर्गीकत नहीं है, जितने
वैज्ञानिक रूप में नागरी लिपि। उर्दू या रोमन लिपि भी इस कमी का अपवाद नहीं है।
इसमें भी स्वर और व्यंजन (अलिफ़, बे, डी.
ई, एफ आदि) या व्यंजन के वैज्ञानिक वर्ग (लाम, मीम, सी, डी आदि) मिले-जुले
रूप में रखे गए हैं। नागरी लिपि में इस प्रकार की कमियां नहीं हैं। स्वर अलग है और
व्यंजन अलग! स्वरों में भी
(1) वर्णमाला का
वर्गीकरणः विश्व के किसी भी कोने में बहुत ही कम है।
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