शिशुपालवधम्- चतुर्थ सर्ग- संस्कृत ससन्दर्भ व्याख्या,अन्वय हिन्दी अर्थ सहित

चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल'
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चतुर्थ सर्ग श्लोक-01
निःश्वासधूमं सह रत्नभार्भित्त्वोत्थितं भूमिमिवोरगाणाम् ।
नीलोपलस्यूतविचित्रधातुमसौ गिरिं रैवतकं ददर्श ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-02
गुर्वीरजस्रं दृषदः समन्तादुपर्युपर्यम्बुमुचां वितानैः ।
विन्ध्यायमानं दिवसस्य भर्तुमार्गं पुना रोद्धुमिवोन्नमद्भिः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-03
क्रान्तं रुचा काञ्चनवप्रभाजा नवप्रभाजालभृतां मणीनाम्।
श्रितं शिलाश्यामलताभिरामं लताभिरामनत्रितषट्पदाभिः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-04
सहस्रसंख्यैर्गगनं शिरोभिः पादैर्भुवं व्याप्य वितिष्ठमानं ।
विलोचनस्थानगतोष्णरश्मिनिशाकरं साधु हिरण्यगर्भम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-05
क्वचिज्जलापायविपाण्डुराणि धौतोत्तरीयप्रतिमच्छवीनि ।
अभ्राणि बिभ्रामुमाङ्गसङ्गविभक्तभस्मानमिव स्मरारिं ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-06
छायां निजस्त्रीचटुलालसानां मदेन किञ्चिच्चटुलालसानां । कुर्वाणमुत्पिञ्जलजातपत्रैर्विहङ्गमानां जलजातपत्रैः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-07
स्कन्धाधिरूढोज्ज्वलनीलकण्ठानुर्वीरुहः श्लिष्टतनूनहीन्द्रैः ।
प्रनर्तितानेकलताभुजाग्रान्रुद्राननेकानिव धारयन्तं ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-08
विलम्बिनीलोत्पलकर्णपूरा कपोलभित्तीरिव लोध्रगौरीः ।
नवोलपालङ्कृतसैकताभाः शुचीरपःशैवलनीर्दधानं ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-09
राजीवराजीवशलोलभृङ्गं मुष्णान्तमुष्णं ततिभिस्तरूणां ।
कान्तालकान्ता ललनाः सुराणां रक्षोभिरक्षेभितमुद्वहन्तं ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-10
मुदे मुरारेरमरैः सुमेरोरानीय यस्योपचितस्य शृङ्गैः ।
भवन्ति नोद्दामगिरां कवीनामुच्छ्रायसौन्दर्यगुणा मृषोद्याः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-11
यतः परार्घ्यानि भृतान्यनूनै प्रस्थैर्मुहुर्भूरिभिरुच्चिखानि ।
आढ्यादिवप्रापणिकादजस्रं जग्राह रत्नान्यमितानि लोकः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-12
अखिध्यतासन्नमुदग्रतापं रविं दधानेऽप्यरविन्दधाने ।
भृङ्गावलिर्यस्य तटे निपीतरसा नमत्तामरसा न मत्ता ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-13
यत्राधिरूढेनमहीरुहोच्चैरुन्निद्रपुष्पाक्षिसहस्रभाजा ।
सुराधिपाधिष्ठितहस्तिमल्ललीलां दधौ राजतगण्डशैलः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-14
विभिन्नवर्णागरुडाग्रजेन सूर्यस्य रथ्याः परितः स्फुरन्त्या ।
रत्नैः पुनर्यत्र रुचा रुचं स्वामानिन्यिरे वंशकरीरनीलैः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-15
यत्रोज्झिताभिर्मुहुरम्बुवाहैः समुन्नमद्भिर्न समुन्नमद्भिः ।
वनं बबाधे विषपावकोत्था विपन्नगानामविपन्नगानां ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-16
फलद्भिरुष्णांशुकराभिमर्शात्कर्शानवं धाम पतङ्गकान्तैः ।
शशंस यः पात्रगुणाद्गुणानां संक्रान्तिमाक्रान्तगुणातिरेकाम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-17
दृषटोऽपि शैलः स मुहुर्मुरारेरपूर्ववद्विस्मयमाततान ।
क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-18
उच्चारणज्ञेऽथ गिरा दधानमुच्चा रणत्पक्षिगणास्तटीस्तम् ।
उत्कं धरं द्रष्टुमवेक्ष्य शौरिणुत्कन्धरं दारुक इत्युवाच ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-19
