शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-01
यियक्षमाणेनाहूतः पार्थेनाथ द्विषन्मुरम् ।
वैद्यं प्रति प्रतिष्ठासुरासीत् कार्यद्वयाकुलः ॥ १ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
टिप्पणी
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हिन्दी अर्थ
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-02
सार्धमुद्धवसीरिभ्यामथासावासदत्सदः ।
गुरूकाव्यानुगां बिभ्रच्चान्द्रीमभिनभः श्रियम् ॥ २ ॥
गुरूकाव्यानुगां बिभ्रच्चान्द्रीमभिनभः श्रियम् ॥ २ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
टिप्पणी
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हिन्दी अर्थ
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-03
जाज्वल्यमाना जगतः शान्तये समुपेयुषी ।
व्यद्योतिष्ट सभावेद्यामसौ नरशिखित्रयी ॥ ३ ॥
व्यद्योतिष्ट सभावेद्यामसौ नरशिखित्रयी ॥ ३ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
प्रसङ्ग
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व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा
टिप्पणी
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हिन्दी अर्थ
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-04
रत्नस्तम्भेषु संक्रान्तप्रतिमास्ते चकाशिरे ।
एकाकिनो पि परितः पौरुषेयवृता इव ॥ ४ ॥
एकाकिनो पि परितः पौरुषेयवृता इव ॥ ४ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
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टिप्पणी
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-05
अध्यासामासुरुत्तुङ्गहेमपीठानि यान्यमी ।
तैरुहे केसरिक्रान्तत्रिकूटशिखरोपमा ॥ ५ ॥
तैरुहे केसरिक्रान्तत्रिकूटशिखरोपमा ॥ ५ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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हिन्दी अर्थ
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-06
गुरूभयस्मै गुरुणोरुभयोरथ कार्ययोः ।
हरिर्विप्रतिषेधं तमाचचक्षे विचक्षणः ॥ ६ ॥
हरिर्विप्रतिषेधं तमाचचक्षे विचक्षणः ॥ ६ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-07
द्योतितान्तःसभैः कुन्दकुड्मलाग्रदतः स्मितः ।
स्नपितेवाभवत् तस्य शुद्धवर्णा सरस्वती ॥ ७ ॥
स्नपितेवाभवत् तस्य शुद्धवर्णा सरस्वती ॥ ७ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-08
भवद्गिरामवसरप्रदानाय वचांसि नः ।
पूर्वरङ्गः प्रसङ्गाय नाटकीयस्य वस्तुनः ॥ ८ ॥
पूर्वरङ्गः प्रसङ्गाय नाटकीयस्य वस्तुनः ॥ ८ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-09
करदीकृतभूपालो भ्रातृभिर्जित्वरैर्दिशाम् ।
विनाप्यस्मदलंभूष्णुरिज्यायै तपसः सुतः ॥ ९ ॥
विनाप्यस्मदलंभूष्णुरिज्यायै तपसः सुतः ॥ ९ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-10
उत्तिष्ठमानस्तु परो नोपेक्ष्यः पथ्यमिच्छता ।
समौ हि शिष्टैराम्नातौ वर्त्स्यन्तावामयः स च ॥ १० ॥
समौ हि शिष्टैराम्नातौ वर्त्स्यन्तावामयः स च ॥ १० ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-11
न दूये सात्वतीसूनुर्यन्मह्यमपराध्यति ।
यतु ददह्यते लोकमतो दुःखाकरोति माम् ॥ ११ ॥
यतु ददह्यते लोकमतो दुःखाकरोति माम् ॥ ११ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-12
मम तावन्मतमदः श्रूयतामङ्ग वामपि”
ज्ञातसारे पि खल्वेकः संदिग्धे कार्यवस्तुनि ॥ १२ ॥
ज्ञातसारे पि खल्वेकः संदिग्धे कार्यवस्तुनि ॥ १२ ॥
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प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-13
यावदर्थपदां वाचमेवमादाय माधवः ।
विरराम महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः ॥ १३ ॥
विरराम महीयांसः प्रकृत्या मितभाषिणः ॥ १३ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-14
ततः सपत्नापनयस्मरणानुशयस्फुरा ।
