काव्यगुण

चन्द्र देव त्रिपाठी 'अतुल'
0

 

काव्यगुण

 

गुणों की संख्या-आचार्य भरत ने गुणों की संख्या 10 बताई है।

1.श्लेष, 2.प्रसाद, 3.समता, 4.समाधि, 5.माधुर्य, 6.ओज, 7.पदसुकुमारता, 8.अर्थशक्ति, 9.उदारता, 10.कान्ति

 

आचार्य दण्डी भी भरत के ही अनुक्रम में इन्हीं दस गुणों की चर्चा करते हैं।

 

 आचार्य वामन ने गुणों को मुख्यतः दो भागों में विभक्त करके इनकी संख्या क्रमशः 10-10 अर्थात 10 शब्द गुण एवं 10 अर्थगुण

बताई है। इन तीनों आचार्यों के गण लक्षण में थोड़ी भिन्नता अवश्य है ।

 

 

गुण

 

आचार्य भरत

 

आचार्य दण्डी

आचार्य वामन

शब्दगुण

अर्थगुण

श्लेष

सार्थक पदों का आश्लेष

अशिथिल पद

मसृणता

क्रम और कुटिलता का अभाव

प्रसाद

अर्थ का सुखकर बोध

अर्थ की सरलता

ओजयुक्त सरलता

अर्थ की विमलता

समता

पदों में अन्योन्य समता

विषमता रहित पद रचना

प्रारम्भ से अन्त तक एक ही पद्धति

अविषम बन्ध

माधुर्य

अनुद्वेजक पदावली

रसवाही भाषा

समास वियुक्त पदावली

उक्ति वैचित्र्य

सुकुमारता

सुख से बोले जाने वाले शब्द समूह

कोमलाक्षर

अपरूष शब्द

अपरुष अर्थ

अर्थशक्ति

अर्थ का अविलम्ब बोध होना

अर्थ की मसृणता

आशु अर्थबोध

वस्तु भाव की स्फुटता

उदारता

सुन्दर कथन

मनोहर विशेषणों की भाषा

अग्राम्यता

पदों का नृत्य करते हुए प्रतीत होना

ओज

शब्दार्थ की उदात्तता

विशेषणों की भाषा

पदबन्ध गाढ़ता

प्रौढ़ि

कान्ति

मन एवं कानों के लिए सुखद भाषा

रसात्मक वर्णन

उज्जवलता

रस दीप्ति

समाधि

अर्थ की विशेषता

चमत्कार युक्त अर्थ

आरोह-अवरोह युक्त अर्थ

अर्थ का दर्शन

 

 

आचार्य हेमचन्द्र भी गुणों की संख्या 10 ही मानते हैं।

 

आचार्य भोज के अनुसार गुणों की संख्या 24  हैं-1.श्लेष, 2.प्रसाद, 3.समता, 4.माधुर्य, 5.सुकुमारता, 6.अर्थव्यक्ति, 7.कान्ति, 8.उदारता, 9.उदात्त, 10.ओज, 11.उज्वसित, 12.प्रेयस, 13.सुभगता, 14.समाधि, 15.सूक्ष्मता, 16.गम्भीरता, 17.विस्तार, 18.संक्षेप, 19.समतात्व, 20.भाषिकतत्त्व, 21.गति, 22.रीति, 23.उक्ति, 24.प्रौढ़ि।

सामान्य रूप से उन्होंने गुणों को शब्दगुण, अर्थगुण एवं उभय गुण इन तीन श्रेणियों में रखा है।

 

चमत्कार चन्द्रिका के रचनाकार आचार्य विश्वेश्वर गुणों की संख्या 23 बताते हैं । श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थशक्ति, उदारता, ओज, कान्ति, उदात्तता, प्रेयस, समाधि, औषधि, सौम्य, गाम्भीर्य, विस्तार,संक्षेप, शब्द संस्कार, भाविक, सम्मति, गति, उक्ति, रीति ।

 

आचार्य भामह के अनुसार गुणों की संख्या 03 है और इसी में उन्होंने समस्त 10 गुणों का समाहार कर दिया है-

 

(1) ओज-श्लेष, उदारता, प्रसाद, समाधि

(2) प्रसाद-कान्ति, सुकुमारता, समता

(2) माधुर्य-इसका अपना स्वतन्त्र रूप सर्वथा सभी गुणों से पृथक् है ।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*