आच्छादितायतददिगम्बरमुच्चकैर्गा-
माक्रम्य संस्थितमुदग्रविशालशृङ्गम् ।
मूर्ध्निस्खलत्तुहिनदीधितिकोटिमेन-
मुद्वीक्ष्य को भुवि न विस्मयते नगेशम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-20
उदयतिविततरःध्वरशमिरज्जावहिमरुचौ हिमधाम्नि याति चास्तम् ।
वहति गिरिरयं विलम्बिधणटाद्वयपरिवारितवारणेन्द्रलीलाम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-21
वहति यः परितः कनकस्थलीः सहरिता लसमाननवांशुकः ।
अचल एष भवानिव राजते स हरितालसमाननवांशुकः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-22
पाश्चात्यभागमिह सानुषु सन्निषण्णाः
पश्यन्ति शान्तमलसान्द्रतरांशुजालं ।
संपूर्णलब्धललनालापनोपमान-
मुत्सङ्गसह्गिहरिणमस्य मृगाङ्गमूर्तेः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-23
कृत्वापुंवत्पादमुच्चैर्भृगुभ्यो मूर्ध्नि ग्राव्णां जर्जरा निर्झरौघाः ।
कुर्वन्ति द्यामुत्पतन्तः स्मरार्तस्वर्लोकस्त्रीगात्रनिर्णमत्र ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-24
स्थगयन्त्यमूः शामितचातकार्तस्वरा
जलदास्तडित्तुलितकान्तकार्तस्वराः ।
जगतीरिहस्फुरितचारुचामीकराः
सवितुः कचित्कपिशयन्ति चामी कराः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-25
उत्क्षिप्तमुच्छ्रितसितांशुकरावलम्बै-
रुत्तम्भितोडुभिरतिवतरां शिरोभिः ।
श्रद्धेयनिर्झरजलव्यपदेशमस्य
विष्वक्तटेषु पतति स्फुटमन्तरीक्षं ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-26
एकत्र स्फटिकतटांशुभिन्ननीरा
नीलाश्मद्युतिभिदुराम्भसोऽपरत्र ।
कालिन्दीजलजनितश्रियः श्रयन्ते
वैदग्धीमिह सरितः सुरापगायाः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-27
इतस्ततःऽस्मिन्विलसन्ति मेरोः समानवप्रेमणिसानुरागाः ।
स्त्रियशच पत्यौ सुरसुन्दरीभिः समा नवप्रेमणिसानुरागाः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-28
उच्चैमहारजतराजिविराजितासौ
दुर्वर्णभित्तिरिह सान्द्रसुधासवर्णा ।
अभ्येति भस्मपरिपाण्डुरितस्मरारे-
रुद्वह्निलोचनललामललाटलीलां ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-29
अयमतिजरठाः प्रकामगुर्वीरलघुविलम्बिपयोधरोपरुद्धाः ।
सततमसुगतामगम्यरूपाः परिणतदिक्करिकास्तटीर्बिभर्ति ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-30
धूमाकारं दधति पुरः सौवर्णे
वर्णेनाग्नेः सदृशि तटे पश्यामी ।
श्यामीभूताः कुसुमसमूहोऽलीनां
लीनामालीमिह तरवो बिभ्राणाः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-31
व्योमस्पृशः प्रथयता कलधौतभित्ती-
रुन्निद्रपुष्पचणचम्पकपिङ्गभासः ।
सौमेरवीमधिगतेन नितम्बशोभा-
मेतेन भारतमिलावृतवद्विभाति ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-32
रुचिरचित्रतनूरुहशालिभिर्विचलितैः परितः प्रियकव्रजैः ।
विवधरत्नमयैरभिबात्यसाववयवैरिव जङ्गमतां गतैः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-33
कुशशयैरत्र जलाशयोषिता मुदा रमन्ते कलभा विकस्वरैः ।
प्रगीयते सिद्धगणैश्च योषितामुदारम कलभाविकस्वरैः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-34
आसादितस्य तमसा नियतेर्नियोगा-
दाकाङ्क्षतःपुनरपक्रमणेन कालम् ।
पत्युस्त्वषामिह महौषधयः कलत्र
स्थानं परैननभिभूतममूर्वहन्ति ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-35
वनस्पतिस्कन्धनिषण्णबालप्रवालहस्ताः प्रमदा इवात्र ।
पुष्पेक्षणैलम्भितलोचकैर्वा मधुव्रतव्रातवृतैर्व्रतत्यः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-36
विहगाः कदम्बसुरभाविह गाः कलयन्तनुक्षणमनेकलयं ।