ओष्ठेन रामो रामौष्ठबिम्बचुम्बनचुञ्चुना ॥ १४ ॥
ओष्ठेन रामो रामौष्ठबिम्बचुम्बनचुञ्चुना ॥ १४ ॥
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प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-15
विवक्षितामर्थविदस्तत्क्षणं प्रतिसंहृताम् ।
प्रापयन् पवनव्याधेर्गिरमुत्तरपक्षतम् ॥ १५ ॥
प्रापयन् पवनव्याधेर्गिरमुत्तरपक्षतम् ॥ १५ ॥
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प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-16
घूर्णयन् मदिरास्वादमदपाटलितद्युती ।
रेवतीदशनोच्छिष्टपरिपूतपुटे दृशौ ॥ १६ ॥
रेवतीदशनोच्छिष्टपरिपूतपुटे दृशौ ॥ १६ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-17
आश्लेषलोलुपवधूस्तनकार्कश्यसाक्षिनीम् ।
म्लापयन्नभिमानोष्णैर्वनमालां मुखानिलैः ॥ १७ ॥
म्लापयन्नभिमानोष्णैर्वनमालां मुखानिलैः ॥ १७ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-18
दधत् संध्यारुणव्योमस्फुरत्तारानुकारिणीः ।
द्विषद्द्वेशोपरक्ताङ्गसङ्गिनीः स्वेदविप्रुषः ॥ १८ ॥
द्विषद्द्वेशोपरक्ताङ्गसङ्गिनीः स्वेदविप्रुषः ॥ १८ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-19
प्रोल्लसत्कूण्डलप्रोतपद्मरागदलत्विषा ।
कृष्णोत्तरासङ्गरुचिं विदधच्चूतपल्लवीम् ॥ १९ ॥
कृष्णोत्तरासङ्गरुचिं विदधच्चूतपल्लवीम् ॥ १९ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-20
ककुद्मिकन्यावक्तान्तर्वासलब्धाधिवासया ।
मुखामोदं मदिरया कृतानुव्याधमुद्वमन् ॥ २० ॥
मुखामोदं मदिरया कृतानुव्याधमुद्वमन् ॥ २० ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-21
जगादवदनच्छद्मपद्मपर्अन्तपातिनः ।
नयन् मधुलिहः श्वैत्यमुदंशुदशनांशुभिः ॥ २१ ॥
नयन् मधुलिहः श्वैत्यमुदंशुदशनांशुभिः ॥ २१ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-22
यद्वासुदेवेनादीनामनादीनवमीरितम् ।
वचस्तस्य सपदि क्रिया केवलमुत्तरम् ॥ २२ ॥
वचस्तस्य सपदि क्रिया केवलमुत्तरम् ॥ २२ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-23
नैतल्लघ्वपि भूयस्या वचो वाचातिशय्यते ।
इन्धनौधधगप्यग्निस्त्विषा नात्येति पूषणम् ॥ २३ ॥
इन्धनौधधगप्यग्निस्त्विषा नात्येति पूषणम् ॥ २३ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-24
विरोधवचसो मूकान् वागीशानपि कुर्वते ।
जडानप्यनुलोमार्थप्रवाचः कृतिनां गिरः ॥ २४ ॥
जडानप्यनुलोमार्थप्रवाचः कृतिनां गिरः ॥ २४ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-25
संक्षिप्तस्याओयतो स्यैव वाक्यस्यार्थगरीयसः ।
सुविस्तरतरा वाचो भाष्यभूता भवन्तु मे ॥ २५ ॥
सुविस्तरतरा वाचो भाष्यभूता भवन्तु मे ॥ २५ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-26
सर्वकार्यशरीरेषु मुक्त्वाङ्गस्कन्धपञ्चकम् ।
सौगतानामिवात्मान्यो नास्ति मन्त्रो महीभृताम् ॥ २६ ॥
सौगतानामिवात्मान्यो नास्ति मन्त्रो महीभृताम् ॥ २६ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-27
षड्गुणाः शक्तयस्तिस्रः सिद्धयश्चोदयास्त्रयः ।
ग्रन्थानधीत्य व्याकर्तुमिति दुर्मेधसो प्यलम् ॥ २७ ॥
ग्रन्थानधीत्य व्याकर्तुमिति दुर्मेधसो प्यलम् ॥ २७ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-28
अनिर्लोठितकार्य्यस्य वाग्जालं वाग्मिनो वृथा ।
निमित्तादपराद्धेषोर्धानुश्कस्येव वल्गितम् ॥ २८ ॥
निमित्तादपराद्धेषोर्धानुश्कस्येव वल्गितम् ॥ २८ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-29
मन्त्रो योध इवाधीरः सर्वाङ्गैः कल्पितैरपि ।
चिरं न सहते स्थातुं परेभ्यो भेदशङ्कया ॥ २९ ॥
चिरं न सहते स्थातुं परेभ्यो भेदशङ्कया ॥ २९ ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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शिशुपालवधम् द्वितीय सर्ग - श्लोक सं.-30
आत्मोदयः अरज्यानिर्द्वयं नीतिरितीआटि ।
तदूरीकृत्य कृतिभिर्वाचस्पत्यं प्रतायते ॥ ३० ॥
