रामाश्रयी शाखा (राम काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 

रामाश्रयी शाखा (राम काव्य) - 1.विशेषताएँ ।

1. भगवान राम विष्णु के अवतार हैं। वह परमब्रह्मस्वरूप हैं, मर्यादापुरुषोत्तम हैं, शील-सौन्दर्य,शक्ति के समन्वय हैं। वो व्यापक, अजित, अनादि्, अनन्त,गो, द्विज,धेनु,देव,मनुष्य सबके हितकारी हैं, कृपासिन्धु हैं पृथ्वी पर आदर्श की स्थापना के लिए मनुष्य के रूप में अवतार लिए हैं। तुलसी के परमाराध्य हैं,ऐसे मंगलभवन, अमंगलहारी, अजिर बिहारी राम इस काव्यधारा के प्रतिपाद्य विषय हैं।

2. रामश्रयी का दृष्टिकोण समन्वयात्मक है, इस काव्य में विराट समन्वय की चेष्टा है।

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प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) - इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 

प्रेमाश्रयी शाखा (सूफी काव्य) - 1.विशेषताएँ ।

1. सूफी काव्य में लौकिक प्रेम कहानियों के माध्यम से अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है। आचार्य शुक्ल जी ने इसीलिए इसे प्रेमाश्रयी शाखा नाम दिया।
2. सूफी काव्य में प्रेम तत्व का निरूपण किया गया है , प्रेम कथानकों के माध्यम से परमात्मा एवं जीव का तादात्म्य स्थापित किया गया है।
3. सूफी काव्य प्रबन्ध काव्य की कोटि में आता है यद्यपि समस्त काव्यों क्रम योजना एक समान ही है।मंगलाचरण से प्रारम्भ होकर कथानकों का दुखमय अन्त सूफी काव्य की पहचान है । कुछ प्रेमकथानक सुखान्त भी हैं।
4. बारहमासा वर्णन, नायक-प्रतिनायक की उपस्थिति, प्रेम के विरहपक्ष का अतिरंजित वर्णन, भोग-विलास से युक्त मिलन का अश्लील वर्णन, काव्य रूढ़ियों का प्रचुर प्रयोग सूफी काव्य की पहचान है।
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ज्ञानाश्रयी शाखा (सन्त काव्य)- इतिहास, प्रवित्तियाँ, विशेषताएँ ।

 ज्ञानाश्रयी शाखा (सन्त काव्य)-  1.विशेषताएँ ।

1. सभी सन्त निर्गुण ईश्वर में विश्वास रखते हैं। निर्गुण ईश्वर ही घट-घट में व्याप्त है और एकमात्र ज्ञानगम्य है। वह अविगत है उसे बाहर ढूढ़ने की आवश्यकता  नहीं   है।  भक्ति की जगह ज्ञान  को अधिक महत्व दिया गया है।

2.  सन्त कवियों ने अवतारवाद एवं बहुदेववाद का निर्भीकतापूर्वक खण्डन किया। शंकर का अद्वैतवाद एवं इस्लाम पंथ का एकेश्वरवाद इनकी कविताओं के मूल में है।

3.  सभी सन्त कवियों ने गुरु को ईश्वर से भी अधिक महत्व दिया, कबीरदास जी का मानना   था कि  रामकृपा तभी होती है जब गुरु की कृपा होती है।

4. समस्त सन्त कवियों ने जाँति-पाँति, वर्ग-भेद,ऊँच-नीच,छुआछूत, एवं हिन्दू मुसलमान का प्रबल विरोध किया। हिन्दू -मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए सामान्य भक्तिमार्ग की प्रतिष्ठा की।

5.  सिद्धों एवं नाथपं थियों से प्रभावित होकर प्रायः सभी सन्त कवियों ने रूढ़ियों एवं आडम्बरों का विरोध किया, मूर्तिपूजा, तीर्थ-व्रत, हज-नमाज, रोजा सहित सभी बाह्याडम्बरों का कबीरदास जी ने डटकर विरोध किया है।

6.  प्रेम और विरहानुभूति की अभिव्यक्ति सन्तकाव्य की  प्रमुख विशेषता है। इस काव्य में अलौकिक प्रेम की अभिव्यंजना है। प्रणयानुभूति के क्षेत्र में पहुँचकर ये खण्डन-मण्डन की प्रवृत्ति को भूल जाते हैं।

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रीतिकाल- इतिहास, प्रवृत्तियाँ, विशेषताएँ, अन्य

 रीतिकाल- इतिहास, प्रवृत्तियाँ, विशेषताएँ, अन्य

रीतिकालीनकाव्य की विशेषताएँ

      1.    रीतिकाल का काव्य यद्यपि श्रृंगारप्रधान है पर इस श्रृंगार रस की साधना में जीवन के सन्तुलित दृष्टिकोण का नितान्त अभाव है। एन्द्रियता की प्रचुरता है,रसिकता की प्रधानता है ।
      2.    प्रदर्शन प्रधान युग में काव्य के बाह्य अलंकार की ओर कवि ने सर्वाधिक रुचि दिखाई अलंकार के इस अनावश्यक मोह के कारण कहीं कहीं पर कविता कामिनी की आत्मा बुरी तरह से अभिभूत हुयी है इस युग में बीर रसात्मक कविता भी हुयी है ।
    3.    घुटनशील वातावरण से ऊबकर भक्ति और नीति सम्बन्धी सूक्तियाँ भी लिखी गयी किन्तु भक्ति सम्बन्धी दोहे के कारण उन्हें भक्त कवि नहीं कहा जा सकता ।
    4 .    परिस्थितिजन्य होने के कारण मुक्तक काव्य लिखे गये। कवित्त,सवैया,दोहा,छप्पय का प्रयोग अत्यधिक किया गया ।
    5.    भाषा का परिमार्जन,सौष्ठव और प्रौढ़ता,उक्ति और वैचित्र्य,चमत्कार तथा भाव की मर्मस्पर्शी अभिव्यंजना की गयी ।
    6.    भाषा ब्रज है ।
     7.    इन काव्यों में लक्षणों की अपेक्षा उदाहरण खँण्ड अधिक लोकप्रिय एवं उत्कृष्ट हैं ।
     8.    रीतिकाव्य में श्रृंगारिकता का आधिक्य अवश्य है फिर भी बीर रस की कविताएँ भी साथ-साथ प्रवाहित होती रही है, भूषण लाल और सूदन आदि कवियों ने ओजस्विनी आदि भाषा में वीर रसात्मक आदि काव्य की रचना की है ।
    9.    प्रकृति का परम्पराभुक्त रूप में चित्रण है आलम्बन रूप में उसका ग्रहण किया गया है। प्रायः रीति कवि प्रकृति के प्रति तटस्थ सा दीख पड़ता है ।
     10.    इन कवियों की अभिव्यंजना प्रणाली विशेष मनोरम है । इनके नयनों में रूप की प्यास अमिट थी ।
   11.   रीति कवि ने स्त्री पुरुष के यौन सम्बन्धों का चित्रण मनोवैज्ञानिक ढंग से किया है इस दिशा में भारतीय कामशास्त्र का प्रभाव उस पर निश्चित रूप से पड़ा है । 
 12. रीति कवि ने वर्णक शैली का प्रयोग किया ।
13.   रीति काव्य शास्त्रों में  मौलिकता और चिन्तन का अभाव है ।

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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
संपर्क सूत्र -8009992553
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