भ्रमयन्नुपैति मुहुरभ्रमयं पवनश्च धूतनवनीपवनः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-37
विद्वद्भिरागमपरैर्विवृतं कथञ्चि-
च्छ्रुत्वापि दुर्ग्रहमनिश्चितधीभिरन्यैः ।
श्रेयान्द्विजातिरिव हन्तुमघानि दक्षं
गूठार्थमेष निधिमन्त्रगणं बिभर्ति ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-38
बिम्बोष्ठं बहु मनुते तुरङ्गवक्त्र-
श्चुम्बन्तं मुखमिह किंनरं प्रियायाः ।
श्लिष्यन्तंमुहुरितरोऽपि तं निजस्त्री-
मुत्तुङ्गस्तनभरभङ्गभीरुमध्यां ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-39
यदेतदस्यानुतटं विभाति वनं ततानेकतमालतालं ।
न पुष्पितात्र स्थगितार्करस्मावनान्तताने कतमा लतालं ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-40
दन्तोज्ज्वलासु विमलोपलमेखलान्ताः
सद्रत्नचित्रकटकासु बृहन्नितम्बाः ।
अस्मिन्भजन्ति घनक्ॐअलगण्डशैला
नार्योऽनुरूपमधिवासमधित्यकासु ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-41
अनतिचिरोज्झितस्य जलदेन चिर-
स्थितबुद्ध्युदयस्य पयसोऽनुकृतिं ।
विरलविकीर्णवज्रशकला सकला
मिह विदधाति धौतकलधौतमही ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-42
वर्जयन्त्या जनैः संगमेकान्तत-
स्तर्कयन्त्या सुखं सङ्गमे कान्ततः ।
योषयैष स्मरासन्नतापाङ्गया
सेव्यतेऽनेकया संन्नतापङ्गया ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-43
संकीर्णकीचकवनस्खलितैकवाल-
विच्छेदकातरधियश्चलितुं चमर्यः ।
अस्मिन्मृदुश्वसनगर्भतदीयरन्ध्र-
र्यत्स्वनश्रुतिसुखादिव नोत्सहन्ते ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-44
मुक्तं मुक्तागौरमिह क्षीरमिवाभ्रै-
र्वापीष्वन्तर्लीनमहानीलदलासु ।
शस्त्रीश्यामैरंशुभिराशु द्रुतमम्भ-
श्छायामच्छामृच्छति नीलीसलिलस्य ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-45
या न ययौ प्रियमन्यवधूभ्यः सारतरागमना यतमानं ।
तेन सहेत बिभर्ति रसः स्त्री सा रतरागमनायतानां ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-46
भिन्नेषुरत्नकिरणैः किरणेष्विहेन्दो-
रुच्चावचैरुपगतेषु सहस्रसंख्यां ।
दोषापि नूनमहिमांशुरसौ किलेति
व्याकोशकोकनदतां दधते नलिन्यः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-47
अपशङ्कमङ्कपरिवर्तनोचिताश्चलिताः पुरः पतिमुपेतुमात्मजाः ।
अनुरोदितीव करुणेन पत्त्रिणां विरुतेन वत्सलतययैष निम्नगाः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-48
मधुकरविटपानमितास्तरुपङ्क्तीर्बिभ्रतःऽस्य विटपानमिताः ।
परिपाकपिशङ्गलतारजसा रोधश्चकास्ति कपिशं गलता ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-49
प्राग्भागतः पतदिहेदमुपत्यकासु
शृङ्गारितायतमहेभकराभमम्भः ।
संलक्ष्यतेविविधरत्नकरानुविद्ध-
मूर्ध्वप्रसारितसुराधिपचापचारु ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-50
दधाति च विकसद्विचित्रकल्प-
द्रुमकुसुमैरभिगुम्फितानिवैताः ।
क्षणमलघुविलम्बिपिच्छदाम्नः
शिखरशिखाः शिखिशेखरानमुष्य ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-51
सवधूकाः सुखिनोऽस्मन्ननवरतममन्दरामतामरसदृशः ।
नासेवन्ते रसवन्नवरतममन्दरागतामरसदृशः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-52
आच्छाद्य पुष्पपटमेव महान्तमन्त-
रावर्तिभिर्गृहकपोतशिरोधराभैः ।
शस्वङ्गानि धूमरुचिमागुरवीं दधानै-
र्धूपायतीव पटलैर्नीरदानां ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-53
अन्योन्यव्यतिकरचारुभिर्विचित्रै-
रत्रस्यन्नवमणिर्जन्मभिर्मयूखैः ।
विस्मेरान्गगनसदः करोत्यमुष्मि-
न्नाकाशेरचितमभित्ति चित्रकर्म ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-54
