राजा दुष्यंत का चरित्र-चित्रण (हिन्दी एवं संस्कृत में)

 दुष्यंत का चरित्र-चित्रण (हिन्दी एवं संस्कृत में)

1.युवा दुष्यन्त- अभिज्ञान शाकुन्तल का नायक राजा दुष्यन्त एक सुन्दर शरीर वाला युवक है । इसका शरीर विशाल तथा दृढ़ है। दुष्यन्त के स्वरूप को देखकर प्रियम्बदा सोचती है  'को न खलु एष दुरवगाहगम्भीराकृतिः मधुरमालपन् प्रभुत्वदाक्षिण्यं विस्तारयति ।'  राजा को पहली बार देखकर अनसूया कहती है-'आर्यस्य मधुरालापजनितो विस्रम्भो मामालापयति ।' षि कुमारों ने दुष्यन्त की आकृति को देखकर कहा-'दीप्तिमतोऽपि विश्वसनीयताऽस्य वपुषः ।

राजा दुष्यन्त देखने में नगर परिप्रांशु बाहु हैं तथा अनवरत धनुर्ज्यास्फालन क्रूरवर्ष्मा है। पौरुष सम्पन्न राजा को मृगया का व्यसन है। वह इन्द्र की सहायता के लिए स्वर्गलोक जाता है तथा दुर्जय नामक दैत्यगणों का विनाश करता है । इसीलिए दुष्यन्त को देखकर ही महर्षि कश्यप अपनी पत्नी अदिति से कहते हैं-

'पुत्रस्य ते रणशिरस्ययमग्रयायी,

दुष्यन्त इत्यभिहितो भुवनस्यभर्ता ।

चापेन यस्य विनिवर्तितकर्मजातम्,

तत् कोटिमत् कुलिशमाभरणं मधोनः ।।'

राजा दुष्यन्त राक्षसों से तपोवन की रक्षा करके महर्षि कण्व की अनुपस्थिति में भी ऋषियों की इष्टि को सम्पन्न करवाता है। मातलि द्वारा अदृश्य होकर माधव्य को पीडित किए जाने पर राजा जब अदृश्य मातलि को नहीं देख पाता है तो वह अपने धनुष पर ऐसे बाण को चढ़ाता है जिससे कि अदृश्य तत्त्वों का विनाश किया जा सके। इससे स्पष्ट है कि दुष्यन्त एक धनुविद्या का पूर्ण जानकार प्रख्यात शूरवीर राजा है।

 2.मिष्टभाषी- दुष्यन्त राजा दुष्यन्त जितना ही बड़ा प्रख्यात वीर और मनोज्ञ शरीर वाला है वह उतना ही अधिक मिष्टभाषी भी है। जब वह महर्षि कण्व के आश्रम में पहुँचता है और प्रियम्बदा तथा अनसूया के साथ शकुन्तला से उसका प्रथम साक्षात्कार होता है, तो शकुन्तला आदि उसका सत्कार करना चाहती हैं, उस समय वह कहता है- 'दर्शनेनैव भवतीनां सम्भूतसत्कारोऽस्मि । यही नहीं जब शाङ्गरव और शारद्वत शकुन्तला को लेकर राजा के पास जाते हैं। तो उस समय दुर्वासा के शाप से ग्रस्त होने के कारण शकुन्तला को न पहचानने पर भी, शकुन्तला के लिए किसी अपशब्द का प्रयोग नहीं करता है । वह उसके लिए सर्वदा 'अत्र भवती' जैसे सम्मानजनक शब्द का ही प्रयोग करता है । यद्यपि शाङ्ग रव और शारद्वत राजा के लिए अपमानजनक शब्द का प्रयोग करते हैं। जैसे

'आजन्मनः शाठ्यमशिक्षितो यस्तस्या प्रमाणं वचनं जनस्य ।

पराभिसन्धानमधीयते यैविद्येति ते सन्तु किलाप्तवाचः ।'

किन्तु इस तरह की बात सुनकर भी राजा शाङ्गरवादि के लिए किसी अपशब्द का प्रयोग नहीं करता है।

 3.सौन्दर्यपारखी दुष्यत- दुष्यन्त सौन्दर्यका बहुत बड़ा समादर कर्ता है । वह सर्व प्रथम जब शकुन्तला को देखता है तो उसके मुखसे अचानक निकल जाता है-

'शुद्धान्तदुर्लभमिदं वपुराश्रमवासिनो यदि जनस्य ।

दूरीकृताः खलु गुणरुद्यानात्मता वनलताभिः ॥'

वह शकुन्तला के अव्याजमनोहर शरीर को देखकर उसे तपस्या के लिए अयोग्य समझता है । वल्कल पहनी हुई भी शकुन्तला उसके मन को सहसा आकृष्ट कर लेती है वह उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए कहता है-

'सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यम्, मलिनमपिहिमांशोलक्ष्म लक्ष्मी तनोति ।

इयमधिकमनोज्ञा बल्कलेनापि तन्वी, किमिवहि मधुराणां मण्डनंनाकृतीनाम् ।।'

