रिचर्ड्स का संप्रेषण सिद्धान्त — परिभाषा, तत्त्व, विवेचन
आई. ए. रिचर्ड्स (I. A. Richards) आधुनिक अंग्रेज़ी आलोचना के प्रमुख सिद्धान्तकार थे। उन्होंने काव्य को संप्रेषण की प्रक्रिया (Communication Process) माना। उनके अनुसार कवि और पाठक के मध्य विचार, भाव और अनुभव का आदान-प्रदान ही काव्य का सार है।
इस दृष्टि से रिचर्ड्स का संप्रेषण सिद्धान्त काव्य के मनोवैज्ञानिक तथा भाषिक दोनों पक्षों को एक साथ जोड़ता है।
मूल्य सिद्धान्त के अलावा रिचर्ड्स का दूसरा महत्वपूर्ण सिद्धान्त है ‘संप्रेषण सिद्धान्त’। रिचर्ड्स ने मानव के सामान्य व्यवहार कि वह एक सामाजिक प्राणी है और बाल्यावस्था से ही वह अपने भावों एवं विचारों का संप्रेषण करता रहा है,को आधार बनाकर अपने संप्रेषण सिद्धान्त की प्रतिष्ठा की है। इसी संप्रेषण शक्ति के कारण ही मनुष्य का आज इतना विकास सम्भव हुआ। संप्रेषण मानव के अभिव्यक्ति की सबसे प्राचीन प्रणाली है ।
संप्रेषण सिद्धान्त का मूल तत्त्व
रिचर्ड्स ने बताया कि किसी भी काव्य रचना में चार आवश्यक तत्त्व होते हैं —
- 1️⃣ संवेदक (Sense) — कथ्य या विचार की अभिव्यक्ति।
- 2️⃣ भाव (Feeling) — भावनात्मक अनुभूति।
- 3️⃣ स्वर (Tone) — कवि का दृष्टिकोण।
- 4️⃣ उद्देश्य (Intention) — कवि की प्रेरणा या मंशा।
इन चारों के संतुलन से काव्य में सार्थक संप्रेषण संभव होता है।
रिचर्ड्स का विवेचन
रिचर्ड्स ने कहा कि काव्य केवल विचारों का बोध नहीं कराता, बल्कि यह भावनात्मक संप्रेषण की एक विशिष्ट प्रक्रिया है। कवि अपने अनुभव को शब्दों में रूपान्तरित करता है और पाठक उन शब्दों के माध्यम से उसी अनुभूति का अनुभव करता है — यही काव्य का संप्रेषण है।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि शब्द केवल संकेत नहीं, बल्कि अर्थ के वाहक हैं। कवि का उद्देश्य शब्दों द्वारा अपने भीतर के अनुभवों को सजीव करना होता है।
संप्रेषण सिद्धान्त का महत्त्व
रिचर्ड्स के इस सिद्धान्त ने काव्य को सामाजिक और मानसिक क्रिया के रूप में प्रतिष्ठित किया। उन्होंने काव्य को कवि और पाठक के बीच एक मानसिक संवाद माना।
इस सिद्धान्त से काव्य के सार्थक अर्थ-प्रेषण और सहानुभूति की भावना को विशेष बल मिला। आधुनिक भाषावैज्ञानिक आलोचना में इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