समीरशिशिरः शिरःसुवसता
सता जवनिका निकानसुखिनां ।
बिभर्तिजनयन्नयं मुदमपा
मपायधवला वलाहकततीः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-55
मैर्त्त्र्यादिचित्तपरिकर्मविदो विधाय
क्लेशप्रहाणमिह लब्धसबीजयोगाः ।
ख्यातिं चसत्त्वपुरुषान्यतयाधिगम्य
वाञ्चन्ति तामपि समाधिभृतः निरोद्धुम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-56
मरकतमयमेदिनीषु भानो-
स्तरुविटपान्तरपातिनो मयूखाः ।
अवनतशितिकण्ठकण्ठलक्ष्मी-
मिह दधति श्फुरिताणुरेणुजालाः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-57
या बिभर्ति कलवल्लकीगुणस्वानमानमतिकालिमालया ।
नात्र कान्तमुपगीतया तया स्वानमानमति कालिमालया ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-58
सायं शशाङ्गकिरणाहतचन्द्रकान्त-
निस्यन्दिनीरनिकरेण कृताभिषेकाः ।
अर्कोपलोल्लसितवह्निभिरह्नि तप्ता-
स्तीव्रं महाव्रतमिवात्र चरनति वप्राः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-59
एतस्मिन्नधिकपयःश्रियं वहन्त्यः
संक्षोभं पवनभुवा जवेन नीताः ।
वाल्मीकेररहितरामलक्ष्मणानां
साधर्म्यं दधति गिरां महासरस्यः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-60
इह मुहुर्मुदितैः कलभै रवः
प्रतिदिशं क्रियते कलभैरवः ।
स्फुरति चानुवनं चमरीचयः
कनकरत्नभुवां च मरीचयः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-61
त्वक्साररन्ध्रपरिपूरणलब्धगीति-
रस्मिन्नसौ मृदितपक्ष्मलरल्लकाङ्गः ।
कस्तूरिकामृगविमर्दसुगन्धिरेति
रागीव सक्तिमधिकां विषयेषु वायुः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-62
प्रीत्यै यूनां व्यवहिततपनाः
प्रौढद्वान्तं दिनमिह जलदाः ।
दोषामन्यं विदधाति सुरत-
क्रीडायासश्रमपटवः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-63
भग्ने निवासोऽयमिहास्य पुष्पैः
सदानतः येन विषाणि नागः ।
तीव्राणि तेनोज्झति कोपितोऽसौ
ससानतोयेन विषाणि नागः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-64
प्रालेयशीतलमचलेश्वरमीश्वरोऽपि
सान्द्रभचर्मवसनावरणाधिशेते ।
सर्वर्तुनिवृत्तिकरे निवसन्नुपैति
न द्वन्द्वदुःखमिह किञ्चिदकिञ्चनोऽपि ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-65
नवनगवनलेखाश्यामध्याभिराभिः
स्फटिककटकभूमिनाटयत्येष शैलः ।
अहिपरिकरभाजो भास्मनैरङ्गरागै-
रधिगतधवलिम्नः शूलपाणेरभिख्याम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-66
दधद्भिरभितस्तटौ विकचवारिजाम्बूनदै-
र्विनोदितदिनक्लमाः कृतरुचश्चजाम्बूनदैः ।
निषेव्य मधु माधवाः सरसमत्र कादम्बरं
हरन्ति रतये रहः प्रियतमाङ्गकादम्बरम् ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-67
दर्पणनिर्मलासु पतिते घनतिमिरमुषि
ज्योतिषि रौप्यभित्तिषु पुरः प्रतिफलति मुहुः ।
व्रीडमसंमुखोऽपि रमणैरपहृतवसनाः
खाञ्चनकन्दरासु तरुणीरिह नयति रविः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
चतुर्थ सर्ग श्लोक-68
अनुकृतिशिखरौघश्रीभिरभ्यगतेऽसौ
त्वयि सरभसमभ्युत्तिष्ठतीवाद्रिरुच्चैः ।
द्रुतमरुदुपनुन्नैरुन्नमद्भिः सहेलं
हलधरपरिधानश्यामलैरम्बुवाहैः ॥
सन्दर्भ
प्रस्तुतमिदं पद्यं कविकुलचक्रचूणामणि महाकवि 'माघ' प्रणीतस्य 'शिशुपालवधम' महाकाव्यस्य 'चतुर्थ सर्गात' समुद्धृतं अस्ति।
अन्वय
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
प्रसङ्ग
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
व्याख्या
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
टिप्पणी
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा
हिन्दी अर्थ
—शीघ्र ही प्रदर्शित होगा