तदूरीकृत्य कृतिभिर्वाचस्पत्यं प्रतायते ॥ ३० ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-31
तृप्तियोगः अरेणापिउ न महिम्ना महात्मनाम् ।
पूर्णचन्द्रोदयाकाङ्क्षी दृष्टान्तो त्र महार्णवः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-32
संपदा सुस्थितमन्यो भवति स्वल्पयापि यः ।
कृततुल्यो विधिर्मन्ये न वर्धयति तस्य ताम् ॥
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प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-33
समूलघातमघ्नन्तः परान् नोद्यन्ति मानिनः ।
प्रध्वंसितान्धतमसस्तत्रोदाहरणं रविः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-34
विपक्षमखिलीकृत्य प्रतिष्ठा खलु दुर्लभा ।
अनीत्वा पङ्कतां धूलिमुदकं नावतिष्ठते ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-35
ध्रियते यावदेको पि रिपुस्तावत् कुतः शिवम् ।
पुरः क्लिश्नाति सोमं हि सैंहिकेयो सुरद्रुहाम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-36
सखा गरीयान् शत्रुश्च कृत्रिमस्तौ हि कार्य्यतः ।
स्याताममित्रौ मित्रे च सहजप्राकृतावै ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
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प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-37
उपकर्त्ररिणा संधिर्न मित्रेणापकारिणा ।
उपकारापकारौ हि लक्ष्यं लक्षणमेतयोः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-38
त्वया विप्रकृतश्चैध्यो रुक्मिणीं हरता हरे ।
बद्धमूलस्य मूलं हि महद्वैरतरोः स्त्रियः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-39
त्वयि भौमं गते जेतुमसोत्सीत् स पुरीमिमाम् ।
प्रोषितार्यमणं मेरोरन्धकारस्तटीमिव ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-40
आलप्यालमिदं बभ्रोर्यत् स दारानपाहरत् ।
कथापि खलु पापानामलमश्रेयसे यतः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-41
चिराद्ध एवं भवता विराद्धा बहुधा च नः ।
निर्वर्त्यते रिः क्रियया स श्रुतश्रवसः सुतः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-42
विधाय वैरं सामर्षे नरो रौ य उदासते ।
प्रक्षिप्योदर्चिर्षं कक्षे शेरते ते भिमारुतम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-43
मनागनभ्यावृत्या वा कामं क्षाम्यतु यः क्षमी ।
क्रियासमभिहारेणा विराध्यन्तं क्षमेत कः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-44
अन्यदा भूषणं पुंसः शमो लज्जेव योषितः ।
पराक्रमः परिव्हवे वैयात्यं सुरतेष्विव ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-45
मा जीवन् यः परावज्ञादुःखदग्धो पि जीवति ।
तस्याजननिरेवास्तु जननीक्लशकारिणः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-46
पादाहतं यतुत्थाय मूर्धानमधिरोहति ।
स्वस्थादेवापमाने इ देहिनस्तद्वरं रजः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-47
असंपादयतः कञ्चिदर्थं जतिक्रियागुणैः ।
यदृच्छाश्ब्दवत् पुंसः संज्ञाहै जन्म केवलम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-48
तुङ्गत्वमितरा नाद्रौ नेदं सिन्धावगाधता ।
अलङ्घनीयताहेतुरुभयं तन्मनस्विनि ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-49
तुल्ये पराधे अवर्भानुर्भानुमन्तं चिरेण यत् ।
हिमांशुमाशु ग्रसते तन्म्रदिम्नः स्फुटां फलम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-50
स्वयं प्रणमते ल्पे पि परवायावुपेयुषि ।
निदर्शनमसाराणां लघुर्बहुतृणं नरः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-51
तेजस्वीमध्ये तेजस्वी दवीयानपि गण्यते ।
पञ्चमः पञ्धतपसस्तपनो जातवेदसाम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-52
अकृत्वा हेलया पादमु्च्चैर्मूर्धसु विद्विषाम् ।
कथंकारमनालम्बा कीर्तिर्द्यामधिरोहति ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-53