4.अनेक पत्नियों का स्वामी दुष्यन्त-हिन्दू शास्त्र की यह मान्यता है कि सामर्थ्य रहने पर अनेक पत्नियों के साथ विवाह करना कोई अनुचित कार्य नहीं है । राजा दुष्यन्त की तीन पत्नियाँ स्पष्ट रूप से हैं। उसने कण्वमुनि की पुत्री शकुन्तला के साथ गान्धर्व विवाह किया, पाँचवे अङ्क में उसकी एक पत्नी सानुमती का भी साक्षात्कार होता है जो सङ्गीत शाला में वीणा पर गाती है-

'अभिनवमधुलोभभावितस्तथा परिचुम्ब्य चूतमञ्जरीम् ।

कमलवसतिमात्र निवृतो मधुकर ! विस्मृतोऽसि एनां कथम् ।।'

राजा की प्रथम पट्टमहिषी देवी वसुमती हैं। जिनका साक्षात्कार पाठकों को अभिज्ञानशाकुन्तल के षष्ठ अंक से होता है । द्वितीय अंक में माधव्य के बातों से लगता है कि इनके अतिरिक्त भी राजा दुष्यन्त की पत्नियाँ है। किन्तु राजा दुष्यन्त किसी भी पत्नी का अनादर नहीं करते हैं। देवी वसुमती का तो वे सर्वदा समादर ही करते हैं । सानुमती को भी वे माधव्य के माध्यम से सान्त्वना दिलाते हैं । दुर्वासा के शाप के कारण भले ही दुष्यन्त शकुन्तला का प्रत्याख्यान कर देते हैं, किन्तु अँगूठी को देख लेने के पश्चात् जब उन्हें अपनी पूर्व परिणीता पत्नी की शकुन्तला याद आती है, तो वे शकुन्तला के विरह में उन्मत्त से हो जाते हैं । इस तरह दुष्यन्त एक दक्षिण धीरोदात्त नायक हैं।

5.धार्मिक दुष्यन्त- राजा दुष्यन्त धार्मिक पुरुष हैं । वे ऋषियों के यज्ञों की रक्षा राक्षसों को दूर करके करते हैं। जब कभी भी वे तपोवन में पहुँचते है तो चाहते हैं कि ऋषियों के धर्माचरण में मेरे आने से किसी भी प्रकार की बाधा न उत्पन्न हो । शकुन्तला के प्रतिआकृष्ट होने पर भी जब उनसे माधध्य कहता है कि आप राजा हैं अत एव कभी भी तपोवन में जा सकते हैं । ऋषियों से कर वसूलने के ही बहाने तपोवन मे चले आइये तो वे रहते हैं कि ऋषियों के द्वारा तो मुझे अक्षय्य पुण्यरूपी कर में प्राप्त होता है । अत एव इस तरह की बातें तुम्हें नहीं कहना चाहिए-

'यदुत्तिष्ठति वर्णेभ्यो नृपाणां क्षयि तद् धनम् । 

तपःषड्भागमक्षय्यं ददत्यारण्यका हि नः ।।

मारीचाश्रम में जाकर वे कश्यप तथा अदिति का अभिवादन करना चाहते हैं । 

6.भारतीय संस्कृति के संरक्षक दुष्यन्त- दुष्यन्त भारतीय संस्कृति के पूर्ण संरक्षक हैं । यद्यपि वे शकुन्तला के 'रूपराशि को देखकर उस पर मोहित हो जाते हैं फिर भी उन्हें जब तक यह नहीं ज्ञात हो जाता है कि शकुन्तला कण्व की पुत्री नहीं मेनका नामक अप्सरा में उत्पन्न महर्षि विश्वमित्र की पुत्री है तब तक वे शकुन्तला के साथ शादी करने का निश्चय नहीं करते हैं ।

इसी तरह पञ्चमाङ्क में जब कण्वशिष्य तथा गौतमी शकुन्तला को लेकर दुष्यन्त के समझ आते हैं, तब भी राजा शकुन्तला के सौन्दर्य पर प्रभावित हो जाते हैं, किन्तु उसे पूर्व परिणीता पत्नी के रूप में याद न कर सकने के कारण परदारग्रहणजन्य होने वाले पापसे डरते हैं । दुष्यन्त के ही शब्दों में'

इदमुपनतमेवं रूपम क्लिष्ट कान्ति-

प्रथमपरिगृहीतं स्यान्न वेत्यध्यवस्यन् ।

भ्रमर इव निशान्ते कुन्दमन्तस्तुषारम्

न खल सपदि भोक्तुं नापि शक्नोमि मोक्तुम् ।।

राजा को अपने चरित्र पर पूर्ण विश्वास है । वे कहते हैं-'विनिपातः पौरवैर्लभ्यते इत्यश्रद्धेयम् वचः ।'

संक्षेपतः राजा दुष्यन्त अपनी माताओं का आज्ञाकारीपुत्र, कर्तव्यपरायणप्रजा प्रेमी, मन से ऋषियों का समादर करने वाला तथा संयत स्वभाव वाला धीरोदात्त नायक है।


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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
संपर्क सूत्र -8009992553
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