निःश्वासधूमं सह रत्नभार्भित्त्वोत्थितं भूमिमिवोरगाणाम् ।
नीलोपलस्यूतविचित्रधातुमसौ गिरिं रैवतकं ददर्श ॥४.१॥

गुर्वीरजस्रं दृषदः समन्तादुपर्युपर्यम्बुमुचां वितानैः ।
विन्ध्यायमानं दिवसस्य भर्तुमार्गं पुना रोद्धुमिवोन्नमद्भिः ॥४.२॥

क्रान्तं रुचा काञ्चनवप्रभाजा नवप्रभाजालभृतां मणीनाम्।
श्रितं शिलाश्यामलताभिरामं लताभिरामनत्रितषट्पदाभिः ॥४.३॥

सहस्रसंख्यैर्गगनं शिरोभिः पादैर्भुवं व्याप्य वितिष्ठमानं ।
विलोचनस्थानगतोष्णरश्मिनिशाकरं साधु हिरण्यगर्भम् ॥४.४॥

क्वचिज्जलापायविपाण्डुराणि धौतोत्तरीयप्रतिमच्छवीनि ।
अभ्राणि बिभ्रामुमाङ्गसङ्गविभक्तभस्मानमिव स्मरारिं ॥४.५॥

छायां निजस्त्रीचटुलालसानां मदेन किञ्चिच्चटुलालसानां ।
कुर्वाणमुत्पिञ्जलजातपत्रैर्विहङ्गमानां जलजातपत्रैः ॥४.६॥

स्कन्धाधिरूढोज्ज्वलनीलकण्ठानुर्वीरुहः श्लिष्टतनूनहीन्द्रैः ।
प्रनर्तितानेकलताभुजाग्रान्रुद्राननेकानिव धारयन्तं ॥४.७॥

विलम्बिनीलोत्पलकर्णपूरा कपोलभित्तीरिव लोध्रगौरीः ।
नवोलपालङ्कृतसैकताभाः शुचीरपःशैवलनीर्दधानं ॥४.८॥

राजीवराजीवशलोलभृङ्गं मुष्णान्तमुष्णं ततिभिस्तरूणां ।
कान्तालकान्ता ललनाः सुराणां रक्षोभिरक्षेभितमुद्वहन्तं ॥४.९॥

मुदे मुरारेरमरैः सुमेरोरानीय यस्योपचितस्य शृङ्गैः ।
भवन्ति नोद्दामगिरां कवीनामुच्छ्रायसौन्दर्यगुणा मृषोद्याः ॥४.१०॥

यतः परार्घ्यानि भृतान्यनूनै प्रस्थैर्मुहुर्भूरिभिरुच्चिखानि ।
आढ्यादिवप्रापणिकादजस्रं जग्राह रत्नान्यमितानि लोकः ॥४.११॥

अखिध्यतासन्नमुदग्रतापं रविं दधानेऽप्यरविन्दधाने ।
भृङ्गावलिर्यस्य तटे निपीतरसा नमत्तामरसा न मत्ता ॥४.१२॥

यत्राधिरूढेनमहीरुहोच्चैरुन्निद्रपुष्पाक्षिसहस्रभाजा ।
सुराधिपाधिष्ठितहस्तिमल्ललीलां दधौ राजतगण्डशैलः ॥४.१३॥

विभिन्नवर्णागरुडाग्रजेन सूर्यस्य रथ्याः परितः स्फुरन्त्या ।
रत्नैः पुनर्यत्र रुचा रुचं स्वामानिन्यिरे वंशकरीरनीलैः ॥४.१४ ॥

यत्रोज्झिताभिर्मुहुरम्बुवाहैः समुन्नमद्भिर्न समुन्नमद्भिः ।
वनं बबाधे विषपावकोत्था विपन्नगानामविपन्नगानां ॥४.१५॥

फलद्भिरुष्णांशुकराभिमर्शात्कर्शानवं धाम पतङ्गकान्तैः ।
शशंस यः पात्रगुणाद्गुणानां संक्रान्तिमाक्रान्तगुणातिरेकाम् ॥४.१६॥

दृषटोऽपि शैलः स मुहुर्मुरारेरपूर्ववद्विस्मयमाततान ।
क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः ॥४.१७॥

उच्चारणज्ञेऽथ गिरा दधानमुच्चा रणत्पक्षिगणास्तटीस्तम् ।
उत्कं धरं द्रष्टुमवेक्ष्य शौरिणुत्कन्धरं दारुक इत्युवाच ॥४.१८॥

आच्छादितायतददिगम्बरमुच्चकैर्गा-
माक्रम्य संस्थितमुदग्रविशालशृङ्गम् ।
मूर्ध्निस्खलत्तुहिनदीधितिकोटिमेन-
मुद्वीक्ष्य को भुवि न विस्मयते नगेशम् ॥४.१९॥