अङ्काधिरोपितमृगश्चन्द्रमा मृगलाञ्छनः ।
केसरी निष्ठुरक्षुण्ण्मृगपूगो मृगाधिपः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-54
चतुर्थोपायसाद्ये पि रिपौ सान्त्वमपक्रिया ।
स्वेद्यमामज्वरं प्राज्ञः को म्भसा परिषिञ्चति ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-55
सामवादाः सकोपस्य तस्य प्रत्युत दीपकाः ।
प्रतप्तस्येव सहसा सर्पिषस्तोयबिन्दवः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-56
गुणानामायथातथ्यादर्थं विस्रावयन्ति ये ।
अमात्यव्यञ्जना राज्ञां दूष्यास्ते शत्रुसंहितः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-57
स्वशक्त्युपचये केचित् परस्य व्यसने परे ।
यात्रामाहुरुदासीनं त्वामुत्थापयति द्वयम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-58
लिलङ्घयिषतो लोकानलङ्घ्यानलघीयसः ।
यादवाम्भोनिधीन् रुन्धे वेलेव भवतः क्षमा ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-59
विजयस्त्वयि सेनायाः साक्षिमात्रे पदिश्यताम् ।
फलभाजि समीक्षोक्ते बुद्धेर्भोग इवात्मनि ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-60
हते हिडीम्बरिपुणा राज्ञि द्वैमातुरे युधि ।
चिरस्य मित्रव्यसनी सुदमो दमघोषजः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'द्वितीय सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-61
नीतिरापदि यद्गम्यः परस्तन्मानिनो हिये ।
विधुर्विधुंतुदस्येव पूर्णस्तस्योत्सवाय सः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-62
अन्यदुच्छृङ्खलं सत्त्वमन्यच्छास्त्रनियन्त्रितम् ।
सामानाधिकरण्यं हि तेजस्तिमिरयोः कुतः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-63
इन्द्रप्रस्थगमस्तावत् कारि मा सन्तु चेदयः ।
आस्माकदन्तिसांनिध्यवामनीभूतभूरुहः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-64
निरुद्धवीवश्वासारप्रसारां गाइव व्रजम् ।
उपरुन्धन्तु दाशार्हाः पुरीं माहिष्मतीं द्विषः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-65
यजतां पाण्डवः स्वर्गमवत्विन्द्रस्तपस्विनः ।
वयं हनाम द्विषतः सर्वः स्वार्थं प्रतीहते ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-66
प्राप्यतां विद्युतः संपत् संपर्कादर्करोचिषाम् ।
शस्त्रैर्द्विषच्छिरश्छेदप्रोच्छोणितोक्षितैः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-67
इति संरम्भिणो वाणीर्बलस्यालेख्यदेवताः ।
सभाभित्तिप्रतिध्वानैर्भयादन्ववदन्निव ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-68
निशम्य ताः शेषगवीरभिधातुमधोक्षजः ।
शिष्याय बृहतां पत्युः प्रस्तावमदिशद् दृशा ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-69
भारतीमाहितभरामथानुद्धतमुद्धवः ।
तथ्यमुतथ्याउजवज्जगादाग्रे गदाग्रजम् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-70
संप्रत्यसांप्रतं वक्रुमुक्ते मुसलपाणिना ।
निर्द्धारिते र्थे लेखेन खलूक्त्वा खलु वाचिकम् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-71
तथापि यन्मय्यपि ते गुरुरित्येव गौरवम् ।
तत् प्रयोजककर्तउत्वमुपैति मम जल्पतः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-72
वर्णेः कतिपयैरेव ग्रथितस्य स्वरैरिव ।
अनन्ता वाङ्मयस्याहो गेयस्येव विचित्रता ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-73
बह्वपि स्वच्छया कामं प्रकीर्णमभिधीयते ।
अनुञ्झिताभिसंबन्धः प्रबन्धो दुरुदाहरः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-74
भ्रदीयसीमपि धनामनल्पगुणकल्पिताम् ।
प्रसारयन्ति कुशलश्चित्रां वाचं पटीमिव ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-75
विशेषविदुषः शस्त्रं यत् तदोद्ग्राह्यते पुरः ।
हेतुः परिचयस्थैर्ये वक्तुर्गुणनिकैव सा ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-76
