🌸 अलंकार 🌸
✍️ अलंकार की परिभाषा -
मानव समाज सौन्दर्योपासक है। उसकी इसी प्रवृत्ति ने अलंकारों को जन्म दिया। जिस प्रकार शरीर की सुन्दरता को बढ़ाने के लिए मनुष्य आभूषणों का प्रयोग करता है, उसी प्रकार भाषा को सुंदर बनाने के लिए अलंकार का सृजन हुआ। काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते है । जिस प्रकार नारी के सौन्दर्य को बढ़ाने के लिए आभूषण होते है,उसी प्रकार भाषा के सौन्दर्य के उपकरणों को अलंकार कहते है। इसीलिए कहा गया है - 'भूषण बिन न बिराजई कविता बनिता मित्त ।'
🌿 व्युत्पत्ति
अलंकार शब्द की व्युत्पत्ति – अलम् + कृ + घञ् से हुई है। इसका अर्थ है अलंकृत करना। 👉 अर्थात – “जिसके द्वारा अलंकृत किया जाए वही अलंकार है।”
✨ अलंकार काव्य की आत्मा को और अधिक सुंदर, आकर्षक व प्रभावशाली बनाते हैं। ✨
📖 अलंकार की प्रमुख परिभाषाएँ 📖
क्रम
परिभाषा
① अलंकरोति इति अलंकारः – अलंकृत करता है अतः अलंकार है।
② अलंक्रियते अनेन इति अलंकारः – जिससे यह अलंकृत होता है वही अलंकार है।
③ अलंकृतिः अलंकारः – अलंकृति ही अलंकार है।
④ भामह : वाचां वक्रार्थ शब्दोक्तिरिष्टा वाचांलंकृतिः – शब्द और अर्थ की विभामय करने वाली वक्रोक्ति ही अलंकार है।
⑤ दण्डी : काव्य शोभाकरान् धर्मान अलंकारान प्रचक्षते – काव्य के समस्त शोभाकारक धर्म ही अलंकार हैं।
⑥ वामन : काव्य शोभायाः कर्तारौ धर्माः गुणाः तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः – काव्य का शोभाकारक धर्म गुण है और उसकी अतिशयता का हेतु अलंकार है।
⑦ जगन्नाथ : काव्यात्मनो व्यंग्यस्य रमणीयता प्रयोजका अलंकाराः – अलंकार उन्हें कहते हैं जो काव्य की आत्मा व्यंग्य की रमणीयता के प्रयोजक हैं।
⑧ रुद्रट- अभिधानप्रकार विशेषा एवं चालंकाराः- कथन की विशेष भंगिमा ही अलंकार है, भंगिमा का अर्थ है लाक्षणिक वाक्य जो चमत्कृति का सृजन करता है।
⑨ आनन्दवर्धन- तत् (रस) प्रकाशिनो वाच्यविशेषा एव रूपकादयोऽलंकाराः- अलंकारों का शब्दार्थ के साथ संयोग सम्बन्ध होता है।
⑩ कुन्तक- कविप्रतिभोत्थितः विच्छित्ति विशेषः अलंकारः
⑪ महिमभट्ट- चारुत्वं हि वैचित्य पर्यायं प्रकाशमानं अलंकारः।
⑫ राजानक रुय्यक-
⑬ मम्मट-
⑭ विश्वनाथ-
⑮ जगन्नाथ-
⑯ जयदेव-
⑰
⑱
⑲
⑳
🌸 अलंकार के तत्व 🌸
अलंकार के मूल में कौन से तत्व रहते हैं – इस पर संस्कृत विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत दिए हैं।
विद्वान
तत्व
आचार्य दण्डी
स्वभावोक्ति
भामह
वक्रोक्ति
वामन एवं रूय्यक
सादृश्य
उद्भट
अतिशयता
अभिनवगुप्त
गुणीभूतव्यंग्य
📖 अलंकार की प्रमुख परिभाषाएँ 📖
क्रम
परिभाषा
① अलंकरोति इति अलंकारः – अलंकृत करता है अतः अलंकार है।
② अलंक्रियते अनेन इति अलंकारः – जिससे यह अलंकृत होता है वही अलंकार है।
③ अलंकृतिः अलंकारः – अलंकृति ही अलंकार है।
④ भामह : वाचां वक्रार्थ शब्दोक्तिरिष्टा वाचांलंकृतिः – शब्द और अर्थ की विभामय करने वाली वक्रोक्ति ही अलंकार है।
⑤ दण्डी : काव्य शोभाकरान् धर्मान अलंकारान प्रचक्षते – काव्य के समस्त शोभाकारक धर्म ही अलंकार हैं।