उदयतिविततरःध्वरशमिरज्जावहिमरुचौ हिमधाम्नि याति चास्तम् ।
वहति गिरिरयं विलम्बिधणटाद्वयपरिवारितवारणेन्द्रलीलाम् ॥४.२०॥

वहति यः परितः कनकस्थलीः सहरिता लसमाननवांशुकः ।
अचल एष भवानिव राजते स हरितालसमाननवांशुकः ॥४.२१॥

पाश्चात्यभागमिह सानुषु सन्निषण्णाः
पश्यन्ति शान्तमलसान्द्रतरांशुजालं ।
संपूर्णलब्धललनालापनोपमान-
मुत्सङ्गसह्गिहरिणमस्य मृगाङ्गमूर्तेः ॥४.२२॥

कृत्वापुंवत्पादमुच्चैर्भृगुभ्यो मूर्ध्नि ग्राव्णां जर्जरा निर्झरौघाः ।
कुर्वन्ति द्यामुत्पतन्तः स्मरार्तस्वर्लोकस्त्रीगात्रनिर्णमत्र ॥४.२३॥

स्थगयन्त्यमूः शामितचातकार्तस्वरा
जलदास्तडित्तुलितकान्तकार्तस्वराः ।
जगतीरिहस्फुरितचारुचामीकराः
सवितुः कचित्कपिशयन्ति चामी कराः ॥४.२४॥

उत्क्षिप्तमुच्छ्रितसितांशुकरावलम्बै-
रुत्तम्भितोडुभिरतिवतरां शिरोभिः ।
श्रद्धेयनिर्झरजलव्यपदेशमस्य
विष्वक्तटेषु पतति स्फुटमन्तरीक्षं ॥४.२५॥

एकत्र स्फटिकतटांशुभिन्ननीरा
नीलाश्मद्युतिभिदुराम्भसोऽपरत्र ।
कालिन्दीजलजनितश्रियः श्रयन्ते
वैदग्धीमिह सरितः सुरापगायाः ॥४.२६॥

इतस्ततःऽस्मिन्विलसन्ति मेरोः समानवप्रेमणिसानुरागाः ।
स्त्रियशच पत्यौ सुरसुन्दरीभिः समा नवप्रेमणिसानुरागाः ॥४.२७॥

उच्चैमहारजतराजिविराजितासौ
दुर्वर्णभित्तिरिह सान्द्रसुधासवर्णा ।
अभ्येति भस्मपरिपाण्डुरितस्मरारे-
रुद्वह्निलोचनललामललाटलीलां ॥४.२८॥

अयमतिजरठाः प्रकामगुर्वीरलघुविलम्बिपयोधरोपरुद्धाः ।
सततमसुगतामगम्यरूपाः परिणतदिक्करिकास्तटीर्बिभर्ति ॥४.२९॥

धूमाकारं दधति पुरः सौवर्णे
वर्णेनाग्नेः सदृशि तटे पश्यामी ।
श्यामीभूताः कुसुमसमूहोऽलीनां
लीनामालीमिह तरवो बिभ्राणाः ॥४.३०॥

व्योमस्पृशः प्रथयता कलधौतभित्ती-
रुन्निद्रपुष्पचणचम्पकपिङ्गभासः ।
सौमेरवीमधिगतेन नितम्बशोभा-
मेतेन भारतमिलावृतवद्विभाति ॥४.३१॥

रुचिरचित्रतनूरुहशालिभिर्विचलितैः परितः प्रियकव्रजैः ।
विवधरत्नमयैरभिबात्यसाववयवैरिव जङ्गमतां गतैः ॥४.३२॥

कुशशयैरत्र जलाशयोषिता मुदा रमन्ते कलभा विकस्वरैः ।
प्रगीयते सिद्धगणैश्च योषितामुदारम कलभाविकस्वरैः ॥४.३३॥

आसादितस्य तमसा नियतेर्नियोगा-
दाकाङ्क्षतःपुनरपक्रमणेन कालम् ।
पत्युस्त्वषामिह महौषधयः कलत्र
स्थानं परैननभिभूतममूर्वहन्ति ॥४.३४॥

वनस्पतिस्कन्धनिषण्णबालप्रवालहस्ताः प्रमदा इवात्र ।
पुष्पेक्षणैलम्भितलोचकैर्वा मधुव्रतव्रातवृतैर्व्रतत्यः ॥४.३५॥

विहगाः कदम्बसुरभाविह गाः कलयन्तनुक्षणमनेकलयं ।
भ्रमयन्नुपैति मुहुरभ्रमयं पवनश्च धूतनवनीपवनः ॥४.३६॥