प्रज्ञोत्साहावतः स्वामी यतेताधातुमात्मनि ।
तौ हि मूलमुदेष्यन्त्या जिगीषोरात्मसंपदः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-77
सोपधानां धियं धीराः स्थेयसीं खट्वयन्ति ये ।
तत्रानिशं निषण्णास्ते जानते जातु न श्रमम् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-78
स्पृशन्ति शरवत् तीक्ष्णाः स्तोकमन्तर्विशन्ति च ।
बहुस्पृशापि स्थूलेन स्थीयते वहिरश्मवत् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-79
आरभन्ते ल्पमेवाज्ञाः कामं व्यग्रा भवन्ति च ।
महारम्भाः कृतधियस्तिष्ठन्ति च निराकुलाः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-80
उपायमास्थितस्यापि नश्यत्यर्थः प्रमाद्यतः ।
हन्ति नोपशय्स्थो पि शयालुर्मृगयुर्मृगान् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-81
उदेतुमत्यजन्नीहां राजसु द्वादशस्वपि ।
जिगीषुरेको दिनकृदादित्येष्विव कल्पते ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-82
तन्त्रावापविदा योगैर्मण्डलान्यधिष्ठिता ।
सुनिग्रहा नरेन्द्रेण फणीन्द्रा इव शत्रवः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-83
करप्रचेयामुत्तुङ्गः प्रभुशक्तिं प्रथीयसीम् ।
प्रज्ञाबलबृहन्मूलः फलत्युत्साहपादपः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-84
बुद्धिशस्त्रः प्रकृत्यङ्गो धनसंवृतिकञ्चुकः ।
चारेक्षणो दूतमुखः पुरूषः को पि पार्थिवः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-85
तेजः क्षमा वा नैकान्तः कालज्ञस्य महीपतेः ।
नैकमोजः प्रसादो वा रसभागविदः कवेः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-86
कृतापचारो पि परैरनाविष्कृतविक्रियः ।
असाध्यः कुरूते कोपं प्राप्ते काले गदो यथा ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-87
मृदुव्यवहितं तेजो भोक्तुमर्थान् प्रकल्पते ।
प्रदीपः स्नेहमादत्ते दशया ह्यन्तरस्थया ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-88
नालम्बते दैष्टिकतां न निषीदति पौरुषे ।
शब्दार्थौ सत्कविरिव द्वयं विद्वानपेक्षते ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-89
स्थायिनो र्थे प्रवर्तन्ते भावाः संचारिणो यथा ।
रसस्यैकस्य भूयांसस्तथा नेतुर्महीभृतः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-90
अनल्पत्वात् प्रधानत्वादंशस्येवेतरे स्वराः ।
विजिगीषोर्नृपतयः प्रयान्ति परिवारताम् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-91
अप्यनारभमाणस्य विनोरुत्पादिताः परैः ।
व्रजन्ति गुणतामर्थाः शब्दा इव विहायसः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-92
यातव्यपार्ष्णिग्राहादिमालायामधिकद्युतिः ।
एकार्थतन्तुप्रोतायां नायको नायकायते ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-93
षाड्गुण्यमुपयुञ्जीत शक्त्यपेक्षं रसायनम् ।
भवन्त्यस्यैवमङ्गानि स्थास्नूनि बलवन्ति च ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-94
स्थाने शमवतां शक्त्या व्यायामे वृद्धिरङ्गिनाम् ।
अयथाबलमारम्भो निदानं क्षयसंपदः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-95
तदीशितारं चेदीनां भवांस्तमवमंस्त मा ।
निहन्त्यरीनेकपदे स उदात्तः स्वरानिव ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-96
मा वेदि यदसावेको जेतव्यश्चेदिराडिति ।
राजयक्ष्मेव रोगाणां समूहः स महीभृताम् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-97
संपादितफलस्तेन सपक्षः परभेदतः ।
कार्मुकेणेव गुणिना बाणः संधानमेष्यति ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-98
ये चान्ये कालयवनसाल्वरुक्मिद्रुमादयः ।
तमःस्वभावास्ते प्येनं प्रदोषमनुयायिनः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-99
उपजापः कृतस्तेन तानाकोपवतस्त्वयि ।
