महाकवि कालिदास के देशकाल का निरूपण


महाकवि कालिदास के देशकाल का निरूपण

संस्कृत साहित्य के कवियों में महाकवि कालिदास का समय सर्वाधिक विवादित है। अभी तक कोई भी कालिदास के देश तथा काल के विषय में सर्वमान्य निर्णय नहीं हो पाया है। अब तो 'मुरारेस्तृतीयः पन्थाः' के अनुसार कुछ ऐसे भी नए आलोचक आ गए हैं कि रघुवंश, कुमारसंभव आदिकाव्यों के निर्माता महाकवि कालिदास दूसरे हैं और अभिज्ञानशाकुन्तल आदि नाटकों के प्रणेता महाकवि कालिदास दूसरे किन्तु इस तरह के विधारकों के विचार पूर्णत: खोखले एवं निर्बल हैं।

कालिदास का काल - यद्यपि कालिदास के काल के विषय में तीन प्रकार के विचार पाए जाते हैं, किन्तु महाकविकालिदास ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी में हए थे। यह मत अधिक विद्वानों को अभिमत हैं। इस मत के समर्थक विद्वानों का कहना है कि
महाकवि कालिदास उज्जैनी के राजा विक्रमादित्य के दरबारी कवि थे। ये विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में अन्यतम थे। कुछ लोगों का मत हैं कि कालिदास का काल इसा की छठी शती है। कालिदास उससमय के राजा यशोवर्द्धन के आश्रित थे। यशोवर्धन का ही विरुद विक्रमादित्य था। डॉ हार्नली तथा डॉ फार्गुसन आदि विद्वान इसी मत के समर्थक हैं !
          डॉ. स्मिथ मैकडोनल, डॉ कीथ, डा. भण्डारकर पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा तथा हर प्रसादशास्त्री प्रभृति इतिहासालोचकों का मानना है कि महाकवि कालिदास के आश्रयदाता चन्द्र गुप्त द्वितीय हैं,, चन्द्रगुप्त द्वितीय ही हूणों पर विजय प्राप्त करने वाले हैं। उन्हें विक्रमादित्य के नाम से अभिहित किया जाता है। इन्होंने ही विक्रम संवत् को चलाया। किन्तु चन्द्रगुप्त द्वितीय का स्थिति काल ३७५ से ४१० ई० है । जब कि यशोवर्धन का स्थितिकाल ई पू० प्रथमशताब्दी । यदि कालिदास को चन्द्रगुप्त द्वितीय कालिक माना जाय तब तो कालिदास का काल ईसा की चौथी शतीका उत्तरार्द्ध अथवा ५ वी शतीका पूर्वाद्ध मानना होगा। इन समालोचकों का कहना है कि महाकवि कालिदास ने मालविकाग्निमित्र नाटक के आरम्भ में स्वयम् भास, सौमिल्लकविपुत्र आदि नाटककारों का माम अपने पूर्ववती नाटककारों के रूप में लिया है। कालीदास के ही शब्दों में प्रषित यशसा भाससोमिल्ल कविपुत्रदीनाम् ।' इत्यादि है।
          किन्तु भास तथा सौमिल्ल ई० पूर्व ३वीं या चौथी शताब्दी में हुए थे अतएव उनके परवर्ती मानने पर भी कालिदासको ई० पूर्व १ शताब्दी में मानने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती है । स्वयम् कालिदासने अपने विक्रमोर्वशीय नामक नाटक में अनेक स्थानोंपर विक्रम का नाम लिया भी है, अत एव भी उनको ई० पूर्व प्रथम शताब्दी का मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
          किञ्च कवि अभिनन्दन ने राम चरित' नामक महाकाव्य में भी महाकवि कालिदास की प्रशंसा करते हुए उन्हे विक्रमादित्य का दरबारी कवि बतलाया है और विक्रमादित्य का समय ई: पूर्व १ शताब्दी है अत एव भी महाकविकालिदास का समय ई० पू० प्रथम शताब्दी सिद्ध होता है। किञ्च अभिज्ञानशाकुन्तल के छठे-अङ्क में किसी निस्सन्तान व्यक्ति के मृत हो जाने पर उसकी सम्पत्ति पर राजा के अधिकार होने की बात कही गयी है, ई० पूर्व प्रथम शताब्दी के भारतीय राज्य संहिता में भी यही नियम था, अतएव भी महाकवि कालिदास का समय ई० पूर्व प्रथम शताब्द सिद्ध होता है।
          कुछ विचारकों का कहना है कि महाकवि कालिदास बौद्ध कवि अश्वघोष के पश्चात् हुए थे क्योंकि उन्होंने अश्वघोष की रचनाओं को ही आदर्श मानकर अपनी काव्य साधना की थी। किन्तु इन विचारकों का कथन इसलिए उचित नहीं है कि अश्वघोष एक धर्मप्रचारक कवि थे। उनका उद्देश्य मोक्षावाप्ति है रसानुभूति नहीं। सौन्दरनन्द नामक महाकाव्य के अन्त में उन्होंने कहा भी है 'मोक्षार्थगर्भाकृतिः ।' इससे स्पष्ट है कि वे संसार से ऊब चुके.थे। कहाकविकालिदास तो रसानुभूति सिद्ध महाकवि है। रस प्रवण कवि संसार से उद्विग्न नहीं होता है। अतएव इस रससिद्ध महाकवि को अश्वघोष परवर्ती मानना उचित होगा । वे अश्वघोष के अनुयायी नहीं है, अपितु यह अवश्य कहा जा सकता है कि महाकवि कालिदास को ही आदर्श मानकर अश्वघोष ने अपनी काव्य साधना की होगी। अश्वघोष की कविता का प्रयोजन इसलिए बदल गया होगा कि वे संसार से ऊब गए होंगे। अतएव भी महाकवि कालिदास का स्थितिकाल ई० पू० प्रथम शताब्दी मानना चाहिए।