विद्वद्भिरागमपरैर्विवृतं कथञ्चि-
च्छ्रुत्वापि दुर्ग्रहमनिश्चितधीभिरन्यैः ।
श्रेयान्द्विजातिरिव हन्तुमघानि दक्षं
गूठार्थमेष निधिमन्त्रगणं बिभर्ति ॥४.३७॥

बिम्बोष्ठं बहु मनुते तुरङ्गवक्त्र-
श्चुम्बन्तं मुखमिह किंनरं प्रियायाः ।
श्लिष्यन्तंमुहुरितरोऽपि तं निजस्त्री-
मुत्तुङ्गस्तनभरभङ्गभीरुमध्यां ॥४.३८॥

यदेतदस्यानुतटं विभाति वनं ततानेकतमालतालं ।
न पुष्पितात्र स्थगितार्करस्मावनान्तताने कतमा लतालं ॥४.३९॥

दन्तोज्ज्वलासु विमलोपलमेखलान्ताः
सद्रत्नचित्रकटकासु बृहन्नितम्बाः ।
अस्मिन्भजन्ति घनक्ॐअलगण्डशैला
नार्योऽनुरूपमधिवासमधित्यकासु ॥४.४०॥

अनतिचिरोज्झितस्य जलदेन चिर-
स्थितबुद्ध्युदयस्य पयसोऽनुकृतिं ।
विरलविकीर्णवज्रशकला सकला
मिह विदधाति धौतकलधौतमही ॥४.४१॥

वर्जयन्त्या जनैः संगमेकान्तत-
स्तर्कयन्त्या सुखं सङ्गमे कान्ततः ।
योषयैष स्मरासन्नतापाङ्गया
सेव्यतेऽनेकया संन्नतापङ्गया ॥४.४२॥

संकीर्णकीचकवनस्खलितैकवाल-
विच्छेदकातरधियश्चलितुं चमर्यः ।
अस्मिन्मृदुश्वसनगर्भतदीयरन्ध्र-
र्यत्स्वनश्रुतिसुखादिव नोत्सहन्ते ॥४.४३॥

मुक्तं मुक्तागौरमिह क्षीरमिवाभ्रै-
र्वापीष्वन्तर्लीनमहानीलदलासु ।
शस्त्रीश्यामैरंशुभिराशु द्रुतमम्भ-
श्छायामच्छामृच्छति नीलीसलिलस्य ॥४.४४॥

या न ययौ प्रियमन्यवधूभ्यः सारतरागमना यतमानं ।
तेन सहेत बिभर्ति रसः स्त्री सा रतरागमनायतानां ॥४.४५॥

भिन्नेषुरत्नकिरणैः किरणेष्विहेन्दो-
रुच्चावचैरुपगतेषु सहस्रसंख्यां ।
दोषापि नूनमहिमांशुरसौ किलेति
व्याकोशकोकनदतां दधते नलिन्यः ॥४.४६॥

अपशङ्कमङ्कपरिवर्तनोचिताश्चलिताः पुरः पतिमुपेतुमात्मजाः ।
अनुरोदितीव करुणेन पत्त्रिणां विरुतेन वत्सलतययैष निम्नगाः ॥४.४७॥

मधुकरविटपानमितास्तरुपङ्क्तीर्बिभ्रतःऽस्य विटपानमिताः ।
परिपाकपिशङ्गलतारजसा रोधश्चकास्ति कपिशं गलता ॥४.४८॥

प्राग्भागतः पतदिहेदमुपत्यकासु
शृङ्गारितायतमहेभकराभमम्भः ।
संलक्ष्यतेविविधरत्नकरानुविद्ध-
मूर्ध्वप्रसारितसुराधिपचापचारु ॥४.४९॥

दधाति च विकसद्विचित्रकल्प-
द्रुमकुसुमैरभिगुम्फितानिवैताः ।
क्षणमलघुविलम्बिपिच्छदाम्नः
शिखरशिखाः शिखिशेखरानमुष्य ॥४.५०॥

सवधूकाः सुखिनोऽस्मन्ननवरतममन्दरामतामरसदृशः ।
नासेवन्ते रसवन्नवरतममन्दरागतामरसदृशः ॥४.५१॥

आच्छाद्य पुष्पपटमेव महान्तमन्त-
रावर्तिभिर्गृहकपोतशिरोधराभैः ।
शस्वङ्गानि धूमरुचिमागुरवीं दधानै-
र्धूपायतीव पटलैर्नीरदानां ॥४.५२॥

अन्योन्यव्यतिकरचारुभिर्विचित्रै-
रत्रस्यन्नवमणिर्जन्मभिर्मयूखैः ।
विस्मेरान्गगनसदः करोत्यमुष्मि-
न्नाकाशेरचितमभित्ति चित्रकर्म ॥४.५३॥