⑥ वामन : काव्य शोभायाः कर्तारौ धर्माः गुणाः तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः – काव्य का शोभाकारक धर्म गुण है और उसकी अतिशयता का हेतु अलंकार है।
⑦ जगन्नाथ : काव्यात्मनो व्यंग्यस्य रमणीयता प्रयोजका अलंकाराः – अलंकार उन्हें कहते हैं जो काव्य की आत्मा व्यंग्य की रमणीयता के प्रयोजक हैं।
⑧ रुद्रट- अभिधानप्रकार विशेषा एवं चालंकाराः- कथन की विशेष भंगिमा ही अलंकार है, भंगिमा का अर्थ है लाक्षणिक वाक्य जो चमत्कृति का सृजन करता है।
⑨ आनन्दवर्धन- तत् (रस) प्रकाशिनो वाच्यविशेषा एव रूपकादयोऽलंकाराः- अलंकारों का शब्दार्थ के साथ संयोग सम्बन्ध होता है।
⑩ कुन्तक- कविप्रतिभोत्थितः विच्छित्ति विशेषः अलंकारः
⑪ महिमभट्ट- चारुत्वं हि वैचित्य पर्यायं प्रकाशमानं अलंकारः।
⑫ राजानक रुय्यक-
⑬ मम्मट-
⑭ विश्वनाथ-
⑮ जगन्नाथ-
⑯ जयदेव-
⑰
⑱
⑲
⑳
🌸 अलंकार के तत्व 🌸
अलंकार के मूल में कौन से तत्व रहते हैं – इस पर संस्कृत विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत दिए हैं।
विद्वान
तत्व
आचार्य दण्डी
स्वभावोक्ति
भामह
वक्रोक्ति
वामन एवं रूय्यक
सादृश्य
उद्भट
अतिशयता
अभिनवगुप्त
गुणीभूतव्यंग्य
📖 अलंकार की प्रमुख परिभाषाएँ 📖
| क्रम | परिभाषा |
| ① | अलंकरोति इति अलंकारः – अलंकृत करता है अतः अलंकार है। |
| ② | अलंक्रियते अनेन इति अलंकारः – जिससे यह अलंकृत होता है वही अलंकार है। |
| ③ | अलंकृतिः अलंकारः – अलंकृति ही अलंकार है। |
| ④ | भामह : वाचां वक्रार्थ शब्दोक्तिरिष्टा वाचांलंकृतिः – शब्द और अर्थ की विभामय करने वाली वक्रोक्ति ही अलंकार है। |
| ⑤ | दण्डी : काव्य शोभाकरान् धर्मान अलंकारान प्रचक्षते – काव्य के समस्त शोभाकारक धर्म ही अलंकार हैं। |
| ⑥ | वामन : काव्य शोभायाः कर्तारौ धर्माः गुणाः तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः – काव्य का शोभाकारक धर्म गुण है और उसकी अतिशयता का हेतु अलंकार है। |
| ⑦ | जगन्नाथ : काव्यात्मनो व्यंग्यस्य रमणीयता प्रयोजका अलंकाराः – अलंकार उन्हें कहते हैं जो काव्य की आत्मा व्यंग्य की रमणीयता के प्रयोजक हैं। |
| ⑧ | रुद्रट- अभिधानप्रकार विशेषा एवं चालंकाराः- कथन की विशेष भंगिमा ही अलंकार है, भंगिमा का अर्थ है लाक्षणिक वाक्य जो चमत्कृति का सृजन करता है। |
| ⑨ | आनन्दवर्धन- तत् (रस) प्रकाशिनो वाच्यविशेषा एव रूपकादयोऽलंकाराः- अलंकारों का शब्दार्थ के साथ संयोग सम्बन्ध होता है। |
| ⑩ | कुन्तक- कविप्रतिभोत्थितः विच्छित्ति विशेषः अलंकारः |
| ⑪ | महिमभट्ट- चारुत्वं हि वैचित्य पर्यायं प्रकाशमानं अलंकारः। |
| ⑫ | राजानक रुय्यक- |
| ⑬ | मम्मट- |
| ⑭ | विश्वनाथ- |
| ⑮ | जगन्नाथ- |
| ⑯ | जयदेव- |
| ⑰ | |
| ⑱ | |
| ⑲ | |
| ⑳ |
🌸 अलंकार के तत्व 🌸
अलंकार के मूल में कौन से तत्व रहते हैं – इस पर संस्कृत विद्वानों ने भिन्न-भिन्न मत दिए हैं।
| विद्वान | तत्व |
| आचार्य दण्डी | स्वभावोक्ति |
| भामह | वक्रोक्ति |
| वामन एवं रूय्यक | सादृश्य |
| उद्भट | अतिशयता |
| अभिनवगुप्त | गुणीभूतव्यंग्य |
1.अनुप्रास अलंकार