आशु दीपयिताल्पो पि साग्नीनेधानिवानिलः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-100
बृहत्सहायः कार्यान्तं क्षोदीयानपि गच्छति ।
संभूयाम्भोधिमभ्येति महानद्या नगापगा ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-101
तस्य मित्राण्यमित्रास्ते ये च ये चोभये नृपाः ।
अभियुक्तं त्वयैनं गन्तारस्त्वामतः पते ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-102
मखविघ्नाय सकलमित्थमुत्थाप्य राजकम् ।
हन्त जातमजातारेः प्रथमेन त्वयारिणा ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-103
संभाष्य त्वामतिभ्रक्षमस्कन्धं सुबान्धवः ।
सहायमध्वरधुरं धर्मराजो विवक्षते ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-104
महात्मानो नुगृह्णन्ति भजमानान् रिपूनपि ।
सपत्नीः प्रापयन्त्यब्धिं सिन्धवो नगनिम्नगाः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-105
चिरादपि बलात्कारो बलिनः सिद्ध्ये रिषु ।
छन्दानुवृत्तिदुःसाधाः सुहृदो विमनीकृताः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-106
मन्यसे रिवधः श्रेयान् प्रीतये नाकिनामिति ।
पुरोडाशभुजामिष्टमिष्टं कर्तुमलन्तराम् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-107
अमृतं नाम यत्सन्तो मन्त्रजिह्वेषु जुह्वति ।
शोभैव मन्दरक्षुब्धक्षुभिताम्भोधिवर्णना ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-108
प्रतीक्ष्यं च प्रतीक्ष्यायै पितृष्वस्रे सुतस्य ते ।
सहिष्ये शतमागांसि प्रत्यश्रौषीः किलेति यत् ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-109
तीक्ष्णा नारुन्तुदा बुद्धिः कर्म शान्तं प्रतापयत् ।
नोपतापि मनः सोष्म वागेका वाग्मिनः सतः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-110
स्वयंकृतेप्रसादस्य तस्याह्रो भानुमानिव ।
समयावधिमप्राप्य नान्तायालं भवानपि ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-111
कृत्वा कृत्यविदस्तीर्थैरतः प्रणिधयः पदम् ।
विदांकुवन्तु महतस्तलं विद्विषदम्भसः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-112
अनुत्सूत्रपदन्यासा सद्वृत्तिः सन्निबन्धना ।
शब्दविद्येव नाभाति राजनीतिरपस्पशा ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-113
अज्ञातदोषैर्दोषज्ञैरूद्दूष्यो भयवेतनैः ।
भेद्याः शत्रोरभिव्यक्तशासनैः सामवायिकाः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-114
उपेयिवांसि कर्तारः पुरीमाजातशास्त्रवीन् ।
राजन्यकान्युपायज्ञैरेकार्थानि चरैस्तव ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-115
सविशेषं सुते पाण्डोर्भक्तिं भवति तन्वति ।
वैरायितास्तरलाः स्वयं मत्सरिणः परे ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-116
य इहात्मविदो विपक्षमध्ये
सहसंवृद्धियुजो पि भूभुजः स्युः ।
बलिपृष्टकुलादिवान्यपुष्टैः
पृथगस्मादचिरेण भाविता तैः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-117
सहजचापलदोषसमुद्धत-
श्चलितदुर्बलपक्षपरिग्रहः ।
तव दुरासदवीर्यविभावसौ
शलभतां लभतामसुहृद्गणः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
द्वितीय सर्ग-श्लोक सं.-118
इति विशकलितार्थामौद्दवीं वाचमेना-
मनुगतनयमार्गामर्गलां दुर्नयस्य ।
जनितमुदस्थादुच्चकैरुच्छ्रितोरः-
स्थलनियतनिषण्णश्रीश्रुतां शुश्रुवान् सः ॥
सन्दर्भ
महाकवि 'माघ' प्रणीत 'शिशुपालवध' महाकाव्यस्य द्वितीय सर्गात समुद्धृतं।
अन्वय
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
प्रसङ्ग
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
व्याख्या
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
टिप्पणी
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
हिन्दी अर्थ
शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
इति श्रीमाघभट्टविरचिते शिशुपालवधकाव्ये मन्त्रवर्णनं नाम द्वितीयः सर्गः ॥