समीरशिशिरः शिरःसुवसता
सता जवनिका निकानसुखिनां ।
बिभर्तिजनयन्नयं मुदमपा
मपायधवला वलाहकततीः ॥४.५४॥

मैर्त्त्र्यादिचित्तपरिकर्मविदो विधाय
क्लेशप्रहाणमिह लब्धसबीजयोगाः ।
ख्यातिं चसत्त्वपुरुषान्यतयाधिगम्य
वाञ्चन्ति तामपि समाधिभृतः निरोद्धुम् ॥४.५५॥

मरकतमयमेदिनीषु भानो-
स्तरुविटपान्तरपातिनो मयूखाः ।
अवनतशितिकण्ठकण्ठलक्ष्मी-
मिह दधति श्फुरिताणुरेणुजालाः ॥४.५६॥

या बिभर्ति कलवल्लकीगुणस्वानमानमतिकालिमालया ।
नात्र कान्तमुपगीतया तया स्वानमानमति कालिमालया ॥४.५७॥

सायं शशाङ्गकिरणाहतचन्द्रकान्त-
निस्यन्दिनीरनिकरेण कृताभिषेकाः ।
अर्कोपलोल्लसितवह्निभिरह्नि तप्ता-
स्तीव्रं महाव्रतमिवात्र चरनति वप्राः ॥४.५८॥

एतस्मिन्नधिकपयःश्रियं वहन्त्यः
संक्षोभं पवनभुवा जवेन नीताः ।
वाल्मीकेररहितरामलक्ष्मणानां
साधर्म्यं दधति गिरां महासरस्यः ॥४.५९॥

इह मुहुर्मुदितैः कलभै रवः
प्रतिदिशं क्रियते कलभैरवः ।
स्फुरति चानुवनं चमरीचयः
कनकरत्नभुवां च मरीचयः ॥४.६०॥

त्वक्साररन्ध्रपरिपूरणलब्धगीति-
रस्मिन्नसौ मृदितपक्ष्मलरल्लकाङ्गः ।
कस्तूरिकामृगविमर्दसुगन्धिरेति
रागीव सक्तिमधिकां विषयेषु वायुः ॥४.६१॥

प्रीत्यै यूनां व्यवहिततपनाः
प्रौढद्वान्तं दिनमिह जलदाः ।
दोषामन्यं विदधाति सुरत-
क्रीडायासश्रमपटवः ॥४.६२॥

भग्ने निवासोऽयमिहास्य पुष्पैः
सदानतः येन विषाणि नागः ।
तीव्राणि तेनोज्झति कोपितोऽसौ
ससानतोयेन विषाणि नागः ॥४.६३॥

प्रालेयशीतलमचलेश्वरमीश्वरोऽपि
सान्द्रभचर्मवसनावरणाधिशेते ।
सर्वर्तुनिवृत्तिकरे निवसन्नुपैति
न द्वन्द्वदुःखमिह किञ्चिदकिञ्चनोऽपि ॥४.६४॥

नवनगवनलेखाश्यामध्याभिराभिः
स्फटिककटकभूमिनाटयत्येष शैलः ।
अहिपरिकरभाजो भास्मनैरङ्गरागै-
रधिगतधवलिम्नः शूलपाणेरभिख्याम् ॥४.६५॥

दधद्भिरभितस्तटौ विकचवारिजाम्बूनदै-
र्विनोदितदिनक्लमाः कृतरुचश्चजाम्बूनदैः ।
निषेव्य मधु माधवाः सरसमत्र कादम्बरं
हरन्ति रतये रहः प्रियतमाङ्गकादम्बरम् ॥४.६६॥

दर्पणनिर्मलासु पतिते घनतिमिरमुषि
ज्योतिषि रौप्यभित्तिषु पुरः प्रतिफलति मुहुः ।
व्रीडमसंमुखोऽपि रमणैरपहृतवसनाः
खाञ्चनकन्दरासु तरुणीरिह नयति रविः ॥४.६७॥

अनुकृतिशिखरौघश्रीभिरभ्यगतेऽसौ
त्वयि सरभसमभ्युत्तिष्ठतीवाद्रिरुच्चैः ।
द्रुतमरुदुपनुन्नैरुन्नमद्भिः सहेलं
हलधरपरिधानश्यामलैरम्बुवाहैः ॥४.६८॥

इति श्रीमाघकृतौ शिशुपालवधे महाकाव्ये श्र्यङ्के रैवतक-
वर्णनं नाम चतुर्थः सर्गः ।

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