परिभाषा: अनु + प्र + आस् = 'बार-बार', 'प्रकर्ष (के साथ) रखना'।
अर्थात् रस के अनुकूल वर्णों की पास-पास रचना (प्रास)।
जिस वाक्य काव्य अथवा काव्यांश में वर्णों की आवृत्ति हो, उसे अनुप्रास अलंकार कहते हैं।
जहाँ स्वर की समानता के बिना भी वर्णों की बार-बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।
आचार्यों की परिभाषाएँ
| आचार्य का नाम | परिभाषा / विवरण |
|---|---|
| आचार्य भामह | “सरूप वर्षों के विन्यास को अनुप्रास अलंकार कहते हैं।” उन्होंने इसके रूपों की ओर संकेत किया है। जैसे: नागरिक अनुप्रास, ग्राम्य अनुप्रास। |
| आचार्य वामन | “शेषः सरूपोऽनुप्रासः” – यमक के अतिरिक्त (शेष) तुल्यरूप पद का नाम अनुप्रास है। |
| अग्निपुराण | “स्यादावृत्तिरनुप्रासो वर्णानां पद वाक्ययोः। एक वर्णोऽनेकवर्णों वृत्ते, वर्णगणो द्विधा।” पद और वाक्यों में वर्णों की आवृत्ति का नाम अनुप्रास है। इसके दो भेद: एकवर्णागतावृत्ति और अनेकवर्णागतावृत्ति। |
| आचार्य विश्वनाथ | “अनुप्रासः शब्दसाम्यं वैषम्येऽपि स्वरस्य यत्।” |
| आचार्य मम्मट | “वर्णसाम्यमनुप्रासः।” |
सारांश:
अनुप्रास वह अलंकार है जिसमें वर्णों की आवृत्ति और समानता रस के अनुसार की जाती है। यह काव्य को सुंदर और मधुर बनाता है।
उपमा के अंग -
१- उपमेय (प्रस्तुत ) - जिसके लिए उपमा दी जाती है , या जिसकी तुलना की जाती है .
२- उपमान (अप्रस्तुत )- जिससे उपमा दी जाती है , या जिससे तुलना की जाती है .
३- वाचक शब्द - वह शब्द , जिसके द्वारा समानता प्रदर्शित की जाती है . जैसे - ज्यों , जैसे , सम , सरिस , सामान आदि
४- समान धर्म - वह गुण अथवा क्रिया , जो उपमेय और उपमान , दोनों में पाया जाता है . अर्थात जिसके कारन इन दोनों को समान बताया जाता है .
जैसे - राधा चन्द्र सी सुन्दर
| | | |
उपमेय उपमान वाचक शब्द समान धर्म
उदाहरण- पीपर पात सरिस मन डोला ।
१- पूर्णोपमा - जब उपमा में इसके चारो अंग प्रत्यक्ष हो ।
जैसे - मुख मयंक सम मंजु मनोहर । मुख चन्द्रमा के समान सुन्दर है .
२- लुप्तोपमा - जब उपमा के चारो अंगो में से कोई एक या अधिक अंग लुप्त हो । जैसे- कुन्द इन्दु सम देह । यहाँ पर साधारण धर्म लुप्त है ।
मनो नीलमनि शैल पर आतप पर् यो प्रभात । ।
7.भ्रांतिमान अलंकार - जहाँ भ्रमवश उपमेय को उपमान समझ लिया जाता है , वहाँ भ्रांतिमान अलंकार होता है ।जैसे –
8. विभावना अलंकार – जहाँ कारण के उपस्थित न होने पर भी कार्य हो रहा हो वहाँ विभावना अलंकार होता है ।जैसे –
सन्त हृदय नवनीत समाना । कहा कविन्ह परि कहै न जाना ।।
जैसे - मुख मुख ही के सामान सुन्दर है ।
12. प्रतीप अलंकार - यह उपमा का उल्टा होता है । अर्थात जब उपमेय को उपमान और उपमान को उपमेय बना दिया जाता है , तो वहां प्रतीप अलंकार होता है ।
जैसे - चन्द्रमा मुख के सामान सुन्दर है ।

श्री स्वामिने नमः 🙏
जवाब देंहटाएंगुरदेव प्रणाम
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जवाब देंहटाएंAikatana By Pratibha Ray
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