कालिदास का जन्म स्थान-जिस तरह से तत्तत् विचार कों ने अपने तर्कों के आधार पर कालिदास को भिन्न-भिन्न काल का बतलाया है। उसी तरह से उनकी मातृभूमि के विषय में भी विचारकों के विभिन्न प्रकार के विचार हैं बहुत से विद्वान उन्हें उज्जैनी का बतलाते हुए तर्क देते हैं कि कालिदासका यक्ष मेघ से कहता है कि-
वक्रः पन्थाः यदपि भवतः प्रस्थितस्योत्तरशाम्,
सौधोत्सङ्ग प्रणयविमुखो मा स्म भूरुज्जयिन्याः ।
विद्युद् दामस्फुरित चकितैः तत्र पौराङ्गनानां,
लोला पाङ्ग यदि न रमसे लोचनैर्वञ्चितोऽसि ।।
टेढ़े मार्ग से कालिदास अपने मेघ को इसलिए उज्जनी ले जाना चाहते हैं कि उनको उज्जनी के प्रति बहुत स्नेह है । सतएव उज्जनी ही कालिदास की जन्मस्थली रही होगी। किन्तु सच तो यह है कि उज्जनी कालिदास की निवासस्थली है। वस्तुत: जिन काव्यों के आधार पर महाकवि कालिदास विश्वविख्यात हैं, उन कुमार सम्भव,रघुवंशः मेघदूत तथा अभिज्ञान शाकुन्तल के देखने से पता लगता है। महाकवि कालिदास का मन हिमालय तथा गङ्गा में जितना रमता है, उतना अन्य स्थानों में नहीं । अतएव महाकवि कालिदास को हिमालय के ही गोद का अंकुर मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

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मेरा नाम चन्द्रदेव त्रिपाठी 'अतुल' है । सन् 2010 में मैने इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज से स्नातक तथा 2012 मेंइलाहाबाद विश्वविद्यालय से ही एम. ए.(हिन्दी) किया, 2013 में शिक्षा-शास्त्री (बी.एड.)। तत्पश्चात जे.आर.एफ. की परीक्षा उत्तीर्ण करके एनजीबीयू में शोध कार्य । सम्प्रति सन् 2015 से श्रीमत् परमहंस संस्कृत महाविद्यालय टीकरमाफी में प्रवक्ता( आधुनिक विषय हिन्दी ) के रूप में कार्यरत हूँ ।
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