रामाश्रयी शाखा — विशेषताएँ, प्रवृत्तियाँ, कवि एवं रचनाएँ
रामाश्रयी भक्ति-काव्य वह शाखा है जिसमें भगवान राम को भक्ति, आदर्श और मर्यादा के परम प्रतीक रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस काव्यधारा में भक्ति के साथ धर्म, नीति, सत्य, लोककल्याण और आदर्श जीवन का विस्तृत चित्रण मिलता है।
रामाश्रयी शाखा भक्तिरस के साथ-साथ आदर्शवादी और नीति-प्रधान जीवनदर्शन का भी समन्वय करती है। यहाँ राम केवल देवता नहीं, बल्कि एक आदर्श पुरुष, धर्मरक्षक एवं न्यायप्रिय शासक के रूप में भी उभरते हैं।
विशेषताएँ
- मर्यादा और आदर्श का भाव: राम के आदर्श जीवन, नीति, सत्य और धर्म की प्रतिष्ठा।
- भक्ति और नीति-संतुलन: भक्तिरस के साथ नैतिकता, जीवन-आदर्श और मानवधर्म का समावेश।
- सरल, लोकसुलभ भाषा: अवधी, ब्रज और लोकभाषाओं में काव्य रचना।
- कथात्मक शैली: चरित-प्रधान वृत्त, युद्ध, वनवास, प्रेम, करुणा और नीति का चित्रण।
- चरित्र-चित्रण की गहराई: राम, सीता, लक्ष्मण, भरत, हनुमान आदि पात्रों के आदर्श गुणों का विस्तार।
प्रवृत्तियाँ और रूप
- चरित-काव्य: रामायण-कथा को आधार बनाकर पदावली, चौपाई, दोहा और गीत।
- नीति-मूलक रचनाएँ: नीति, धर्म और आदर्शों का उपदेशात्मक रूप।
- भक्ति और वीर-रस का संगम: राम-कथा में करुण, भक्ति और वीररस का स्वाभाविक मिश्रण।
- लोक-परंपराओं का प्रभाव: रामलीला, गीत-रूपक और चौपाइयों की मौखिक परंपरा।
प्रमुख कवि और रचनाएँ
- गोस्वामी तुलसीदास: रामचरितमानस, विनयपत्रिका, कवितावली, दोहावली।
- केशवदास: रामचन्द्रिका — नीतिमूलक रामकथा।
- भूषण: राम-चरित्र पर वीर-रसपूर्ण वर्णन।
- कवि जगनिक: आल्हा के साथ कुछ राम-प्रशस्तियाँ।
- लोक-कवि: गाँवों में प्रचलित राम-कथा आधारित चौपाइयाँ, सोहर, भजन।
सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
रामाश्रयी शाखा ने भारतीय समाज में मर्यादा, सत्य, संयम, कर्तव्य और न्याय जैसे आदर्शों को दृढ़ किया। यह परंपरा रामलीला, लोकगीतों, अवधी साहित्य और भक्ति-पंरपरा के माध्यम से आज भी जीवित है।
रामाश्रयी शाखा (राम काव्य)
विशेषताएँ
- भगवान राम विष्णु के अवतार हैं। वह परमब्रह्मस्वरूप हैं, मर्यादापुरुषोत्तम हैं, शील-सौन्दर्य, शक्ति के समन्वय हैं। वो व्यापक, अजित, अनादि, अनन्त, गो, द्विज, धेनु, देव, मनुष्य सबके हितकारी हैं, कृपासिन्धु हैं। पृथ्वी पर आदर्श की स्थापना के लिए मनुष्य के रूप में अवतार लिए हैं। तुलसी के परमाराध्य हैं। ऐसे मंगलभवन, अमंगलहारी, अजिर बिहारी राम इस काव्यधारा के प्रतिपाद्य विषय हैं।
- रामश्रयी का दृष्टिकोण समन्वयात्मक है, इस काव्य में विराट समन्वय की चेष्टा है।
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© रामाश्रयी शाखा (राम काव्य) – Paramhans Pathshala
